विकासशील देशों के लिये आपदा बड़ा मुद्दा, जलवायु परिवर्तन वार्ता में अड़े अमीर देश

पेरिस नियमावली में लगा अड़ंगा, अमीर देशों ने आर्थिक मदद और आपदाओं पर नुकसान से झाड़ा पल्ला, विकासशील देशों के लिये आपदा बड़ा मुद्दा

Update: 2018-12-14 10:14 GMT

पोलैंड से गाँव कनेक्शन

पोलेंड में चल रहे जलवायु परिवर्तन के आखिरी दिन मायूसी देखने को मिली, क्योंकि अमीर देशों ने आर्थिक मदद और आपदाओं पर नुकसान से पल्ला झाड़ लिया है। यह गरीब और विकासशील देशों के लिए चिंता का विषय है।

अमेरिका, रूस, कुवैत और सऊदी अरब जैसे देश तेल कंपनियों के हितों के लिये लगातार पैरवी कर रहे हैं। गौरतलब है कि इन देशों के आर्थिक हित ऐसे ईंधन को बेचने से जुड़े हैं। अमीर देशों में औद्योगिक क्रांति के बाद से वायुमंडल में फैले कार्बन की वजह से धरती का तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों की संस्था आईपीसीसी ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में इन ख़तरों से आगाह किया है और कहा है कि अगर 2030 तक धरती का तापमान रोकने के लिये पर्याप्त कदम नहीं उठाये गये तो उसके भयानक परिणाम होंगे।

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जलवायु परिवर्तन सम्मेलन को कवर करने पहुंचे आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ राम किशन ने बताया, " जिस तरह से हम लोगों ने देखा कि विकसित देशों ने हर चीज को होल्ड करके रखा है। यह बात आने वाले समय में गरीब देशेां के लिए काफी चिंताजनक है। आपदाओं से निपटने के लिए गरीब देशों के पास न तो पैसा और न ही तकनीकी।

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उन्होंने आगे बताया, " केरल में जब बाढ़ आई थी तो इसका असर यूपी और बिहार से आने वाले लोगों के रोजगार पर देखने को मिला था। आने वाले समय में जब आपदा आएगी तो इसके परिणाम गरीब देशों पर ज्यादा देखेन को मिलेंगे। आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन का असर बहुत बुरा पड़ने वाला है। खासकर गरीब किसानों को सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। मेरा मामना है इस तरह के सम्मेलनों में गरीब देशों का भी ख्याल रखना चाहिए।

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जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में 196 देश हिस्सा लिया। इस सम्मेलन की वार्ता काफी जटिल होती है और इसमें देशों ने अपने हितों और क्लाइमेट चेंज के खतरों की समानता के हिसाब से कई गुट बनाये हैं। मिसाल के तौर पर बहुत गरीब देशों का ग्रुप लीस्ट डेवलप्ड कंट्रीज यानी LDC कहा जाता है तो एक जैसी सोच वाले विकासशील देशों का समूह लाइक माइंडेड डेवलपिंग कंट्रीज LMDC कहा जाता है। लेकिन सबसे बड़ा समूह G-77+China है जिसमें भारत और चीन समेत करीब 135 देश हैं। 

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