मरीजों की जिन्दगी में मिठास फैलाएगा यह ‘हलवाई’ केजीएमयू में जीते 11 गोल्ड मेडल

Update: 2016-12-26 18:08 GMT
अभिषेक गुप्ता

दरख्शां कदीर सिद्दीकी

लखनऊ। यह सफर इतना आसान नहीं था। घर में छोटी सी मिठाई की दुकान के साथ बेटे को डाक्टर बनाने का ख्वाब रखना चाँद पाने की ख्वाहिश से कम नही है। अक्सर कहा जाता है, डाक्टर, इंजीनियर बनना गरीबों के पेशे नहीं है। केजीएमयू के 112वें स्थापना दिवस पर बीडीएस विभाग में 11 गोल्ड और एक सिल्वर पर अपना हक जमाने वाले अभिषेक गुप्ता भी इनमें से एक हैं।

आज बेटे ने पूरा किया सपना

अभिषेक बताते हैं कि परिवारिक स्थिति अच्छी नही है। पिता जी एक मामूली हलवाई हैं। पैसे की वजह से पिता जी ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाए। उनका डाक्टर बनना सपना था, लेकिन वह भी पूरा नहीं हो पाया। तो बस उन्होंने सोचा कि बेटे को डाक्टर बनाया जाए और आज मैं उनके सपने को पूरा करने की कोशिश कर रहा हूँ। आगे की पढ़ाई विदेश में करना चाहता हूँ और वापस आकर गांव वालों का इलाज करना है।

अविनाश डी गौतम

गरीबों के लिए होना चाहिए आरक्षण

वहीं, एमबीबीएस में ग्यारह गोल्ड और दो सिल्वर जीतने वाले अविनाश डी गौतम ने कहा कि गरीबों के लिए आरक्षण होना चाहिए। जाति के नाम पर आरक्षण देने से अच्छा है, गरीबों को आरक्षण दिया जाए। हालांकि मेरा एडमिशन डाक्टरी में केटेगरी के माध्यम से हुआ है। फिर भी मैं चाहता हूँ आरक्षण को धीरे-धीरे करके खत्म कर देना चाहिए। आरक्षण की वजह से कई बार प्रतिभा से परिपूर्ण लोगों को डाक्टरी में एडमिशन नही मिल पाता है।

साैम्या जौहरी

गाँवों में करना चाहती हूं काम

लोगों को लगता है कि जो लोग ज्यादा पढ़ते है, वह अपनी जिन्दगी को इन्जाय नही करते हैं। मैं अपनी जिन्दगी में खूब एंज्वाय करती हूँ। बीडीएस विभाग की सौम्या जौहरी ने दो गोल्ड और पाँच सिल्वर मेडल मिले। उनका कहना है कि ऐसा नहीं कि डाक्टर पढ़ते ही रहते हैं, वह अपनी जिन्दगी में इन्जाय भी करते हैं। मैं गाँव में रहकर मुँह के कैंसर के मरीजों का इलाज करना चाहती हूँ। अगर उनको जागरूक किया जाए तो गांव वालों में इस बीमारी की प्रतिशतता को कम किया जा सकता है।

मोहम्मद ताबिश

डॉक्टर की कमी से गाँव में हो जाती है मौत

गाँवों में कोई डाक्टर नही था तो सोचा क्यों न डाक्टर बनकर गांव वालों की सेवा की जाए। मुजफफरनगर के निरालानगर निवासी मोहम्मद ताबिश के गांव में कोई बीमार हो जाए तो दूर-दूर तक डाक्टर नही मिलता था। उसका इलाज करने के लिए कई बार तो डाक्टर के अभाव में लोगों की मौत तक हो जाती थी। गांव में डाक्टर न होने की कमी कही न कही मुझे खलने लगी और इससे ही मुझे डाक्टर बनने की प्रेरणा मिली। केजीएमयू के स्थापना दिवस पर ताबिश को तीन गोल्ड और दो सिल्वर और 20 हज़ार रूपये नगद पुरस्कार दिया गया।

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