नोटबंदी का असर: सब्जी मंडियों में पसरा सन्नाटा, किसान बेहाल

Update: 2016-11-19 22:16 GMT
औने-पौने दाम पर अपनी सब्जियां बेचने को मजबूर, नहीं मिल रहे खरीदार।

रिपोर्टिंग टीम: लखनऊ से अश्वनी कुमार निगम, बाराबंकी से अरुण मिश्रा और वीरेन्द्र सिंह, झारखंड से रोहित

लखनऊ। काकोरी ब्लॉक के भरोना गाँव के नंद किशोर प्रधान रोजाना एक ट्रक गोभी को लेकर लखनऊ के नवीन सब्जी मंडी दुबग्गा आ रहे हैं, लेकिन उनकी गोभी को सही खरीदार नहीं मिल रहा है। इस कारण वह औने-पौने दाम में अपनी गोभी को बेच रहे हैं। ये हाल केवल नंद किशोर का नहीं है, प्रदेश के लगभग सभी सब्जी किसान नोटबंदी के बाद इस समस्या से जूझ रहे हैं। साथ ही बिहार और झारखंड की सब्जी मंडियों का भी यही हाल है। खरीदार न मिलने के कारण किसान अपनी लागत से भी कम दाम में अपने उत्पाद को बेचने पर मजबूर हो गए हैं। नंदकिशोर का कहना है, "जब से से एक हजार और 500 की नोटबंदी हई है हमारी सब्जियों को खरीदने के लिए व्यापारी आगे नहीं आ रहे हैं क्योंकि उनके पास नगदी नहीं है।"

एक ट्रक लहसुन लेकर आएं, लेकिन कोई खरीदार नहीं

लखनऊ की बड़ी सब्जी मंडी दुबग्गा में लखनऊ के 150 किलोमीटर के दायरे में आनेवाले किसानों का कुछ ऐसा ही हाल है। उनका कहना है कि यह सब्जियों का मौसम है। मैनपुरी के कुरावली से लहसुन को बेचने के लिए नवीन सब्जी मंडी पहुंचे मोहम्मद इरफान का कहना है कि एक ट्रक लहसुन लेकर आएं हैं, लेकिन उसका कोई खरीदार नहीं है जिससे वह मंडी निराश बैठे हैं।

सोचा था सहालग के समय खूब बिकेंगी सब्जियां

बाराबंकी जिले के सब्जी किसानों की कुछ ऐसा ही दुर्दशा है। कस्बा बेलहरा के किसान सन्तराम मौर्या कहते हैं, "इस समय हम लोगों ने फूल गोभी, पत्तागोभी, शिमला मिर्च, बैगन, सेम जैसी कई हरी सब्जियों की खेती ये ध्यान में रखकर की थी कि सहालग के समय अच्छा पैसा मिलेगा, लेकिन बडी नोटों के बन्द होने से खरीदने वालों की संख्या कम हो गई और अब इन सब्जियों को सस्ते दामों में बेचने के लिए मजबूर हैं।

भाड़ा तक दे न पाने की नौबत

सब्जी मंडी में पूरा व्यापार नकदी का होता है। यहां पर किसानों को उनकी सब्जियों के बदले नकद पैसा मिल जाता है, लेकिन सब्जियों के बड़े आढ़तियों के पास पैसा नहीं है जिससे वह चाहकर भी सब्जियों को नहीं खरीद पा रहे हैं। इस मंडी के थोक के बड़े सब्जी व्यापारी शहनवाज का कहना है कि जब से नोटबंदी हुई है, उन लोगों के पास इतनी नकदी नहीं है कि वह लोग किसानों का सब्जी खरीद सकें, स्थिति यह है कि बाहर से ट्रकों से आने वाली सब्जियों के वह लोग भाड़ा तक नहीं दे पा रहे हैं।

घटकर व्यापार रह गया एक तिहाई

लखनऊ की नवीन सब्जी मंडी दुबग्गा में 500 से ज्यादा थोक सब्जियों के आढ़ती हैं। यहां पर एक हजार से ज्यादा फुटकर सब्जी व्यापारी हैं। आसपास के गाँवों से यहां एक दो हजार किसान अपनी सब्जी लेकर पहुंचते हैं। इसके साथ ही यहां पर रोजाना 25 ट्रक आलू, 30 ट्रक प्याज, 10 ट्रक गोभी, 12 ट्रक टमाटर और 40 ट्रक हरी सब्जियों बाहर से आती हैं, लेकिन जब से नोट बंदी हुई हैं यहां पर सब्जियों की आवक कम हो गई है। इस बारे में यहां के मटर और टमाटर के थोक व्यापारी राकेश यादव का कहना है कि उनका यहां व्यापार शुद्ध रूप से नकदी पर आधारित है। अभी तक ऑनलाइन या स्वाइप मशीन को इस्तेमाल नहीं होता क्योंकि गाँव से आने वाले किसान इसको लेकर सहज नहीं है।

