लखनऊ। देश के दो सबसे प्रमुख किसान बाहुल्य राज्य उत्तर प्रदेश और पंजाब में विधानसभा चुनाव अपने शबाब पर है। पंजाब में जहां 4 फरवरी को होने वाले चुनाव को लेकर नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है वहीं उत्तर प्रदेश में पहले चरण का नामांकन चल रहा है। आम जनता को लुभाने के लिए चुनाव प्रचार भी तेज है।
चुनाव की इस बेला में सभी राजनीतिक पार्टियों के एजेंडे में किसान सबसे ऊपर हैं। किसानों का वोट लेने के लिए किसानों से लुभावने वादे किए जा रहे हैं। इस चुनाव में विभिन्न किसान संगठन और किसान नामधारी पार्टियां भी मैदान में आ चुकी हैं। उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे सरदार वीएम सिंह ने राष्ट्रीय किसान मजदूर पार्टी बनाकर ट्रैक्टर चुनाव चिन्ह के चुनाव प्रचार कर रहे हैं, वहीं खुद चुनाव लड़ने से परहेज करते हुए भारतीय किसान यूनियन ने खेती और किसानी के लिए एक प्रस्ताव पास करके कहा है कि जो दल उनके प्रस्ताव को मानेगा उसको समर्थन दिया जाएगा।
दो-तीन दिन पहले ही इलाहाबाद में आयोजित भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय चिंतन शिविर में किसानों की समस्यओं के निराकरण के लिए 11 प्रस्ताव पास किए गए। लेकिन इसके बाद भी चुनाव में किसानों के बीच जो उत्साह होना चाहिए नहीं है।
किसानों के मुद्दे सिर्फ पार्टियों के घोषणपत्र तक सीमित
उत्तर प्रदेश और पंजाब में 40 प्रतिशत किसान ओर 23 प्रतिशत खेती खेतिहर मजदूर मतदाता हैं। लेकिन इसके बाद भी विधानसभा चुनाव में जो उत्साह किसानों में होना चाहिए वो नहीं देखने को मिल रहा है। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेन्द्र मल्लिक ने बताया ''इस बार के चुनाव में उत्तर प्रदेश की जनता जहां पांच साल के अखिलेश यादव और ढाई साल के नरेन्द्र मोदी की कार्यकाल से खुश नहीं है। सरकार में आने से पहले इन लोगों ने जो वादे किसानों के साथ किए उसको पूरा नहीं किया। कर्ज माफी से लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर इन्होंने वादे बहुत किए लेकिन सरकार में आने के बाद उसको पूरा नहीं किए। ''उन्होंने कहा कि किसान भी अब समझ चुके हैं कि चुनाव के समय राजनीतिक पार्टियां जो वादा करती हैं वह सत्ता मिलने के बाद भूल जाती हैं। यही कारण है किसानों में उत्साह नहीं है। मेरठ जिले के अब्दुल्लापुर गांव के किसान ओमकार सिंह ने कहा ''पांच साल पहले चुनाव में समाजवादी पार्टी ने गन्ना मूल्य को 350 रूपए करने की बात की थी किसानों के कर्ज माफी का भी वादा किया था लेकिन सरकार बनने के बाद इन्होंने अपना वादा नहीं निभाया, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी किसानों के लिए अभी तक कोई ठोस काम नहीं किया।''
क्या इस बार बदलेगा इतिहास
देश की राजनीति में कृषि और किसानों को लेकर बड़े-बड़े संगठन बने और समय-समय पर यह संगठन राजनीति में भी उतरे लेकिन इनको जो सफलता मिलनी चाहिए नहीं मिली। इस बारे में किसान नेता धर्मेन्द्र मल्लिक ने बताया कि ''उत्त प्रदेश में किसानों की समस्याओं को लोकसभा और विधानसभा में पहुंचाने के लिए भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैट ने 1996 में भारतीय किसान यूनियन के राजनीतिक विंग भारतीय किसान कामगार पार्टी का गठन किया। राष्ट्रीय लोकदल के मौजूदा अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह को उस समय इस पार्टी की कमान सौंपी गई।
इस चुनाव में इस पार्टी ने आठ सीटें हासिल की लेकिन इसके बाद यह सफल नहीं हो पाई। “ किसान नेता अनिल मलिक इसके बाद साल 2004-5 में भारतीय किसान यूनियन ने बहुजन किसान दल का गठन किया। इस पार्टी के टिकट पर राकेश टिकैटत खतौली विधानसभा से चुनाव लड़े लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। इस बारे में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेन्द्र मल्लिक का कहना है कि पांच साल तक किसान अपनी समस्याओं से जूझता हुआ किसान रहता है लेकिन जब चुनाव आता है तो राजनीतिक पार्टियों की चमक-धमक और उसके बहकावे में आकर धर्म और जाति में बंट जाता है। जिसका सीधा फायदा राजनीतिक दलों को होता है और फिर पांच साल तक किसान पछताता रहता है। इस बार भी वीमम सिंह की राष्ट्रीय किसान मजूदर पार्टी चुनाव में कितना असर दिखाती है यह चुनाव नतीते बताएंगे।
राजनीतिक पार्टियों में दबाव बनाने के काम तक सीमित रहे हैं किसान संगठन
देश में किसानों के मुद्दे को आवाज देने के लिए भारतीय कम्नुनिस्ट पार्टी ने साल 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन किया। इसके बाद देश के विभिन्न समाजवादी संगठनों ने मिलकर हिंद किसान पंचायत और विभिन्न कम्युनिस्ट पार्टियों ने मिलकर संयुक्त किसान सभा बनाई। लेकिन किसानों का प्रभाव केन्द्र की राजनीति में 1977 के लोकसभा चुनाव के बाद जनता पार्टी की सरकार बनने पर पड़ा।
इस चुनाव में किसान सम्मेलन और किसान रैली आयोजित करके चौधरी चरण सिंह ने किसानों को संगठित करने का प्रयास किया। किसानों लाबी के इस बढ़ते कद की वजह से जनता पार्टी की सरकार में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने चौधरी चरण सिंह को उपप्रधानमंत्री बनाया। इसके बाद उत्तर प्रदेश में किसान महेन्द्र सिंह टिकैटत के नेतृत्व में 1988 में भारतीय किसान यूनियन का गठन हुआ। गैर राजनीतिक तोर पर इस संगठन ने किसानों को बहुत ताकत दी और नई दिल्ली के इंडिया गेट के बोट क्लब पर लाखों किसानों को इकट्ठा करके अपनी ताकत दिखाई।
इसके बाद महाराष्ट्र के किसान नेता शरत जोशी ने शेतकारी संगठन बनाकर किसानों का एकजुट किया। भारतीय किसान यूनियन और शेतकारी संगठन को मिलाकर 14 जुलाई 1989 को किसानों की एक अखिल भारतीय संस्था भारतीय किसान संघ बनाने की कोशिश हुई लेकिन दोनों नेताओं की टकराव की वजह से यह परवान नहीं चढ़ पाया। इकसे बाद अपनी सांगठिक कमजोरियों चलते किसान संगठन हाशिए पर चलते गए और आज स्थिति यह के केन्द्र ओर राज्य सरकारों की कृषि नीतियों और चुनाव को प्रभावित करने में किसान संगठन प्रभावशाली नहीं है।