भारत में प्रतिकूल होती जा रही है अकादमिक आजादी की भावना : अमर्त्य सेन 

Update: 2017-02-22 18:32 GMT
नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन। 

नई दिल्ली (भाषा)। अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का कहना है कि भारत में विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता की अवधारणा तेजी से प्रतिकूल होती जा रही है। उनकी इस टिप्पणी को जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के परिसरों में छात्रों के विरोध-प्रदर्शन की पृष्ठभूमि में देखा जा रहा है।

नोबेल पुरस्कार विजेता सेन के मुताबिक भारत में आजादी और भाईचारे की भावना कठिन समय का सामना कर रही है और लोग ‘राष्ट्रविरोधी' कहे जाने के डर से सरकार के खिलाफ बोलने से घबराते हैं।

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उन्होंने कल यहां इंडिया हैबिटेट सेंटर में अपनी पुस्तक ‘कलेक्टिव च्वॉइस एंड सोशल वेल्फेयर' के विस्तृत संस्करण के विमोचन के मौके पर कहा, ‘‘यूरोप और अमेरिका में स्वायत्तता और अकादमिक आजादी के महत्व को आसानी से समझा जाता है, लेकिन भारत में यह सोच तेजी से प्रतिकूल होती जा रही है।'' अर्थशास्त्री ने कहा कि सरकार के लिए जरूरी है कि किसी शिक्षण संस्थान को आर्थिक मदद देने और उसके कामकाज में हस्तक्षेप करने में अंतर होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘प्रादेशिक विश्वविद्यालयों के लिए पैसा सरकार से आता है। सरकार इसे खर्च करती है लेकिन उस पर सरकार का स्वामित्व नहीं होता। सरकार इस धन को खर्च करती है, इसका यह मतलब नहीं है कि सरकार को विश्वविद्यालयों के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लेने चाहिए।''

सेन ने सीधा उल्लेख तो नहीं किया लेकिन जेएनयू प्रशासन द्वारा एक विवादास्पद मुद्दे पर छात्रों को संबोधित करने को लेकर शिक्षकों को नोटिस जारी किए जाने के मुद्दे को वह छूते दिखे।

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