बिहार से सटे नेपाल के इस गाँव में क्यों खाने तक के पड़े लाले

नेपाल के मेलम्ची गाँव के बाशिंदे बाढ़ के ढाई साल बाद भी उबरने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सरकारी सहायता के अभाव में हालात सामान्य नहीं हो पा रहे हैं। पढ़िए मेलम्ची गाँव से ग्राउंड रिपोर्ट -

Update: 2024-02-05 12:26 GMT

यहाँ पर बाढ़ से बचाव के लिए सरकार ने अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया हुआ है, जिससे बाढ़ के खतरे का अलर्ट पहले ही मैसेज के जरिए मिल जाता है। बावजूद इसके खतरों को टाला नहीं जा सका है, जिसकी सबसे बड़ी वजह लैंडस्लाइड है।

नेपाल के इस गाँव में जिधर नज़र दौड़ाएं, बाढ़ के बाद की तबाही के निशान दिखाई पड़ रहे थे।

नेपाल की राजधानी काठमांडू से 76 किलोमीटर दूर सिंधुपालचोक जिले के मेलम्ची गाँव में जून, 2021 बाढ़ और तबाही लेकर आया। तब से आज तक यह गाँव इससे उबरने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उबर नहीं पाया है।

मेलम्ची में इससे पहले साल 2015 में भूकंप भी आ चुका है। गाँव के लोग आज भी उस हादसे को याद कर सहम जाते हैं। कुल 20 लोगों को इस हादसे में अपनी जान गँवानी पड़ी थी और दर्जनों घायल हो गए थे। मरने वालों में दो भारतीय भी थे।

करोड़ों की संपत्ति एक झटके में बाढ़ की भेंट चढ़ गई। लैंडस्लाइड और रेनफॉल भी इस हादसे की प्रमुख वजहों में से थे। ढाई साल बाद भी हालातों में कोई खास बदलाव नहीं आया है। लोग हादसे से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उबर नहीं पाए हैं।


बाढ़ में अपना घर खोने वाले मेलम्ची गाँव के रहने वाले आज भी अभी तक दर्द से नहीं उबर पाए हैं। प्रेम श्रेष्ठ बताते हैं, "हमारी आँखों के सामने सब कुछ बह गया; मेरे घर के साथ सामने वाला होटल भी ताश के पत्तों की तरह बह गया, सरकार ने घर बनाने और अन्य नुकसान की भरपाई के लिए रिलीफ फंड के तहत पाँच लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की, लेकिन आज तक सिर्फ 50 हज़ार रुपए ही मिले, इसके अलावा किसी भी तरह की कोई मदद नहीं मिली।"

"हम चाहकर भी अपना घर दोबारा खड़ा नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हमारे पास कोई रोज़गार या काम नहीं है; पैसे के अभाव में घर बनाने की सोचना बहुत मुश्किल काम है, सरकार से किसी तरह की मदद मिलेगी, ऐसी कोई उम्मीद नहीं है। " प्रेम श्रेष्ठ ने उदासी में कहा।

हर जगह बर्बादी के निशान

काठमांडू के वरिष्ठ पत्रकार दीपक अधिकारी ने इस हादसे को बेहद करीब से देखा था, उस दिन को याद करते हुए वो कहते हैं, "इस गाँव में पहुँचने के लिए काठमांडू से बस से तीन घंटे का समय लगता है; बाढ़ के बाद गाँव के हालात भयानक हो गए थे, चारों ओर पानी ही पानी था, पाँच मीटर से भी ज्यादा पानी का तेज़ बहाव था; सब कुछ तबाह हो गया था; लोगों ने अपने घरों को पूरी तरह खो दिया था आस-पास के इलाकों की खेती पूरी तरह बर्बाद हो गई थी; कई लोग बाढ़ के पानी में बह गए, जिन्हें बाद में रेस्क्यू किया गया।"

वो आगे कहते हैं, "अगर आज की बात करें तो ढाई साल बाद भी कुछ नहीं बदला है; हर जगह बर्बादी के निशान हैं, मेलम्ची नदी पर बने पुल को सेना ने दोबारा जरूर बना लिया है, जिससे आवागमन का रास्ता खुल गया है; बाकी लोगों का दर्द आज भी जस का तस है।"

असल में मेलम्ची पहाड़ों की तलहटी में बसा गाँव है। यहां पर भूकंप और बाढ़ का खतरा हमेशा बना रहता है। यहाँ पर बाढ़ से बचाव के लिए सरकार ने अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया हुआ है, जिससे बाढ़ के खतरे का अलर्ट पहले ही मैसेज के जरिए मिल जाता है। बावजूद इसके खतरों को टाला नहीं जा सका है, जिसकी सबसे बड़ी वजह लैंडस्लाइड है। यहाँ जमीन की कमी है, जिससे लोग पहाड़ी इलाकों में घर बना लेते हैं। हालांकि बाढ़ आने के बाद लोगों ने दोबारा पहाड़ी इलाकों में निर्माण से बचने की कोशिश की है।


