एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल बनाने में मददगार साबित हो सकते हैं बांस

Update: 2019-02-19 13:45 GMT

नयी दिल्ली। भारत में आगामी एक दशक में कम से कम 20 प्रतिशत पेट्रोल के साथ एथेनॉल मिश्रित करने का लक्ष्य रखा गया है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में बहुतायत में पाया जाने वाला बांस इसका जरिया बन सकता है और बांस के अपशिष्टों से जैविक ईंधन प्राप्त करने के लिए हो रहे अनुसंधान कार्यों से इसकी राह तैयार हो सकती है।

उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव सौरभ एंडले ने यह बात कही है। वह रुड़की स्थित केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) में 'पूर्वोत्तर क्षेत्र में भवन निर्माण सामग्री के रूप में बांस के उपयोग' पर आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।

सरकार वर्ष 2022 तक 10 प्रतिशत और 2030 तक 20 प्रतिशत पेट्रोल के साथ एथेनॉल मिश्रित करने की क्षमता विकसित करने की दिशा में काम कर रही है। भारत का 60 प्रतिशत से अधिक बांस पूर्वोत्तर क्षेत्र में उगाया जाता है। इसी तथ्य को देखते हुए पूर्वोत्तर में बड़े पैमाने पर बांस उद्योग पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

एंडले ने कहा, "बांस उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का प्रमुख प्राकृतिक उत्पाद है। इस क्षेत्र में बांस का निर्माण सामग्री के रूप में प्रयोग किफायती और फायदेमंद हो सकता है। हालांकि, जानकारी के अभाव में निर्माण सामग्री के रूप में बांस के उपयोग को लेकर कई भ्रांतियां हैं। मजबूती, ऊष्मीय एवं ध्वनि रोधक क्षमता, अग्नि प्रतिरोधकता, भूकंपीय आघात सहने की क्षमता जैसे विषयों पर जागरूकता के प्रचार-प्रसार से निर्माण सामग्री के रूप में बांस के उपयोग को बढ़ावा मिल सकता है। इससे क्षेत्रीय किसानों, निर्माणकर्ताओं और नागरिकों को लाभ हो सकता है।"


सीबीआरआई के निदेशक डॉ. एन. गोपालकृष्णन ने बताया कि विभिन्न प्रजातियों के अलग-अलग गुण और हल्का भार निर्माण क्षेत्र में बांस के उपयोग से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों में शामिल हैं। बांस का हल्का भार भूकंप के दौरान नुकसान को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण हो सकता है, तो तेज हवा की स्थिति में इसके आधार को स्थिर रखना एक चुनौती है। सीबीआरआई इन चुनौतियों से निपटने के लिए अनुसंधान कर रही है। बांस सामग्रियों की जांच करने के लिए वहां एक परीक्षण सुविधा का निर्माण भी प्रस्तावित है और भवन निर्माण सामग्री के रूप में बांस के उपयोग हेतु कुछ मानक भी स्थापित किए जा रहे हैं।

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इस अवसर पर सीबीआरआई के वैज्ञानिकों ने निर्माण सामग्री के रूप में बांस के उपयोग, भारतीय वास्तुकला में बांस, बांस का चयन और उपचार और बांस का अग्नि उपचार जैसे विषयों पर अपने व्याख्यान पेश किए। इसके साथ ही संस्थान की त्रैमासिक द्विभाषी पत्रिका भवनिका के नवीनतम अंक का विमोचन भी किया गया।

इस कार्यशाला में 16 राज्यों के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, जिसमें परियोजना निदेशक, प्रोफेसर, वास्तुकार, इंजीनियर, वैज्ञानिक, उद्यमी और अधिकारियों के अलावा छात्र शामिल थे।

इस मौके पर संस्थान के कंस्ट्रक्शन डेमोंस्ट्रेशन पार्क फॉर मास हाउसिंग में सीबीआरआई द्वारा विकसित ग्रामीण एवं शहरी स्थानों तथा विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के लिए उपयुक्त तकनीक, परीक्षण सुविधा, विशेष उपकरणों आदि की विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित की गई थी। (इंडिया साइंस वायर)

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