इन पेड़ों पर फल नहीं, लटकते हैं सपनों के झोले 

Update: 2016-10-18 16:31 GMT
डालीबाग के तिलक मार्ग पर इन पेड़ों पर लटके नजर आएंगे झोले

लखनऊ। सामने है मंत्री आवास। यहां से तेज रफ्तार में गुजरती महंगी गाड़ियों के सामने लाइन से लगे हुए पेड़ और उन पर झोले लटके हुए देखें तो आपको अचरज जरूर होगा। ये झोलों के पेड़ तो हो नहीं सकते, मगर ये तय है कि राजधानी में मेहनत का फल पाने की इच्छा रखने वालों की जमापूंजी इन्हीं झोलों के भीतर होती है। डालीबाग के तिलक मार्ग पर हर रोज ऐसे सैकड़ों झोले पेड़ों पर लटके देखे जा सकते हैं। यहां राजधानी आकर अपना एक ख्वाब सजाए हुए मजदूरों के सपने रोज टूटते और बिखरते हैं। दिन में जब काम पर निकलते हैं तो अपने कुछ कपड़े और खाना बनाने के बरतनों को इन झोलों में बंद कर के पेड़ पर लटका देते हैं ताकि कबाड़ बीनने वाले न उठा ले जाएं।

आज तक नहीं गिरे महंगी गाड़ियों के शीशे

डालीबाग रोड के किनारे फुटपाथ पर जिन्दगी बीताने वालों की जिन्दगी उनके सपनों के दर्द को साफ बयां करती है। पेड़ों पर लटकते झोले और सड़क के पत्थरों से बने चूल्हों को सड़क से निकलने वाला हर शख्स देखता है, लेकिन देखकर भी लोग अंजान बने रहते हैं। मंत्रियों की गाड़ियां हर रोज गुजरती हैं। मगर उनको देखने के लिये उनकी कारों के शीशे आजतक नही गिरे। गरीबी और पैसे की आस की लकीरें उनकी चेहरे पर साफ झलकती हैं।

कबाड़ी चोरी कर ले जाते हैं झोले

दीवारों पर रख देते हैं झोले

हर रोज इनकी सुबह 6 बजे होती है और दिनभर मजदूरी करके इनकी शाम गुजर जाती है। खुद का पेट पालने के लिये ये हर रोज खुद से बनाये हुये चूल्हों पर खाना बनाते हैं। इनके झोले पेड़ों पर इसलिये लटके होते हैं क्योकि कबाड़ी चोरी कर ले जाते हैं। साल के 365 दिन ये गरीब ऐसे ही सड़क किनारे पड़ रहते हैं। ठंड हो या बरसात इनकी जिन्दगी यहीं गुजरती है। बहराइच जिले के नानपारा में रहने वाले मिथुन ने बताया कि सुबह 8 बजे उठकर श्री राम टावर के पास खड़े हो जाते हैं। कभी काम होता है तो कभी बिना काम के वापस आ जाते हैं। हमारे घर वालों के पास इतने पैसे नही कि वे हमें पढ़ा सकें।

नहीं है किसी के पास जवाब

दीवारों पर रख देते हैं झोले

वहीं मिहींपुरवा कस्बे के गायघाट निवासी हेमराज ने बताया कि हमारी पहुंच इतनी कहां कि सरकार हमारी सुन सके। कुछ लोगों ने रोड की किनारे रहते हुये कच्चे ईटों के घर भी बना लिये हैं। जो कभी भी हादसे का सबब बन सकते हैं। गरीबों की इस हालात का जिम्मेदार किसे माने इस बात पर सिर्फ सवाल खड़े किये जा सकते हैं। इसका जवाब किसी के पास नही है।

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