अरुण हथेली के सहारे जाता है स्कूल, लगाता है दौड़

Update: 2017-02-04 12:43 GMT
जन्मजात दिव्यांग के जज्बे को सलाम, अरुण को पढ़ाई के साथ ही खेलों में है खासी रुचि।

मसूद तैमूरी

इकदिल (इटावा)। लोग कहते हैं कि दिव्यांग होना अभिशाप है। मगर दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो इस कमजोरी पर जीत हासिल की जा सकती है। हम बात कर रहे हैं मुहल्ला कछियात निवासी ओमप्रकाश शाक्य के तकरीबन 15 वर्षीय पुत्र अरुण कुमार शाक्य की।

कस्बा के मुहल्ला कछियात निवासी एक किशोर जन्म से ही दोनों पैरों से विहीन है। इसके बावजूद वह पढ़ने स्कूल जाता है, साथियों के साथ खेलों में जमकर रुचि ही नहीं दिखाता बल्कि अच्छा प्रदर्शन करता है और पिता के साथ खेती-बाड़ी के कार्यों में भी लगातार सहभागी रहता है। इस किशोर के इस जज्बे को देखकर लोग हैरत में रह जाते हैं। अरुण को एक अभिशप्त मां की कोख से ही मिला। जन्म से ही जांघों के पास से उसके दोनों पैर गायब थे।

अरुण को जन्म के वक्त देख पिता ओम प्रकाश व मां ममता देवी के तो मानों अरमान ही बिखर गये थे। ऐसे बच्चा भविष्य में क्या करेगा? कैसे उसका लालन-पालन होगा? कैसे उसके जीवन की गाड़ी आगे बढ़ सकेगी? जैसे तमाम सवाल उन्हें नित्य विचलित करते थे। मां की ममता तो अपने लाड़ले को इस रूप में देख भीग जातीं थीं। पैरों से विकलांग अरुण अपने माता-पिता का पहला पुत्र था। तीन बहनों एवं एक भाई के साथ रहने वाला अरुण आरंभिक सात साल तक तो अपने माता-पिता की ही देखरेख में बिस्तर पर पड़ा रहता था।

उसकी यह हालत माता-पिता के लिए देख पाना आसान नहीं था। सात साल की उम्र पार करने के बाद उसने किसी प्रकार से चलना सीखा तो मां-बाप की खुशी का ठिकाना न रहा। अरुण ने सात साल की उम्र में न सिर्फ चलना सीखा, बल्कि कुछ दिनों उपरांत ही अपनी हथेलियों के सहारे स्कूल भी जाने लगा। उसे स्कूल जाता देख न सिर्फ स्कूल के अन्य छात्र बल्कि क्षेत्रीय लोग भी उसके साहस को देखकर अचंभित होते थे। आज अरुण कक्षा आठ में अध्ययनरत हैं। तकरीबन दो वर्ष पूर्व उसे किसी संस्था द्वारा व्हीलचेयर दे दी गई तो अब वह व्हीलचेयर से ही स्कूल जाता है।

आश्चर्यजनक यह है कि दिव्यांग होने के बावजूद उसमें खेल के प्रति अभूतपूर्व जज्बा है। बिना पैरों के दौड़ लगाना, कबड्डी, सीढ़ियों पर उत्पात मचाना उसका प्रमुख शगल है।

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