जानें आखिर क्यों बार-बार पटरी से उतर जाती हैं ट्रेनें, क्यों होते हैं हादसे

Update: 2016-11-20 20:44 GMT
फोटो साभार: गूगल।

लखनऊ। कानपुर देहात के पुखरायां इलाके में हुआ दर्दनाक रेल हादसा इसलिए हुआ क्योंकि ट्रेन पटरियों से उतर गई थी। ये पहला मामला नहीं है जब ट्रेन पटरी से उतरी हो, इससे पहले भी कई हादसे ट्रेन के डीरेल (पटरियों से उतरने) होने के कारण हुए हैं।

अगर फ्रैक्चर ज्यादा बड़ा हो जाता है तो...

रेलवे के रेलपथ निरीक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "ठंड में ट्रेन के डीरेल होने की सबसे अधिक संभावना रहती है। पटरियां सख्त होने के कारण तापमान गिरते ही सिकुड़ती हैं, जब मालवाहक या ज्यादा यात्रियों से भरी ट्रेन इससे गुजरती है तो इनमें फ्रैक्चर हो जाता है और फ्रैक्चर अगर ज्यादा बड़ा हो जाता है तो ट्रेन उसी जगह से पटरियों से उतर जाती है।"

रात में पटरियों में जाने से कतराते हैं गैंगमैन

रेल ट्रैक सही रहे, उसमें टूट-फूट को देखने के लिए गैंगमैन और पीडब्ल्यूआई को नियुक्त किया गया है, लेकिन ट्रैक पेट्रोलिंग में अधिकतर रात में जाने से गैंगमैन कतराते हैं और रात में ही तापमान सबसे अधिक गिरता है और फ्रैक्चर होता है, ऐसे में ट्रेन के ड्राइवर को जानकारी ही नहीं हो पाती कि कहां पटरी चिटकी है।

जब ट्रेन ज्यादा लेट हो जाती है तब...

रेलपथ निरीक्षक ने बताया, "कई बार ऐसा होता है जब ड्राइवर ट्रेन की गति में नियंत्रण नहीं रख पाता। अधिकतर ये इसलिए होता है क्योंकि जब ट्रेन ज़्यादा लेट हो जाती है तो ड्राइवर भी सोचता है कि गंतव्य तक जल्द पहुंचे, इस चक्कर में ट्रेन की गति को वो सवारी की तुलना में नियंत्रित नहीं रख पाता और ट्रेन पटरियों से उतर जाती है जबकि हर ट्रेन की अपनी अलग स्पीड कैपेसिटी होती है।"

स्टाफ की कमी भी बड़ी वजह

उन्होंने बताया कि रेलवे में अधिकारियों की संख्या लगातार बढ़ाई जा रही है, वहीं वर्किंग स्टाफ की लगातार छटाई की जा रही है। वर्किंग प्रोफेशनल्स यानी कर्मचारियों की संख्या में लगातार हो रही कमी से इस तरह की घटनाओं को रोकने में रेलवे नाकाम हो रहा है। उन्होंने बताया कि रेलवे में तीसरे और चौथे दर्जे की स्टाफ की कमी है और उन पर ही निरीक्षण का जिम्मा है। उन्होंने बताया कि पहले रेलवे में पटरियों पर कम से कम 24 घंटे में एक बार हर रोज निरीक्षण होता था, लेकिन अब कामगारों की कम संख्या और ट्रेनों की अधिकता के कारण रोज निरीक्षण भी नहीं हो पाता।

पुरानी पटरियों में सबसे ज्यादा खतरा

रेलपथ निरीक्षक बताते हैं, "भारत में कई स्थानों पर पटरियां काफी पुरानी हैं, पुरानी पटरियों का ज्यादा ध्यान देना पड़ता है क्योंकि खतरे की संभावना इन ट्रैकों पर सर्वाधिक होती है। साथ ही गैंगमैन द्वारा दी जाने वाली रिपोर्टों पर भी अक्सर अधिकारी ध्यान नहीं देते, इस कारण से भी घटनाएं होती हैं।"

मगर एक नजर डालें रेलवे की कमाई पर

रेलवे ने अप्रैल 2014 से जनवरी 2015 के बीच वस्तुवार भाड़ा यातायात से 86009.27 करोड़ रुपए की राजस्व आमदनी कमाई जो कि पिछले वर्ष की इसी अवधि की आमदनी 76501.01 करोड़ रुपए से 12.43 प्रतिशत अधिक है। रेलवे ने अप्रैल 2014 से जनवरी 2015 के दौरान 906.36 मिलियन टन वस्तुवार भाड़ा यातायात के ढुलाई की जो कि पिछले वर्ष की इसी अवधि की 866.14 मिलियन टन ढुलाई से 4.64 प्रतिशत अधिक है। जनवरी 2015 माह के दौरान रेलवे ने 10023.71 करोड़ रुपए की आमदनी की जो कि पिछले वर्ष की इसी अवधि की 8795.90 करोड़ रुपए से 13.96 प्रतिशत अधिक है। इसमें से सबसे अधिक 48.93 मिलियन टन कोयले की ढुलाई से 4728.91 करोड़ रुपए की आमदनी, इसके बाद 9.95 मिलियन टन सीमेंट की ढुलाई से 877.41 करोड़ रुपए की आमदनी और इसके बाद 10.10 मिलियन टन लौह अयस्क की ढुलाई से 739.06 करोड़ की आमदनी हुई।

एक नजर में रेलवे का सफर

  • 8,350 से भी ज़्यादा रेलगाड़ियाँ रोज़ाना चलती हैं।
  • 80,000 किलोमीटर लंबी पटरी पर दौड़ती हैं ट्रेनें।
  • 2.25 करोड़ से भी ज़्यादा यात्री हर रोज करते हैं सफर।
  • 87 लाख टन से ज़्यादा सामान ढोती हैं हर रोज मालगाड़ियां।
  • 64000 रूट हैं ट्रेनों के।
  • 6,867 रेलवे स्टेशन हैं भारत में।
  • 7,500 रेल इंजन भारत में हैं।
  • 2,80,000 से भी यात्रियों और मालगाड़ियों के डिब्बे।
  • 16 लाख से भी ज़्यादा भारतीय रेल कर्मचारी हैं।

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