खतरनाक: खेतों में जलाई जा रही पराली से शहरों की आबोहवा में घुल रहा जहर

Update: 2016-11-04 13:38 GMT
हरियाणा-पंजाब में जलाए जाने वाले धान के खेतों के चलते दिल्ली में प्रदूषण बढ़ गया है।

लखनऊ। दिल्ली के आसमान पर सुबह-शाम छाया रहने वाली धुंध से दिल्ली-एनसीआर के लाखों लोगों को सांस लेना मुश्किल हो रहा है। कोहरे जैसी दिखने वाली ये धुंध दिल्ली के पड़ोसी राज्यों में जलाए जाने वाले पराली का धुआं है, जिसने राजधानी में प्रदूषण के स्तर को कई गुना बढ़ा दिया है।

धान की फसल काटने के बाद हरियाणा-पंजाब और यूपी के किसान रबी की दूसरी फसल (गेहूं, आलू, सरसों) लेने के लिए धान की ठूंठें और पराली खेत में जला देते हैं। फसल के अवशेष जलाने से पैदा हुए इस धुएं से पिछले कई वर्षों से अक्टूबर-नवंबर में दिल्ली समेत कई राज्यों की आबोहवा में जहरीले तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है। सरकार ने कई वर्ष पहले ही फसलों के अवशेष जलाने को गैरकानूनी घोषित कर रखा है। पंजाब-हरियाणा में जुर्माने से लेकर जेल तक का प्रावधान है लेकिन हर साल ये प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। दिल्ली में छाई इस स्मॉग की चर्चा अमेरिका तक में है। न्यूयार्क टाइम्स ने इस खबर प्रकाशित की है।

न्यूयार्क टाइम्स से पंजाब के किसान हरजिंदर सिंह ने कहा, “ यदि सरकार चाह ले तो वह फसलों के अवशेष जलाने की इस पद्धति को बंद करा सकती है मगर आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है। उम्मीद है कि अगले साल इस संबंध में सरकार उचित कार्रवाई करेगी।”

उत्तर प्रदेश में भी किसान फसल काटने के बाद ठूंठों को जलाने में जरा भी गुरेज नहीं कर रहे हैं।बाराबंकी से 50 किलोमीटर दूर बरेढ़ी गाँव के अवतार सिंह हर साल लगभग 30 बीघा खरीफ की फसल की खूँटियों को जला देते है। अवतार सिंह की तरह हीरा सिंह भी हैं। वो भी 25 से 30 बीघा फसल प्राप्त करने के बाद खेत में बची खूँटियों को जला देते हैं। मुकेश कुमार वाजपेई का कहना है, “फसल प्राप्त करने के बाद आवश्यकतानुसार उसमें बचे पैरे को रख लिया जाता है। उसके बाद हम गाँव वालों से बोल देते है कि वो अपने जानवरों को चरा लें। उसके बाद जो भी बचता है उसको जला दिया जाता है क्योंकि खूंटियों से फसल अच्छी पैदा नहीं हो पाती है। खेत में जंगल अधिक हो जाता है जो आलू बोने में काफी दिक्कत देता है इसलिए हमें मजबूरन खेत को जलाना ही पड़ता है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने फसलों के ठूंठों को जलाने पर पाबंदी लगा रखी है लेकिन किसान इसको भी नहीं मान रहे हैं। इससे पहले दिल्ली और इसके पड़ोस में धुंध रोकने के लिए फसलों की कटाई के बाद खूंटी जलाने पर किसानों पर जुर्माना तय करने वाले राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश को कृषि अपशिष्ट पैदा होने और इनके निपटान के लिए उठाए गए कदमों के बारे में सूचित करने का निर्देश दिया है। एनजीटी अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने इन तीनों उत्तर भारतीय राज्यों को खेतों से कृषि अपशिष्ट के निपटान के लिए कितने उपकरण खरीदे गए, इस बारे में हलफनामा दाखिल करने को कहा है। पीठ ने कहा, ‘‘ इस बीच, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश कृषि अपशिष्ट के कुल सृजन, इनका कहां उपयोग किया जा रहा है और कृषि अपशिष्ट की समस्या से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं, इस संबंध में व्यापक ब्यौरा दाखिल करेंगे।’’

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के मुताबिक, नई दिल्ली से उत्तर दिशा में 100 मील दूर पंजाब में हाल ही में धान की कटाई के बाद शेष बचे करीब 320 लाख टन भूसी और ठूंठ जलाए हैं। गाँवों में किसानों द्वारा फसल की ठूंठ को जलाने से राजधानी नई दिल्ली के करीब 20 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। इस दौरान जो प्रदूषण हुआ है वह पिछले सप्ताह के प्रदूषण के आंकड़ों में अचानक हुए इजाफे से सामने आया है। इस दौरान करीब 20 एकड़ के क्षेत्रफल में फैले धान की खेतों में फसल के अवशेष जलाए गए। खेत के क्षेत्रफल के मुताबिक, यदि इन किसानों पर जुर्माना लगाया जाए तो एक पर ढाई हजार से 15 हजार रुपए का जुर्माना लगेगा।