उर्वरक के लिए वसूले जा रहे ज़्यादा पैसे

बाराबंकी में उर्वरक की कुछ प्राइवेट दुकानों पर भी किसानों से ज्यादा रुपए वसूले जा रहे हैं। डीएपी का सरकारी रेट 1010 रुपए है, वहीं प्राइवेट दुकानदार 1040 से 1050 रुपए में उर्वरक दे रहे हैं। सिसवारा के किसान मिंटू मिश्रा व लक्ष्मीकांत मिश्रा ने बताया कि जब हम दुकान पर खाद लेने गए तो दुकानदार ने कहा कि नई करेंसी पर 1010 की खाद मिलेगी और पुरानी करेंसी पर 1050 की मिलेगी, हमारी जरूरत थी इसलिए 1050 रुपए देकर उर्वरक खरीदा।

मजबूरी में सब्जी फेकने पर मजबूर हैं किसान

नोटबंदी की वजह से यूपी सहित बिहार झारखंड के सब्जी किसान समस्या से जूझ रहे हैं। सही खदीदार न मिलने के कारण वह अपनी सब्जियां औने-पौने दाम में बेच रहे हैं। सब्जी खरीदने वाले ग्राहकों की संख्या काफी कम है जिससे सब्जी के दाम अचानक कम हो गए हैं इसके बाद भी जब सब्जी नहीं बिकती तो किसान सड़क पर सब्जी फेंक कर चले जाते हैं। सब्जी उगाने वाले मोहम्मदपुर के किसान गयाप्रसाद ने बताया कि इस समय सब्जी का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में हो रहा है, लेकिन पहले से लगभग 80 प्रतिशत बिक्री कम हो गई है जिससे भारी नुकसान हो रहा है। यह कच्चा माल है इसे ज्यादा दिनों तक रखा भी नहीं जा सकता।

सब्जियां बेचकर लागत निकालने का प्रयास कर रहे किसान

बाराबंकी के कस्बा बेलहरा के किसान सन्तराम मौर्या कहते हैं, ‘इस समय हमारे पास फूल गोभी, पत्तागोभी, शिमला मिर्च, बैंगन, सेम जैसी कई हरी सब्जियों की खेती को ध्यान में रखकर किया गया था कि सहालग के समय अच्छा पैसा मिलेगा लेकिन बड़ी नोटों के बन्द होने से सब्जी खरीदने वालों की संख्या कम हो गई और अब इनको सस्ते दामों में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।’ इसी कस्बे के दूसरे किसान कुंदन राजपूत बताते हैं, ‘तैयार हरी सब्जियों को ज्यादा दिनों तक खेतों में रोका भी नहीं जा सकता है इसलिए अब इन सब्जियों को बेचकर लागत निकालने का संघर्ष कर रहे हैं।’ सब्जियां बेचने वाले दुकानदार रामनिवास कहते हैं कि जो सब्जियां हम किसान से सीधे खेत से लाते हैं, उनके दाम घट गए हैं पर जो व्यापारियों के पास पहले से स्टॉक सब्जियां हैं जैसे प्याज, लहसुन उनके दामों में वृद्धि हो गई है।

आलू पर नोटबंदी की मार

गोरखपुर में इस समय खेतों में तैयार हो रही आलू की फसल पर भी नोटबंदी का असर पड़ा है। किसान फुटकर पैसे न होने और 500 व 1000 रुपए के नोट पर बंदिश की वजह से दवाओं का छिड़काव नहीं कर पा रहा है। वहीं पैसे न होने से कई जगह गेहूं के बीज खरीदने में भी परेशानी आ रही है।

झारखंड सबसे बड़ी सब्जी मंडी में एक हफ्ते से नहीं पहुंचा प्याज

राजधानी स्थित पंडरा सब्जी मंडी में नोटबंदी के असर से व्यापार और किसानों पर सीधा असर पड़ा है। यहां के आलू-प्याज के थोक व्यापारी अजय अग्रवला ने बताया कि यहां बंगाल से 30 ट्रक आलू और नासिक से 25 ट्रक प्याज आता है लेकिन पिछले एक हफ्ते से इसक मंडी में प्याज और आलू की सप्लाई ठप है। इसी तरह जमशेदपुर के गाँव पटमदा में जहां से सारे जमशेदपुर और बिहार बंगाल के लिए सब्जियों की आपूर्ति की जाती है, नोट बंदी से खुदरा व्यापारियों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है, वैसे तो बाजार में नोट बंदी से बिक्री कम हो गई है, सब्जियों को फेंकना पड़ रहा है।

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