पांच दशकों से असम के इस गाँव में हो रहा कैशलेस लेनदेन 

Update: 2017-01-23 16:20 GMT
बीते दिन ही खत्म हुए जुनबील मेले में वस्तुओं का आदान-प्रदान करते लोग

लखनऊ/गुवाहाटी। विमुद्रीकरण के बाद अब कैशलेस का दौर है। हर ब्रांड कैशलेस का प्रचार कर रहा है। कुछ लोगों के लिए यह एक नया शब्द है जिसे समझने के लिए वह इसकी ट्रेनिंग ले रहे है। सरकार भी कैशलेस के उज्ज्वल भविष्य को भुनाने में लगी हैं लेकिन भारत के असम में लगने वाले जुनबील मेले में पांच से भी ज्यादा सदियों से कैशलेस लेनदेन की व्यवस्था है।

यह मेला आसाम के मोरिगाँव जिले में लगता है जो गुवाहाटी से करीब 50 किमी दूर है। ऐसा माना जाता है कि 15वीं शताब्दी से यह मेला लगता चला आ रहा है। तीन दिन तक लगने वाले मेले का आयोजन जनवरी के तीसरे सप्ताह में तिवा समुदाय द्वारा किया जाता है, जहां आसाम और मेघालय के पहाड़ी और मैदानी इलाके के लोग अपने सामानों का आदान-प्रदान करके बार्टर सिस्टम यानी वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचार करते हैं।

तिवा राजा के आमंत्रण पर आते थे लोग

कहा जाता है कि पुराने समय में तिवा राजा गोवा रोजा पहाड़ियों पर रहने वाले जनजातियों को बुलाकर मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों के बीच वस्तुओं का आदान-प्रदान करवाता था। इस बार इस मेले में करीब 40,000 लोगों ने भाग लिया और करीब एक करोड़ का लेनदेन किया।

नाप के लिए मुट्ठी या कटोरे का होता इस्तेमाल

ज्यादातर पहाड़ी इलाके में रहने वाले लोग पोहा, चावल के आटे, मछली, पारंपरिक मिठाइयों के बदले मैदानी इलाके के लोगों से अदरक, हल्दी, काली मिर्च, इलायची और अरबी खरीदते हैं। पुराने समय में बिना किसी तौल वाली मशीन के इस मेले में आदान- प्रदान होता था। नाप के लिए एक मुट्ठी भर या कटोरे का इस्तेमाल होता है। दोनों पार्टी मिलकर निर्णय लेते थे।

जुनबील मेले का मुख्य द्वार

तिवा लोगों से सीखना चाहिए कैशलेस ट्रेंड

मेले का हाल ही में समापन हुआ है। इसमें शरीक होने वाले असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि तिवा लोगों के इस चलन से लोगों को सीखना चाहिए। इतिहासकारों के मुताबिक इस मेले का आयोजन 15वीं सदी से होता आया है। सोनोवाल ने ऐलान किया कि इस मेले के लिए एक स्थायी भूखंड आवंटित किया जाएगा ताकि भविष्य में भी इस मेले का आयोजन लगातार होता रहे व पर्यटन को बढ़ावा मिलता रहे जिससे स्थानीय लोगों को लाभ होगा।

जुनबील मेला विकास समिति के सचिव जरसिंह बोरदोलोई ने बताया, ‘मेले के दौरान यहां बड़ा बाजार लगता है जहां ये जनजातियां वस्तु विनिमय प्रणाली के जरिए अपने उत्पाद का आदान प्रदान करती हैं। देश में अपनी तरह का यह संभवत: अनूठा मेला है।'

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