राज्य सरकारों के सामने नहीं गल रही केंद्र सरकार की ‘दाल’, आम लोगों को भुगतना पड़ेगा खामियाजा

Update: 2018-03-09 15:06 GMT
दाल की कीमतों में आ सकती है गिरावट

केंद्र सरकार की मंशा को राहत देने की थी, लेकिन सरकार खुद अब फंसती नजर आ रही है। अरहर दाल की बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने बफर स्टॉक बनाया था। लेकिन राज्य सरकारें केंद्र सरकार को धोखा दे रही हैं। बार-बार आग्रह के बाद भी राज्य बफर स्टॉक से दोलों की खरीद नहीं कर रहे हैं। राज्य सरकारें प्राथमिक विद्यालयों में चलाई जा रही मिड डे मील योजना के लिए भी यहां से दालें नहीं खरीद रही हैं। ऐसे में सस्ती दालों की उम्मीद लगाए लोगों को झटका लग सकता है।

अब केंद्र सरकार सख्ती बरतने के मूड में है। दूसरी ओर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने सभी राज्यों को दाल खरीदने का आदेश जारी करने के लिए शुक्रवार यानि 9 मार्च तक का वक्त दिया है। अब तक सिर्फ 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने ही बफर स्टॉक से दाल खरीदने में रुचि दिखाई है और इसके लिए राज्य संचालन एवं निगरानी समिति की बैठक बुलाई है। केंद्र सरकार के पास 20 लाख टन दाल का बफर स्टॉक हो चुका है।

केंद्र सरकार ने दालों का बफर स्टॉक तो बना लिया है, लेकिन इसका फायदा कम कीमतों के रूप में उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा है। वजह है, ज्यादातर राज्य सरकारों की सुस्ती। राज्यों के इस रवैये से निराश मंत्रालय ने 6 मार्च को पत्र लिखकर शेष राज्यों से 9 मार्च तक राज्य संचालन एवं निगरानी समिति की बैठक बुलाने और दाल खरीदने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था। इसमें कहा गया था कि कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा जल्द ही इस फैसले के क्रियान्वयन की समीक्षा करने वाले हैं।

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इस मामले में उपभोक्ता मामलों के सचिव अविनाश श्रीवास्तव ने कहा "अगर कम से कम 10 लाख टन दलहन हमारे स्टॉक से निकल जाता है तो हम बाकी 10 लाख टन का आसानी से प्रबंधन कर सकेंगे। हम पुराने भंडार को पहले निपटाएंगे। इसके लिए हम प्रयास भी कर रहे हैं। राज्यों से बात की जा रही है। '

इससे पहले केंद्रीय कैबिनेट ने पिछले साल 10 नवंबर को उन सभी योजनाओं में इस बफर स्टॉक से दाल का इस्तेमाल करने का फैसला किया था, जिसके जरिये पोषण प्रदान किया जाता है। इसमें महत्वाकांक्षी ‘मिड डे मील’ योजना भी शामिल है। इस कड़ी में मंत्रालय ने सबसे पहले 29 दिसंबर को पत्र लिखकर राज्यों से उनकी दालों की जरूरत का ब्योरा 5 जनवरी तक देने को कहा था। सरकार को ऐसी उम्मीद थी कि दो लाख टन से ज्यादा दाल मिड डे मील योजना में खप जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

यहां भी खपाने की योजना

बफर स्टॉक की दालों को खपाने के लिए मिड डे मील के अलावा रक्षा और अर्धसैनिक बलों जैसे बीएसएफ और सीआरपीएफ की मेस में भी इसकी आपूर्ति की जा रही है। इसके अलावा केंद्र ने अन्य सरकारी एजेंसियों को भी बफर स्टॉक से दाल खरीदने की अपील की थी।

राज्य क्यों नहीं ले रहे रुचि

राज्य सरकारों की परेशानी ये है कि बफर स्टॉक से मिलने वाली दाल साबुत है। इसका इस्तेमाल करने के लिए पहले मिलिंग करानी होगी। जबकि, राज्यों के पास इतने बड़े पैमाने पर दालों की मिलिंग कराने की व्यवस्था नहीं है। दूसरे कि बाजार में कम कीमत पर दालों की उपलब्धता के चलते कोई भी इस भंडार से दाल नहीं खरीद रहा है और सीधे बाजार से मिलिंग की हुई दाल ला रहे हैं। स्टॉक में पड़ी-पड़ी दालें खराब होने के मद्देनजर खाद्य मंत्रलय उन्हें राज्यों को बेचना चाहता है। अब तक लगभग दो लाख टन दालें ही बेची जा सकी हैं। बाकी दालों के खरीदार नहीं हैं। सरकार इन दालों को हर हाल में बेचना चाहता है।

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इस बारे मे केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने पिछले दिनों एक प्रेस कॉफ्रेंस में कहा था "दो लाख टन से ज्यादा दालें मिड-डे मील कार्यक्रम जैसी केंद्रीय कल्याणकारी योजनाओं के तहत होने वाली खपत के लिए मुहैया कराई जाएंगी। समान मात्रा में दालें नीलामी के जरिये खुले बाजार में पहले से ही बेची जा रही हैं। अभी तक करीब दो लाख टन दाल की बिक्री नीलामी के जरिए की जा चुकी है लेकिन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार उसका लक्ष्य चार लाख टन से ज्यादा दलहन को बचेने का है। नीलामी के रास्ते के अलावा दलहन की पर्याप्त मात्रा को तत्काल बेच दिया जाएगा और इसके कारण बफर स्टॉक का बोझ कुछ कम होगा।

जब 200 रुपए हो गई थी दाल की कीमत

दो साल पहले अरहर दाल की कीमत 200 रुपए किलो तक पहुंच गई थी। हंगामे के बीच सरकार को दुनिया भर से दालें मंगवानी पड़ी थीं। कीमतों पर काबू पाने के लिए और आगे स्थिति अनियंत्रित न हो, इसके लिए 20 लाख टन दाल का बफर स्टॉक बनाने का फैसला किया गया था। लेकिन पिछले साल दाल की बंपर पैदावार हुई, इससे सरकार का पूरा गणित गड़बड़ा गया है।

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एमपी में होती है सबसे अधिक उपज

मध्‍य प्रदेश में देश की सबसे अधिक दालें होती हैं। देश के कुल दाल उत्‍पादन में राज्‍य की हिस्‍सेदारी 23 फीसदी है। इसके बाद 18 फीसदी के साथ उत्‍तर प्रदेश, 14 फीसदी के साथ महाराष्‍ट्र, 11 फीसदी के साथ राजस्‍थान और 9 फीसदी के साथ आंध्र प्रदेश का स्‍थान है।

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