ऑटोमेटिक मौसम केंद्र बचाएंगे किसानों की फसल, मौसम के हिसाब से देंगे सलाह
मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में इस बार फिर बारिश और ओलावृष्टि से तबाही हुई है। कई किसानों का आरोप लगाया कि मौसम की सही जानकारी नहीं मिल पाती। इसी बीच कुछ हाईटेक ऑटोमेटिक मौसम केंद्र बनाने की कवायद हो रही है, जानिए कैसे किसानों के मददगार होंगे ये केंद्र
किसानों को समय रहते मौसम की जानकारी नहीं मिल पाती, जिससे उन्हें फसल बर्बाद होने से नुकसान झेलना पड़ता है। मौसम के बदलाव से फसलें प्रभावित न हों, इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में ऑटोमेटिक मौसम केंद्र बना रही है।
कृषि विभाग, मध्य प्रदेश की तरफ शुरू की गई इस योजना के बारे में मुख्य परियोजना अधिकारी बी एम सहारे ने बताया, “ ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन को स्थापित करने के लिए हमने 10 तहसीलों को चुना है, जिसमें पहले चरण में यह सुविधा दी जाएगी। अभी इस परियोजना में काम किया जा रहा हैै , जल्द ही कुछ तहसीलों में यह केंद्र शुरू किए जाएंगे।’’
कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण 2017 के मुताबिक किसानों को गेहूं, चावल, तिलहन, दालों, फलों और सब्जियों की पैदावार के लिए जलवायु परिवर्तन के हिसाब से अपनी खेती में अलग अलग तरीके अपनाने पड़ेंगे। इसके अलावा सरकार ने यह भी कहा कि आने वाले समय में अगर जलवायु परिवर्तन में और ज़्यादा गिरावट आई तो यह भारत को दूध और दालों का प्रमुख आयातक बना देगा। वर्ष 2030 तक, 2016-17 में अनुमानित उत्पादन से 65 लाख टन अधिक अनाज की आवश्यकता पड़ सकती है।
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ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन में मौसम का डाटा ऑनलाइन इकट्टठा किया जा सकेगा। इसमें यह आसानी से वर्षा की संभावना , मिट्टी के प्रकार, वातावरण में नमी का पता चल पाएगा। इसके साथ साथ प्रदेश में कौन से क्षेत्र में किस प्रकार फसल उगाना किसानों के लिए अच्छा होगा यह पता चल पाएगा। इस योजना को शुरू करने के लिए तीस करोड़ रुपए का खर्च आ रहा है। इस सुविधा में किसानो को सही समय पर मौसम की जानकारी मिल पाएगी, जिससे किसान फसल चक्र के मुताबित खेती कर सकेंगे।
कृषि मंत्रालय के अनुसार भारत में मौसम परिवर्तन की घटनाओं के कारण सालाना 10 अरब अमरीकी डॉलर का नुक्सान हुआ है। इस नुकसान का लगभग 80 फीसदी हिस्सा अभी साफ नहीं हो सका है।
“ऑटोमेटिक मौसम केंद्र से किसानों को पूरी मदद दिलावाने के लिए प्रदेश के कई कृषि विश्वविद्यालयों, रिसर्च संस्थानों और कृषि विज्ञान केंद्र एक साथ मिलकर काम करेंगे। इससे किसानों जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान काफी हद तक कम करने हमें मदद मिलेगी।’’ बी एम सहारे आगे बताते हैं।