लखनऊ। जैविक विधि से मछली पालन की लागत अधिक होने के कारण किसान परम्परागत ढंग से मछली पालन करते हैं। लेकिन किसान अगर जैविक तरीके से मछली का उत्पादन करता है तो लम्बी अवधि के लिए यह बहुत ही उपयुक्त होता है साथ ही इसमें कम जोखिम भी है। इस विधि से तैयार जैविक मछली अच्छा बाजार मूल्य किसानों को देगी।
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इस तरह करें जैविक मछली पालन के लिये तालाब की तैयारी-
तैयारी के पहले चरण में तालाब जोतकर कुछ दिन के लिए छोड़ देते हैं। इसके बाद नमी बनाकर ढ़ेंचा, सनई, मूंग, उर्द इत्यादि की हरी खाद की फसल की बुआई करते हैं। यही हरी खाद मिट्टी की उर्वरक शक्ति को बढ़ाती है और खरपतवार और जंतुओं/कीड़ों को उत्पन्न होने से रोकती है। ढ़ेंचा अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक नाइट्रोजन प्रदान करता है। फसल बोने के 2-3 सप्ताह बाद फूल आने से पहले उसकी अच्छी तरह जुताई कर देते हैं इससे तालाब में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम की पूर्ति हो जाती है। ढ़ेंचा में शुष्क भारके अनुसार 3.3 प्रतिशत नाइट्रोलन, 0.7 प्रतिशत फास्फोरस और 1.7 प्रतिशत पोटाश उपस्थित रहता है। जिन तालाबों को सुखाना संभव न हो उसमें महुआ की खली का प्रयोग 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिये। इस खली में 30 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1.3 प्रतिशत फास्फोरस, 1.4 प्रतिशत पोटेशियम होता है लेकिन महुआ की खली का प्रयोग मत्स्य बीज संचय के 30 दिन पहले करना चाहिये।
हरी खाद की जुताई के एक सप्ताह के बाद तालाब मे पानी भरना चाहिये। उसमे गोबर, सूकर, बत्तख, मुर्गों के मल का प्रयोग कर सकते हैं।
मत्स्य बीज संचय
तालाब की तैयारी के बाद प्रति हेक्टेयर कतला, रोहू, नैन, सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प, कामन कार्प प्रजाति की कुल 10 हजार अंगुलिकाएं प्रति हेक्टेयर की दर से संचित करते हैं सिल्वर कार्प का संचय कतला के संचय के एक माह के बाद करना चाहिये।
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पूरक आहार
पूरक आहार के रूप में सरसों की खली और राईस ब्रान/पालिस का प्रयोग निश्चित समय पर प्रतिदिन करना चाहिये। आहार में एक प्रतिशत नमक का प्रयोग करना चाहिये और आहार के वाइंडर्स के रूप में रसायन प्रयोग में नहीं लाना चाहिये जहां तक हो सके ज्वार/घिया को वाइंडर्स के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
जैविक मत्स्य पालन विधि
- तालाब में एक मीटर जल स्तर सदैव बना रहे।
- जलीय खर पतवार श्रमिक विधि से साफ कराया जाए और ग्रास कार्प मछली अवश्य संचित की जायें।
- कीट नियंत्रण के लिये लार्वा भोजी मछलियां थोडी संख्या में संचित की जायें और 50 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से नीम की खली का प्रयोग लाभकारी है।
- तालाब में गोबर या अन्य चीज एक माह में एक बार से अधिक प्रयोग न करें।
- जहां तालाब में जल भरने की व्यवस्था हो तालाब में जल ऊंचाई से छोड़ा जाय ताकि ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति हो और एरेटर का प्रयोग लाभकारी है।
- अगर संभव हो तालाब के जल का कुछ भाग निकाल कर नया जल भर दिया जाये।
- सप्ताह में एक बार 5 किग्रा पूरक आहार में 1 से 2 ग्राम हींग का प्रयोग किया जाये और तीन महीने में एक बार एक टन पूरक आहार 1.5 लीटर अरंडी का तेल मिलाकर दिया जाये, जिससे मछली की नाल साफ हो जाती है और उसे भूख लगने लगती है।
- तालाब के बंधो पर केले के वृक्षारोपण करने से तालाब मे ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है।
- मछली को रोग लगने पर 25 किग्रा हल्दी और 25 किग्रा नमक का घोल तालाब में छिड़कना लाभकारी है।
स्त्रोत- मत्स्य निदेशालय उत्तर प्रदेश