बाराबंकी में जिले में जलाया गया एक खेत। फोटो- कविता

जानें वायु प्रदूषण के मानक के आधार पर स्वास्थ्य

दायरा वर्ग स्वास्थ्य पर प्रभाव

0-30 अच्छा अप्रभावित

31-60 संतुष्टि श्वांस की बीमारी वालों होती है दिक्कत

61-90 मध्यम श्वांस, फेंफड़े, अस्थमा और हृदयरोगियों को होती है दिक्कत

91-150 खराब आमजनों को भी सांस लेने में बढ़ने लगती है दिक्कत

151-250 बहुत खराब सांस संबंधी बीमारी गहराने का बढ़ने लगता है खतरा

250+ खतरनाक स्वस्थ लोगों को भी अपनी चपेट में लेकर करने लगता है बीमार

कन्नौज में जमकर जलाए जा रहे अवशेष

कन्नौज। जिले में फसलों के अवशेष खूब जलाए जा रहे हैं। इस पर कार्रवाई का शासनादेश है, पर जिले में अब तक एक भी कार्रवाई नहीं की गई है। इसकी जिम्मेदारी थानाध्यक्ष और कोतवाली प्रभारी निरीक्षक के अलावा एसडीएम को दी गई है। अवशेष जलाने से एक ओर जहां मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर प्रभाव पड़ता है तो दूसरी ओर पास के खेतों में खड़ी फसल और घरों में भी आग का खतरा रहता है। इस बाबत जिला कृषि अधिकारी नीरज रान का कहना है कि पुरानी परम्परा के तहत किसान ऐसा करते हैं। किसानों का मानना है कि अवशेष जलाने के बाद जो राख बचती है वो खेतों में फायदा करती है पर वैज्ञानिक के कारणों से पता चला है कि ठूंठ और अन्य अवशेष जलाने से नुकसान ही है। तत्कालीन जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने अवशेष जलाने को रोकने के लिए एक आदेश भी सम्बंधित अधिकारियों को जारी किया था।

फैजाबाद में धुआं बन रहा परेशानी का सबब

फैजाबाद। प्रशासन की रोक के बावजूद किसान आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए सरेआम खेतों में पराली जला रहे हैं। खेतों से उठता धुआं जहां वातावरण को दूषित कर रहा है वहीं गाँव और हाईवे से गुजरने वालों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। देखादेखी किसान खेतों में पड़े कबाड़ को जला रहे हैं और प्रशासनिक अधिकारी दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं रहे हैं। धान की कटाई का सीजन लगभग अंतिम चरण में पहुंच गया है। खेतों में पड़े धान के अवशेष धूं-धूं कर जल रहे हैं। फैजाबाद के जिला कृषि अधिकारी राजेश यादव कहते हैं कि हम लोग पराली जलाने से रोकने के लिए छोटी-छोटी गोष्ठी के माध्यम से किसानों को जागरूक कर रहे हैं और उससे होने वाले लाभ और हानि के बारे में भी बताया जाता है।

मजदूरों के अभाव के चलते पराली जला रहे किसान

लगातार घट रही गाँवों में गाय, बैल और पालतू जानवारों की संख्या और बढ़ती महंगाई भी एक सबसे बड़ी वजह खेत में अवशेष जलाने का कारण माना जा रहा है। एक तरफ जहां सरकार की मनरेगा योजना ने बेरोजगारी को कम किया है वहीं आज खेतों में खड़ी फसलों की कटाई मजदूरों के अभाव के चलते अब लोग मशीनों से करते हैं। मशीनों से कटाई में धान और गेहूं की तो अलग हो जाती है लेकिन तना नहीं कट पाता है इसलिए बचे हुए अवशेषों को किसानों को खेत में ही जला दे रहे है।

रायबरेली उप कृषि निदेशक महेंद्र सिंह ने बताया कि जिले के किसानों से बराबर अपील की जाती है कि वो फ़सल अवशेष खेतों में ना जलाएं इससे मिट्टी में मौजूद मित्र जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। महेंद्र सिंह के अनुसार जो किसान ऐसा कर रहे हैं वो स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं।रायबरेली उप कृषि निदेशक महेंद्र सिंह ने बताया कि जिले के किसानों से बराबर अपील की जाती है कि वो फ़सल अवशेष खेतों में ना जलाएं इससे मिट्टी में मौजूद मित्र जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। महेंद्र सिंह के अनुसार जो किसान ऐसा कर रहे हैं वो स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं।

गर्भवतियों के स्वास्थ्य पर हो सकता है असर

दिल्ली में पराली जलाने की वजह से लोगों में श्वास रोग बढ़ रहा है। विशेषज्ञों ने खास तौर से फेफड़े की बीमारी वाले लोगों को घरों के अंदर रहने की चेतावनी दी है। बीएलके अस्पताल के श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विकास मौर्य ने कहा ज्यादा कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से दिल का दौरा और फेफड़े का कैंसर हो सकता है। उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाओं में प्रदूषण का प्रभाव भ्रूण वृद्धि पर पड़ सकता है। यह सरकार का कार्य है कि आवश्यक कदम उठाए। इसमें लोगों को भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। श्वांस रोग विशेषज्ञ ने कहा, “लोगों को बाहर जाने से बचना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो मास्क एन-95 या एन-99 का इस्तेमाल करना चाहिए। माता-पिता को बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि जहर भरी हवा बच्चों के फेफड़े के विकास को प्रभावित कर सकती है।”

हाईकोर्ट के हैं सख्त आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बीडी अहमद व आरुणेश कुमार की बेंच ने पराली जलाने के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के अधिकारों को निर्देश दिए थे कि खेतों में फसलों के अवशेष जलाने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाए क्योंकि जब जक पराली जलाने पर रोक नहीं लगेगी, तक तक दिल्ली और आसपास के इलाके में फैले प्रदूषण का स्तर कम नहीं होगा। कोर्ट ने राज्य सरकारों से भी तल्खी से कहा था कि किसानों को वोट बैंक न समझिये, पराली जलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करें।

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