किसानों के जख्मों पर कितना मरहम लगाएगा निर्मला सीतारमण का बजट?

Update: 2019-07-04 11:23 GMT

लखनऊ। आम बजट से नौकरी पेशा लोगों को टैक्स में रियायत, सामान के सस्ते होने की उम्मीद है तो कारोबारी को टैक्स में छूट और नई सुविधाओं की चाह में हैं। ऐसे में आप को भी जानना चाहिए कि देश का किसान क्या चाहता है, वो किसान जिसकी मेहनत से उगाए गए अनाज से हमारी भूख मिटती है। ये आपको जानना जरूरी भी है क्योंकि सूखा, कम बारिश और लगातार होते घाटे से देश का किसान काफी परेशान है।

किसानों को इस साल सबसे ज्यादा पानी ने परेशान किया। देश के कई राज्य सूखे की चपेट में हैं। इससे पहले गेहूं और आलू के सीजन ओलावृष्टि ने उन्हें काफी नुकसान पहुंचाया था। महंगी खाद, कीटनाशक, और कर्ज़ से जूझते किसानों के लिए इस सीजन में कमजोर मानसून (कम बारिश) से भी झटका लगा है।

कमजोर मानसून से भारत के ज्यादातर राज्यों में खरीफ सीजन में फसलों की बुवाई पिछड़ गई है। पहले से सूखे की चपेट में आए किसानों के लिए मानसून बड़ा सहारा होता है। इसका सीधा असर फसलों की बुवाई और फिर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। जून में 33 फीसदी कम बारिश के बाद आए कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में बुवाई प्रभावित हुई है। खरीफ सीजन में रकबा 25.45 फीसदी पिछड़ गया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही 28 जून तक देश में 146.61 लाख हेक्टेयर फसलों की बुवाई हो चुकी है, जबकि सामान्य ये आंकड़ा 196.66 लाख हेक्टेयर होता है। हालांकि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मंगलवार को कहा था, मौसम विभाग के अनुसार आगे अच्छी बारिश होगी और बुवाई पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।'

आज बजट से ठीक 2 दिन पहले खरीफ की फसलों (धान, मक्का, सोयाबीन, उड़द, अरहर, तूर, तिल मूंगफली) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि उनकी सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की दिशा में प्रयासरत है। चलिए आपको बताते हैं किसानों के लिए बजट में ऐसे क्या होना चाहिए कि उनकी जिंदगी बेहतर हो जाए।

1. पानी बचाने का प्रबंध

सामान्यतौर पर पानी बनाया नहीं जा सकता है लेकिन बचाया जा सकता है। बारिश कराई नहीं जा सकती है लेकिन ऊपर से बरसे पानी को रोका जा सकता है। इस साल सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित महाराष्ट्र है, कई मुंबई समेत कई इलाकों में हुई बारिश का कितना पानी बहने से बचाया जा सका ये गौर करने वाला है। सूखे से जूझ रहे भारत में नरेंद्र मोदी सरकार में जल शक्ति नाम से नया मंत्रालय बना है। पीएम मोदी ने मन की बात में पानी बचाने का जिक्र किया।

जल संरक्षण पर राष्ट्रीय आंदोलन चलाए जाने की जरुरत है। क्योंकि किसानों की परेशानी की सबसे बड़ी वजह भी पानी है। गांव कनेक्शन के देशव्यापी सर्वे में 18000 लोगों से पूछा गया कि खेती सुधारने के लिए क्या होना चाहिए, जवाब में 41 फीसदी लोगों ने कहा कि बेहतर सिंचाई।

भारत में 52 फीसदी से ज्यादा खेती सीधे बारिश के पानी पर निर्भर है। यानि इस ओर और ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है। साल 2015 में मोदी सरकार ने पीएम कृषि सिंचाई योजना शुरु की थी। जिसके तहत पांच सालों के लिए 50 हजार करोड़ का बजट आवांटित था लेकिन सरयू सिंचाई परियोजनाएं अब भी अधूरी हैं। और महाराष्ट्र में खेत तालाब योजना पूरी पैसे की बर्बादी साबित हुई है। इसलिए पानी बचाने के लिए मौलिक योजनाएं बनानी होंगी। मनरेगा में सुधार किए जाने की आवश्यकता है।