मेलम्ची गाँव की बाज़ार में चाय की दुकान चलाने वाली सविता छेत्री का कहना है कि बाढ़ में अपना घर खोने के बाद ढाई साल से उबरने की कोशिश कर रहे हैं। उम्मीद है कि जल्द सब कुछ ठीक हो जाएगा। हालांकि इस तरह की बात सोचना आसान है और व्यावहारिक रूप से जिंदगी को जीना बहुत मुश्किल। असल में रोजगार के अभाव में दोबारा खड़ा हो पाना बहुत मुश्किल लगता है।

बाढ़ के बाद मेलम्ची पर जारी कुछ रिपोर्ट कहती हैं कि अपना घर खोने के बाद बहुत लोग शरणार्थी बन गए। कुछ रिपोर्ट का दावा है कि मेलम्ची की कुछ लड़कियां मुंबई के कमाठीपुरा के देह व्यापार में झोंक दी गईं। कुछ अपनी मर्जी से वहाँ चली गईं। दीपक अधिकारी बताते हैं कि बाढ़ के बाद गरीबी बहुत बढ़ गई है। लोग गलत कामों की ओर भी बढ़ने लगे हैं। असल में नेपाल में बाढ़ आएगी तो भारत के बिहार का सीमावर्ती इलाका भी प्रभावित होगा। बाढ़ से बहुत बड़े स्तर पर नुकसान हुआ। लोगों के मकान-दुकान बह गए। खेती बर्बाद होने से लोगों के सपने टूट गए। महिलाओं को नौकरानी की तरह काम करना पड़ रहा है। कुल मिलाकर बाढ़ एक सदमे रूप में आई है, जो लोगों की ज़िंदगी से खेल गई। अब हर कदम पर मेलम्ची के लोगों को जीवन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

स्थानीय युवा शुभनारायण यादव बताते हैं, "बाढ़ के बाद रोज़गार छिन गया; पढ़ाई छूट गई पलायन हुआ, कुछ लोग दूसरी जगहों पर चले गए। मैं फल और जूस की दुकान लगाता था, जो बाढ़ में बह गई, टूटी दुकान को दोबारा खड़ा करने की कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन पैसे का अभाव है। "

मेलम्ची नदी के बहाव क्षेत्र से पत्थरों को निकालने का काम आज भी जारी है। ज़्यादातर लोगों ने गाँव से पलायन कर लिया है। लोग मानसिक रूप से टूटे हुए हैं। कई लोग जिला अस्पताल में मानसिक बीमारियों का इलाज भी ले रहे हैं। मेलम्ची गाँव की दुर्दशा बताती है कि प्रकृति की मार जब पड़ती है तो कुछ भी नहीं बचता है।

क्या थी बाढ़ की बड़ी वजह?

भीषण बाढ़ ने मेलम्ची गाँव की व्यवस्था को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया। इस बाढ़ का प्रमुख कारण वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन को बताते हैं, जिसके लिए इंसान खुद ज़िम्मेदार है। मेलम्ची गाँव इस बात का उदाहरण है कि छोटे गाँवों में भी ठोस जलवायु कार्ययोजना ज़रूरी है, नहीं तो मौसम की मार से नहीं बचा जा सकेगा।

"बाढ़ के बाद सड़कें टूट गईं सारे रास्ते बंद हो गए, जिससे सबसे ज़्यादा परेशानी गर्भवती महिलाओं को उठानी पड़ी; डिलीवरी के लिए महिलाओं को हेलीकॉप्टर से रेस्क्यू किया गया, स्वास्थ्य सेवाएँ पूरी तरह खत्म हो गई थीं गाँव में पहले ही सुविधाएँ नहीं थीं, जो थीं वे सब बाढ़ में बह गईं; मेलम्ची गाँव मेलम्ची नगरपालिका के तहत आता है, जो सिंधुपालचोक जिले में पड़ता है।" मेलम्ची गाँव की युवा पत्रकार भागीरथी पंडित ने बताया।

मेलम्ची गाँव के बाशिंदे बाढ़ के ढाई साल बाद भी उबरने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सरकारी या अन्य किसी भी तरह की सहायता के अभाव में हालात सामान्य नहीं हो पा रहे हैं।

गाँव के बुजुर्ग राजेंद्र शिष्ट बताते हैं, "बाढ़ में सर्विस सेंटर, शोरूम सब बह गए, आज भी वह याद आता है तो रूह कांप उठती है; गाँव में कुछ भी बाकी नहीं बचा घर से लेकर खेती तक, सब बर्बाद हो गया।"

उन्होंने आगे कहा, "बाढ़ आने से पहले गाँव में 300 से भी अधिक परिवार थे, चार हज़ार से ज़्यादा जनसंख्या थी, जो अब नाममात्र के रह गए हैं। लोग गाँव छोड़कर जाने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि रोज़गार का कोई साधन बचा नहीं है।"

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