लखनऊ। उत्तर-प्रदेश में लगभग 19 लाख बेटियां भ्रूण हत्या का शिकार हुई हैं। पिछले तीन दशकों से जनगणना के आंकड़े ये गवाही दे रहे हैं कि लगातार लड़कियों की संख्या कम हो रही है। जनसँख्या में यह असंतुलन मात्र आंकड़ों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका सामाजिक असर भी अब देखने को मिल रहा है।
बेटों की बढ़ती मांग कि वजह से आज ये आंकड़े चिंताजनक हो गये हैं। 2001 में जहां एक हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या 916 थी, वहीं 2011 में ये घट कर 902 ही रह गई थी। इस वजह से 19 लाख लड़कियों की संख्या यूपी में कम हो गई। जबकि 2016 तक इस संख्या के और गिरने की आशंका है, जिसका खुलासा 2021 की जनगणना में होगा। ऐसे में सवाल ये है कि 84 लडकियों का ये अंतर भविष्य में हमको गंभीर सामाजिक असंतुलन की ओर ले जाएगा। उत्तर-प्रदेश में पिछले दशक 2001-2011 में शिशु लिंगानुपात में 14 अंको की गिरावट आयी है। शहरी क्षेत्र के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में तीन गुना ज्यादा ये गिरावट दर्ज की गयी है। ये एक गंभीर समस्या की और संकेत है। साल 2001-2011 के आंकड़ों में सिविल हास्पिटल के प्रशासनिक सभागार में हुई संगोष्ठी में ये बात वात्सल्य संस्था से अंजनी कुमार सिंह ने कही।
हरदोई जिले के शाहाबाद ब्लॉक से चार किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में नरही गाँव है। इस गाँव में रहने वाली शांति देवी (42 वर्ष) का कहना है कि मैं मूल रूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली हूँ। आज से 28 साल पहले 14 साल की उम्र में हमारी चचेरी बहन में हमे बेच दिया था। तब से मैं इस गाँव में रह रही हूँ। अगर ऐसे ही लड़कियों को कोख में मार दिया गया तो वो दिन दूर नहीं होगा जब हमे खरीदने पर भी लड़कियां नहीं मिलेंगी।
बाराबंकी, हरदोई, कानपुर देहात के ऐसे कई गाँव है जहाँ पर लड़कियां शादी के लिए आज खरीद कर आ रही हैं। अगर लड़कियों के जन्म पर उत्साह न मनाया गया तो आने वाले समय ये आंकड़े और ज्यादा चिंताजनक होंगे। वर्ष 1980 के दशक से शुरू हुई अल्ट्रासाउंड तकनीक का इस्तेमाल शुरुवाती दौर में चिकित्सीय उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया गया था। उस समय इस तकनीक की पहुंच शहरी क्षेत्रों में उन लोगों तक थी जो पढ़े-लिखे थे। लेकिन आज इस तकनीक से मुनाफा कमाने के लिए इसका प्रचार-प्रसार यहाँ तक फ़ैल गया कि आज ये प्रदेश के हर हिस्से में 10-15 किलोमीटर की दूरी पर कहीं न कहीं आसानी से देखी जा सकती है। इसके परिणामी नतीजे वर्ष 2021 की जनगणना में दिखाई देंगे। आज यह समझना बेहद जरूरी हो गया है कि यह तकनीक कैसे एक बड़ी ग्रामीण जनसंख्या में लगभग 70 प्रतिशत लोगों तक पहुंच गया है।
लिंग भेदभाव के लिए कोई एक जिम्मेदार नहीं
लखनऊ में वात्सल्य संस्था की डॉ नीलम सिंह ने बताया ''उत्तर-प्रदेश में अभी भी 41 प्रतिशत बेटियों की कम उम्र में शादी हो जाती है। बेटियों की घटती संख्या और लिंग भेदभाव को रोकने में किसी एक व्यक्ति और एक विभाग की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि इसके लिए सामूहिक रूप से मजबूत प्रयास की आवश्यकता है।" आगे बताती हैं," समुदाय स्तर से लेकर विभिन्न स्तरों तक व्यकितगत, गैर सरकारी संगठन, जनसामान्य, युवाओं सभी को आगे आना होगा। जेंडर आधारित लिंग चयन लड़कियों के खिलाफ भेदभाव पूर्ण व्यवहार है। इसका पहला कारण गहरी पित्रसत्तात्मक मानसिकता जो परिवारों में बेटियों से ज्यादा बेटों को बढ़ावा दिया जाता है। दूसरा छोटे परिवारों की ओर बढ़ती प्रवत्ति के कारण बेटे के जन्म को वरीयता। तीसरा चिकत्सीय तकनीक का गलत प्रयोग पर सख्त कार्यवाही नहीं की जायेगी तब तक इस स्तिथि में सुधार नहीं होगा।"
लिंगानुपात में 34 फीसदी तक की गिरावट
जनगणना 2001 और 2011 के आंकड़ों के अंतर की अगर हम बात करें तो बनारस में 34 प्रतिशत,इलाहाबाद में 24 प्रतिशत,आजमगढ़ और बहराइच,पीलीभीति में 30 प्रतिशत,गोंडा और मिर्जापुर में 26 प्रतिशत,सिद्धार्थनगर में 29 प्रतिशत, सोनभद्र में 32 प्रतिशत गिरावट लिंगानुपात में आयी है।
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क