छतीसगढ़: इन्द्रावती नदी बचाने के लिए सैकड़ों लोगों ने शुरू की पदयात्रा

Update: 2019-05-29 06:53 GMT

बस्तर (छतीसगढ़)। बस्तर ख़बरों में तभी होता है जब वहां कोई बम ब्लास्ट होता है लेकिन इन दिनों यह चर्चा में है इन्द्रावती नदी के किनारे किनारे हो रहे पदयात्रा के कारण।

छत्तीसगढ़ में बस्तर का नाम आते ही जल, जंगल, जमीन और खनिज जैसे प्राकृतिक सम्पदा ध्यान में बरबस चला आता है। साथ ही अगर बस्तर की प्राकृतिक सौन्दर्य या पर्यटन स्थली की बात करें तो चित्रकूट जलप्रपात का नाम ना लिया जाय ऐसा तो हो ही नहीं सकता। इसे छत्तीसगढ़ में लोग भारत का नाएग्रा के नाम से भी जानते हैं।

यह प्रपात एक ओर जहां बारिश के समय अपने रौद्र रूप में दिखाई देता है वहीं ठण्ड और गर्मी में भी इसके धार बहुत होते हैं और सुन्दर होते हैं। लेकिन इस साल 20/25 दिन पहले इस प्रपात के धार काफी कम हो गया और सिर्फ एक पतली धार ही बचा था। यह बात स्थानीय लोगों के लिए किसी सदमें से कम नहीं थी। चित्रकोट जलप्रपात जगदलपुर से 35 किमी दूर है और जगदलपुर छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर से करीब 300 किमी दूर है।


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इस घटना ने स्थानीय लोगों को झकझोर दिया, इस बात को लेकर पूरे बस्तर में चर्चा होने लगी। इसे लेकर जन जागरण के लिए इन्द्रावती नदी बचाओ आन्दोलन शुरू हुआ है। इसमें जगदलपुर के बुद्धिजीवी, व्यापारी, छात्र से लेकर गांधीवादी और पद्मश्री धरमपाल सैनी भी शामिल हैं। साथ ही आसपास के ग्रामीण भी बड़ी संख्या में शामिल हो रहे हैं।" ऐसा कहना है इस नदी पदयात्रा के एक प्रमुख कार्यकर्त्ता किशोर पारेख का।

ओडिशा-छत्तीसगढ़ सीमा पर स्थित भेजापदर गाँव से पिछले 8 मई को शुरू हुई यह यात्रा इन्द्रावती नदी के किनारे किनारे होते हुए चित्रकूट जलप्रपात पर खत्म होगी। इन्द्रावती नदी ओडिशा से निकलकर छत्तीसगढ़ में बस्तर में प्रवेश करती है और इसी के रास्ते में चित्रकोट के पास जलप्रपात का रूप लिया है।

1975 में ओडिशा और तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच हुए समझौते के मुताबिक ओडिशा और छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्यप्रदेश ) को बराबर रूप से पानी को बांटना था और समझौते के मुताबिक दोनों राज्य अपने अपने क्षेत्र में एक-एक बड़ा बांध जिससे बिजली उत्पादन कर सकें और 2/2 छोटे बाँध बनाने के लिए सहमत हुए थे।

पदयात्रा में शामिल पारेख का कहना हैं, "ओडिशा सरकार ने तो अपने सीमा में बड़ा बांध और छोटा बांध भी बना डाला लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने कुछ नहीं किया। अभी जो कुछ थोडा बहुत पानी कहीं-कहीं दिखाई दे रहा है वह सब स्टॉप डेम के कारण।" समझौते के मुताबिक ओडिशा-छत्तीसगढ़ सीमा में स्थित जोरानाला डेम से 85 TMC पानी छोड़ने की बात हुई थी जो चित्रकूट पहुंचने तक 87.5 TMC होना चाहिए ( बीच में कुछ नाले और जुडते हैं) पर इनसब चीजों पर छत्तीसगढ़ सरकार ने ध्यान नहीं दिया जिसका खामियाजा आज दिख रहा है।


गांधीवादी सत्याग्रह नदी यात्रा के बारे में बस्तर चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स और इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष किशोर पारेख ने आगे कहा "इन्द्रावती बचाव अभियान का मकसद केवल सूखे इन्द्रावती नदी में पानी लाने तक सीमित नहीं है बल्कि हम पर्यावरण से लेकर नदी रिचार्ज और पौधा रोपण से लेकर प्रदूषण मुक्त नदी और बस्तर के बारे में सोच रहे हैं और यह सन्देश इस यात्रा के माध्यम से जन जन तक पहुंचा रहे हैं।"

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पारेख ने आगे जानकारी देते हुए कहा, " इस यात्रा को लेकर लोगों में काफी उत्साह है। यह गर्मी का महीना है इसके बावजूद हर दिन करीब सौ लोग इसमें शामिल हो रहे हैं। हम गर्मी के चलते रोज सुबह छह बजे से दिन के 9-10 बजे तक यात्रा जारी रखते हैं। हर दिन हम पांच से आठ किमी. की यात्रा कर रहे हैं। क्योंकि हम यह यात्रा नदी के किनारे किनारे करने की योजना बनाई है इसलिए हम हर संभव ऐसा प्रयास करते हैं, जहां संभव नहीं वहां नदी के अंदर चलते हैं तो कहीं सड़क पर भी आना होता है।"

इस यात्रा में जगदलपुर शहर के अलावा आसपास गाँव के लोग और खासकर के जहां-जहां से यह यात्रा गुजर रही है वहां के लोग भी शामिल हो रहे हैं। इस यात्रा में छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्ग और महिलाएं भी सामान रूप से शामिल हैं। ऐसे तो इस यात्रा में कोई नेता नहीं है लेकिन इस यात्रा के प्रमुख लोगों में एक हैं गांधीवादी और पद्मश्री से सम्मानित 90 साल के धरमपाल सैनी। धरमपाल सैनी बस्तर में रुकमणी कन्याश्रम के संस्थापक हैं।

"इन्द्राबती नदी बचाओ अभियान के तहत जल संसाधन विभाग को पत्र लिखा गया है लेकिन अभी तक किसी से कोई जवाब नहीं आया है। लेकिन हम अपना प्रयास जारी रखेंगे, हम जंगल विभाग के साथ भी मिलकर काम करना चाहते हैं ताकि पौधे लगाने में और उसे देखभाल करने में हम सहयोग करना चाहते हैं।" धरमपाल सैनी ने बताया, " कभी बस्तर घना जंगल था इसलिए यहाँ पौधे लगाने की बात ही कभी नहीं हुई लेकिन अब लगता है पौधा लगाने की भी जरूरत महसूस हो रही है। यह नदी यात्रा का आज 12 वां दिन था और यह चित्रकोट पहुंचने में और तीन चार दिन लगेगा।"

रिपोर्ट- तामेश्वर सिंहा

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