डाकिया योजना को सफल बना रहीं सखी मंडल की महिलाएं

Update: 2019-01-11 13:41 GMT

देवघर (झारखंड)। राज्य में विशेष जनजाति के लिए चलाई जा रही महत्वाकांक्षी डाकिया योजना में चावल की पैकिंग प्रखंड स्तर पर सखी मंडल की महिलाएं कर रही हैं। इससे महिलाओं को आजीविका का बेहतर साधन मिला है।

नेहा कुमारी, कम्युनिटी जर्नलिस्ट, जिला-देवघर 

देवघर जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर दूर पालोजोरी प्रखंड के केपटपाड़ा जो की ब्लॉक रोड पर स्थित है। यहां पर चमेली आजीविका सखी मंडल की महिलाएं चावल की पैकेजिंग करती हैं। देवघर जिले के सभी प्रखंडो में चल रही डाकिया योजना में चावल की पैकिंग का काम पालोजोरी प्रखंड में चल रहा है। यहाँ हर महीने 665 बोर चावल पैकिंग होता है।

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सुनीता देवी (33 वर्ष) पहले सत्तू बेचा करती थी जब डाकिया योजना के तहत उन्हें चावल पैकेजिंग का मिला तो वो अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, "एक बोरी की पैकेजिंग पर 12 रुपए मिलते हैं जिसमें दो रुपए ग्राम संगठन को देना होता है। महीने के 15-20 दिन काम मिल जाता है। अब हम सत्तू नहीं बेचते हैं यहीं से आमदनी हो जाती है।" सुनीता देवी की तरह इस सेंटर पर उषा देवी, सयमा देवी, सीमा देवी, गुड़िया देवी मिलाकर कुल पांच महिलाएं पैकेजिंग कर अपनी जीविका चला रही हैं। हर महिला महीने के 1500 से 2000 रुपए कमा लेती हैं।

डाकिया योजना अभी 24 जिले के 168 ब्लॉक में ये योजना चल रही है। हर बोरी में 35 किलो चावल विशेष जनजातियों तक पहुंचे इसके लिए सखी मंडल की महिलाएं इन 35 किलो चावल की बोरियों की पैकेजिंग करती हैं। जिससे इन महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है और पैकेजिंग भी गुणवत्तापूर्ण हो रही है।

राज्य में 62 सेंटर पर 542 सखी मंडल की महिलाओं की मदद से डाकिया योजना की पैकेजिंग की जाती है। विशेष जनजाति गरीबी और संसाधनों के आभाव की वजह से विशेष जनजाति के ज्यादातर परिवार पेट भरने के लिए जंगलों पर निर्भर थे। लेकिन डाकिया योजना की शुरुआत के बाद धीरे-धीरे ये परिवार अब खेती करने लगे हैं। अभी भी रोटी इनके भोजन में चलन में नहीं है। अभी भी ये परिवार ज्यादातर चावल ही खाते हैं पर दाल और सब्जियां अब इनके भोजन में शामिल हो गयी हैं। 

(ये खबर झारखंड के देवघर जिले की कम्यूनिटी जर्नलिस्ट नेहा कुमारी ने भेजी है)

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