2. एसएसपी पर खरीद

सरकार ने चालू खरीफ सीजन के लिए धान समेत कई फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की। पिछले साल धान की कीमत 200 रुपए बढ़ी थी, इस बार 65 रुपए बढ़े है। इस बढ़ोतरी के साथ सरकार को ये भी देखना चाहिए कि कितने किसानों को खरीफ के दौरान फसलों पर एमएसपी मिली थी। मध्य प्रदेश में सोयाबीन, उत्तर प्रदेश में धान और राजस्थान में मूंगफली किसान लगातार परेशान नहीं, किसानों ने बार-बार ये आरोप लगाया कि सभी उनकी फसलों की सरकारी खरीद नहीं हो पा रही है। ऐसे में सरकार को तय करना होगा कि जिन फसलों की एमएसपी तय है, हर हाल में सरकारी कोटे के मुताबिक उनकी खरीद हो।

3. फसल पैटर्न बदला जाए

भारत के कई इलाकों में ऐसी फसलें हो रही हैं जो भूजल के संकट को और बढ़ा सकती हैं। महाराष्ट्र-यूपी में केला, पश्चिमी यूपी में गन्ना, हरियाणा, पंजाब में धान, मध्य यूपी में मेंथा, जैसी फसलों में बहुत पानी खर्च हो रहा है। सरकार को चाहिए फसल का पैटर्न बदलने के प्रयास करे। किसानों को ऐसी खेती के विकल्प बताए। हरियाणा में सरकार ने पानी की किल्लत को देखते हुए धान की खेती छोड़ने वाले किसानों को 2000 रुपए प्रति एकड़ का मुआवजा देने का ऐलान किया।

4. जैविक बाजार

एनडीए के सत्ता में आने के बाद से ही देश में जैविक का जोर है। देश में जैविक कृषि कुंभ हुआ, लगातार जैविक खेती की बात भी हो रही है। नई सरकार ने सुभाष पालेकर पद्दति की आगे बढ़ाने की बात की है। ये सब अच्छा है लेकिन ऑरगैनिक उत्पादों के लिए बाजार की उपलब्धता नहीं के बराबर है। जो किसान अपने उत्पाद बेच रहे वो उनकी मेहनत है। बाकी मार्केट पर कंपनियों का कब्जा हो रहा है। सरकार को तत्काल किसानों की उपज की बिक्री का प्रबंध करना होगा वर्ना ये किसान भी रासायनिक उर्वरक और जहरीले कीटनाशकों की तरफ लौट जाएंगे।

5. छुट्टा पशु

किसानों ने भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दिया है लेकिन छुट्टा पशु उनके लिए सिरदर्द बने हैं। किसान, फसल और गाय की आस्था तीनों संकट में हैं। गोशाला (गोवंश आस्त्रय स्थल) ही सिर्फ समाधान नहीं हैं, यूपी इसका उदाहरण है। छुट्टा गोवंश में रोजगार के अवसर तलाए जाएं, साड़ों का बधियाकरण हो और सेरोग्रेसी आदि पर युद्धस्तर पर काम हों, वर्ना देर जो जाएगी।

6. फल और सब्जियों की खेती

फल और सब्जियों की खेती से अच्छा मुनाफा हो सकता है, लेकिन ये तभी संभव है जब मंडी किसान की पहुंच में हो। जो फसल ज्यादा पैदा हो रही हो वहां उसकी मंडी हो। ब्लॉक स्तर पर छोटे कोल्ड स्टोरेज बनाए जाएं।

7. प्रसंस्करण

किसान का गेहूं 16 से 18 रुपए किलो बिकता है लेकिन आटा 24 से 40 रुपए किलो तक बिकता है। ये सबको पता है कि प्रसंस्कण में फायदा है, लेकिन ये फायदा किसान को तब मिलेगा जब छोटा-मंझोला किसान भी उद्दमी बन जाए। लेकिन इसके लिए जरुरी है न ग्राम पंचायत तो ब्लॉक स्तर पर ऐसी यूनिट लगाई जाएं। सहकारिता के आधार पर ये काम सफल हो सकता है। यूनिट सरकार लगवाए, देखकर समिति करे और किसान उसके मुताबिक पैसे देकर अपने उत्पाद बनवाए। 

Similar News