नई दिल्ली (भाषा)। सरकार के बड़े नोटों को चलन से बाहर करने के निर्णय से हालांकि काला धन पूरी तरह से तो समाप्त नहीं होगा, लेकिन इससे बाजार में प्रचलित काली मुद्रा पर अंकुश जरूर लग जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाजार में प्रचलित 500 और 1,000 रुपए के बड़े नोटों की कानूनी वैधता समाप्त करने की 8 नवंबर को घोषणा की थी जो उसी दिन रात्रि 12 बजे से प्रभावी हो गई। इसके बाद अभी तक चलने वाले नोट 11 नवंबर के बाद महज कागज के टुकड़े रह जाएंगे। हालांकि लोग अपनी पहचान बताकर एक निश्चित राशि अपने बैंक खाते में जमा करा सकते हैं।
‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया' में भारतीय शाखा के प्रमुख एवं कार्यकारी निदेशक रामनाथ झा ने कहा, ‘‘सरकार का फैसला काली मुद्रा के खिलाफ है, काले धन के खिलाफ नहीं।''
‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया' भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था है।
जिस पैसे पर सरकार को कोई टैक्स नहीं दिया जाता है अथवा सरकार से छुपा कर रखा जाता है, वह काला धन कहलाता है। काला धन गैर-कानूनी अथवा अवैध तरीके से एकत्रित किया हुआ हो सकता है। यह नोटों की शक्ल में हो सकता है, प्रापर्टी में लगाया गया हो सकता है, आभूषण के रूप में हो सकता है, बेनामी सौदों में भी काले धन का जमकर प्रयोग होता है। सरकार को बिना कर अदा किए रुपयों के रूप में मौजूद नगदी को काली मुद्रा कहते हैं, जबकि काली मुद्रा के जरिए बनाई गई चल-अचल संपत्ति काला धन कहलाती है।रामनाथ झा प्रमुख एवं कार्यकारी निदेशक ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया’ में भारतीय शाखा
रामनाथ झा ने बताया कि मोदी सरकार के इस फैसले से सिर्फ बाजार में मौजूद काली मुद्रा पर फर्क पड़ेगा, काले धन पर नहीं। उन्होंने बताया कि काली मुद्रा के निवेश से जो चल अचल संपत्ति बनाई गई है उस पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने बताया कि एक ओर तो काली मुद्रा या नोटों को निशाना बनाकर काली मुद्रा पर अंकुश लगाने का प्रयास किया गया है, वहीं दूसरी ओर 2,000 रुपए का नोट जारी करके इसे संदिग्ध भी बना दिया गया है, बड़े नोट जारी करने के एक-दो दशक बाद फिर से बाजार में काला धन आने की आशंका भी है।
झा ने बताया, ‘‘सरकार का यह कदम ज्यादातर फेक इंडियन करेंसी नेटवर्क' (एफआईसीएन) को ध्वस्त करने के लिए उठाया गया है।''
अभी कई कड़े कदम उठाने की जरुरत
रामनाथ झा ने सरकार की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और इस प्रकार के कड़े कदम की सराहना करते हुए कहा कि देश की अर्थव्यवस्था से अघोषित पैसे को खत्म करने के लिए अभी कई कड़े कदम उठाने की जरुरत है।
नीति आयोग के सदस्य विवेक देबराय ने कहा, ‘‘सरकार का यह फैसला फिलहाल बाजार में मौजूद और प्रचलित काली मुद्रा रोकने के लिए है, यह देश के बड़े आर्थिक सुधार का एक हिस्सा मात्र है।'' देबराय ने कहा, ‘‘सरकार ने कर चोरों से करीब पांच लाख करोड़ रुपए वसूलने का लक्ष्य बनाया है, जिसमें से आयकर के जरिए और कर चोरों को माफी योजना के तहत अभी तक करीब एक लाख पच्चीस हजार करोड़ रुपए एकत्रित किया जा चुका है। सरकार के पुराने नोटों को बंद करने से भी पर्याप्त कर एकत्रित होने की संभावना है।''
उन्होंने कहा कि हालांकि यह एक अनुमान है और इस प्रकार के प्रयासों से किसी भी राशि का वास्तविक मूल्यांकन करना बहुत मुश्किल है।
बड़े नोटों को पूरी तरह से बाजार से हटाना बहुत मुश्किल है और इससे छोटे कारोबार प्रभावित हो सकते हैं।’’ उन्होंने बताया कि सरकार नकदीरहित भुगतान की दिशा में काम कर रही है और इसके बारे में भी जल्द ही कुछ घोषणाएं हो सकती हैं।विवेक देबराय सदस्य नीति आयोग (दो हजार रुपए के नोट पर कहा)
प्रधानमंत्री मोदी की ओर से बड़े नोट बंद करने की घोषणा के बाद लोगों में पिछले एक दो दिन से अफरा-तफरी का माहौल है, हालांकि आज से बैंकों और एटीम से पैसा मिलना शुरू हो गया है, लेकिन अभी यह सुचारु रूप से नहीं है, ग्रामीण इलाके के लोगों को ज्यादा परेशानी हो रही है, जहां दो-तीन गाँवों के बीच एक बैंक या डाकघर है।
रामनाथ झा ने कहा, ‘‘सरकार ने जनधन योजना के तहत ग्रामीणों को बैंकिंग तंत्र से जोड़ने का प्रयास किया है, उनका बैंक खाता तो खुल गया है, लेकिन अभी उन्हें प्लास्टिक मनी के इस्तेमाल के लिए जागरुक और शिक्षित किए जाने की जरुरत है।''
उन्होंने कहा, ‘‘2,000 रुपए का नोट समझ से परे है, इससे तो काली मुद्रा की जमाखोरी ज्यादा आसान होगी। 2,000 रुपए का नोट आम आदमी के लिए नहीं है और इसका इस्तेमाल सिर्फ संपन्न लोग ही कर सकते हैं और संपन्न लोग तो प्लास्टिक मनी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, ऐसे में यह उनके लिए भी ज्यादा काम का नहीं होगा।''