तीन तलाक व समान नागरिक संहिता पर मुस्लिम संगठन व सरकार के बीच तकरार बढ़ी  

Update: 2016-10-13 21:53 GMT
नई दिल्ली में प्रेस क्लब में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी व ऑल इंडियन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड महासचिव वली रहमानी।

नई दिल्ली (भाषा)। ऑल इंडियन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और देश के कुछ दूसरे प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने गुरुवार को समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग की प्रश्नावली का बहिष्कार करने का फैसला किया और सरकार पर उनके समुदाय के खिलाफ ‘युद्ध' छेड़ने का आरोप लगाया।

पर्सनल लॉ बोर्ड और मुस्लिम संगठनों ने विधि आयोग की प्रश्नावली का विरोध किया

यहां प्रेस क्लब में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुस्लिम संगठनों दावा किया कि यदि समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया जाता है तो यह सभी लोगों को ‘एक रंग' में रंग देने जैसा होगा, जो देश के बहुलतावाद और विविधता के लिए खतरनाक होगा।

पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव वली रहमानी, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के प्रमुख मंजूर आलम, जमात-ए-इस्लामी हिंद के पदाधिकारी मोहम्मद जफर, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारुकी और कुछ अन्य संगठनों के पदाधिकारियों ने तीन तलाक और समान नागरिकसंहिता के मुद्दे पर सरकार को घेरा।

मुस्लिम समुदाय में हिंदू समुदाय की तुलना में तलाक के मामले कम

एक साथ तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार के रुख को खारिज करते हुए इन संगठनों ने दावा किया कि उनके समुदाय में अन्य समुदायों की तुलना में, खासतौर पर हिंदू समुदाय की तुलना में तलाक के मामले कहीं कम हैं।

बोर्ड और दूसरे मुस्लिम संगठन इन मुद्दों पर मुस्लिम समुदाय को जागरूक करने के लिए पूरे देश में अभियान चलाएंगे और इसकी शुरुआत लखनऊ से होगी।
वली रहमानी महासचिव पर्सनल लॉ बोर्ड

पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव वली रहमानी कहा, ‘‘विधि आयोग का कहना है कि समाज के निचले तबके के खिलाफ भेदभाव को दूर करने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है, जबकि यह हकीकत नहीं है, यह कोशिश पूरे देश को एक रंग में रंगने की है जो देश की बहुलतावाद और विविधता के लिए खतरनाक है।'' रहमानी ने कहा, ‘‘सरकार अपनी नाकामियों से लोगों का ध्यान भडकाने की कोशिश में है. मुझे यह कहना पड़ रहा है कि वह इस समुदाय के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहती है. हम उसकी कोशिश का पुरजोर विरोध करेंगे।''

बोर्ड के पदाधिकारियों यह माना कि पर्सनल लॉ में कुछ ‘खामियां' हैं और उनको दूर किया जा रहा है।

देश के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं, सीमा पर तनाव है, निर्दोष लोगों की हत्याएं हो रही हैं, सरकार को समान आचार संहिता पर लोगों की राय लेने की बजाय, इन चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए।
अरशद मदनी अध्यक्ष जमीयत उलेमा-ए-हिंद

यह पूछे जाने पर कि मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने ही एक साथ तीन तलाक के मुद्दे पर पर्सनल लॉ बोर्ड के रुख का विरोध किया है तो रहमानी ने कहा कि लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात रखने का पूरा हक हासिल है।

गौरतलब है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने एक साथ तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर कर बोर्ड के रुख का विरोध किया और कहा कि ये प्रथा इस्लाम में अनिवार्य नहीं हैं।

पर्सनल लॉ में किसी सुधार की जरुरत नहीं है। एक साथ तीन तलाक कोई बड़ा मुद्दा नहीं है और समान आचार संहिता थोपने की दिशा में सरकार का कदम लोगों की धार्मिक आजादी को छीनना है, यही वजह है कि हम लोग संघर्ष कर रहे हैं।
असमा जेहरा महिला सदस्य पर्सनल लॉ बोर्ड

दिल्ली में प्रेस क्लब में चल मुस्लिम संगठनों के संवाददाता सम्मेलन के बाहर मुस्लिम महिलाएं।

बोर्ड मुसलमानों का प्रतिनिधि नहीं, उसका रुख राजनीतिक: महिला कार्यकर्ता

नई दिल्ली (भाषा)। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कुछ दूसरे मुस्लिम संगठनों की ओर से तीन तलाक एवं समान आचार संहिता से जुड़ी विधि आयोग की प्रश्नावली के बहिष्कार का ऐलान किए जाने के बाद मुस्लिम महिला कार्यकर्ताओं ने बोर्ड और इन संगठनों पर निशाना साधते हुए कहा कि ये लोग मुसलमानों के प्रतिनिधि नहीं हैं और उनका रुख धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक है।

भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह-संस्थापक जकिया सोमान ने कहा, ‘‘विधि आयोग ने सिर्फ तीन तलाक की बात नहीं कही है, उसने हिंदू महिलाओं के संपत्ति के अधिकार और ईसाई महिलाओं के तलाक से संबंधित मामलों की भी बात की है इसलिए आयोग पर सवाल खड़े करना अनुचित है।''

जकिया ने आरोप लगाया, ‘‘पर्सनल लॉ बोर्ड में बैठे लोग मुसलमानों के प्रतिनिधि नहीं हो सकते। यह बोर्ड महज एक एनजीओ है और देश में हजारों एनजीओ हैं. इसलिए इनकी बात को मुस्लिम समुदाय की बात नहीं कहा जा सकता। मुझे लगता है कि इनका रुख धार्मिक नहीं बल्कि पूरी तरह से राजनीतिक है. महिलाओं की मांग कुरान के मुताबिक है और उन्हें उनका हक मिलना ही चाहिए।''

इन लोगों की सोच कट्टरंपथी है, शाहबानो के समय भी इन लोगों ने सरकार पर दबाव बनाया था और आज भी वैसा ही करने का प्रयास कर रहे हैं, हमारी मांग है कि सरकार इनके दबाव में नहीं आए।
नाइश हसन सामाजिक कार्यकर्ता और स्तंभकार

नाइश ने कहा, ‘‘अब महिलाएं झुकने वाली नहीं है वे हक लेकर रहेंगी। हम सरकार और अदालत के स्तर से पूरी मदद की उम्मीद कर रहे हैं। तीन तलाक की प्रथा का खत्म होना जरूरी है।''

विधि आयोग ने सात अक्तूबर को जनता से राय मांगी कि क्या तीन तलाक की प्रथा को खत्म किया जाए और देश में समान आचार संहिता लागू की जाए।


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