सहकारिता और एमएसपी पर सभी फसलों की खरीद से ही किसानों की भलाई: केदार सिरोही

"जो टीवी अख़बारों में दिखता है जमीन पर हालात बिल्कुल अलग होते हैं। हमारा किसान बहुत दु:खी, मैं भी किसान के घर जन्मा तो उन्हीं के लिए काम करने लगा।"

Update: 2018-09-08 07:24 GMT

हदरा (मध्य प्रदेश)। "भारत अमेरिका नहीं, जहां मल्टीनेशनल कंपनियों के साथ कांट्रैट फार्मिंग हो, ये किसानों का देश है, यहां सहकारिता से ही किसानों का भला होगा, दूसरा सरकार को चाहिए कि सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाए और उसी पर किसानों की पूरी उपज की खरीद होनी चाहिए।"किसान नेता और कृषि जानकार केदार सिरोही कहते हैं।

कृषि में पढ़ाई और एमबीए की डिग्री लेने के बाद केदार सिरोही ने कई वर्षों तक खेती-किसानी और कमोडिटी सेक्टर से जुड़ी कंपनियों के साथ काम किया। भारत के अलावा वियतनाम, थाईलैंड, सिंगापुर और यूएस में नौकरी के बाद केदार पिछले कई वर्षों से मध्य प्रदेश में किसानों के लिए काम कर रहे हैं।

किसानों के बीच केदार सिरोही। 

'नोटबंदी, गांव बंदी के बाद अब वोटबंदी होगी'

गांव कनेक्शन से खास बातचीत में वो खेती और गांव की तरफ लौटने के पीछे की वजह बताते हैं, "विदेशों में काम करते हुए देखा कि वहां की सरकारें किसानों के लिए काफी काम करती है, उन्हें विशेष पैकेज देती है, आर्थिक सहायता मुहैया करता हैं, उन्हें विदेशों में बाजार दिलाती है। जबकि हमारे देश की स्थितियां अलग थीं। जो रिपोर्ट और टीवी अख़बारों में दिखता है जमीन पर हालात बिल्कुल अलग होते हैं। हमारा किसान बहुत दु:खी, मैं भी किसान के घर जन्मा तो उन्हीं के लिए काम करने लगा।"

सबसे बड़ी समस्या गलत आंकड़े

भारत में कृषि क्षेत्र की समस्याओं के बारे में बात करते हुए वो कहते हैं, "हमारी सबसे बड़ी समस्या गलत डाटा कलेक्शन (आंकड़े) की है। सरकारी योजनाएं अच्छी हैं, लेकिन वो गलत डाटा पर बनी है तो वो जमीन पर असरदार साबित नहीं होती। हमारे यहां देखिए दाल का बंपर उत्पादन भी हो रहा और बाहर से मंगानी भी पड़ी रही है।"

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वो सवाल करते हैं, "ये कैसे हो सकता है कि उत्पादन भी खूब हो रहा है और विदेशों से आयात भी करना पड़ रहा है। जो चीजें हमारे पास ज्यादा हैं, उनका निर्यात क्यों नहीं किया जा रहा? सरकार की जिम्मेदार एजेंसियां इस बारे में सोचती क्यों नहीं?"

सहकारिता को नहीं दिया गया बढ़ावा

केदार खेती का हल सहकारिता के साथ बताते हैं। वह कहते हैं, "देश की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है। हमें कॉपरेटिव फॉर्मिग (साथ मिलकर खेती) करना होगा, लेकिन सहकारिता आज सफेद हाथी बन चुका है। सहकारिता में हम एक बच्चे को सिर्फ 5000 रुपए में शिक्षा दे सकते हैं। हमें सहकारिता को जितना बढ़ावा देना चाहिए था, हमने दिया नहीं, जबकि गुजरात में अमूल दूध और इफको के उदाहरण हमारे सामने हैं। सहकारिता में किसानों का पैसा लगेगा तो रोजगार भी मिलेगा और मुनाफे में हिस्सेदारी भी।"

किसानों के लिए सरल बनाना होगा

केदार आगे जोड़ते हैं, "स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक लागत पर डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाए, साथ ही हर फसल की एमएसपी तय हो। अभी हम लोग 50 फसलें उगाते हैं और एमएसपी सिर्फ 23 फसलों की ही तय है। खेती, बागवानी, पशुपालन सबको किसानों के लिए सरल बनाना होगा।" Full View

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