छत्तीसगढ़: बच्‍चों को पढ़ाने के लिए उफनाई नदी पार करते हैं श‍िक्षक

Update: 2019-08-20 09:28 GMT

कोयलीबेड़ा (छत्तीसगढ़)। यहां कई स्कूल ऐसे हैं जहां जाने के लिए कोई साधन नहीं है, ऐसे में शिक्षक नदी पार करके स्कूल जाते हैं, कई बार तो नदी का उफान इतना अध‍िक होता है कि श‍िक्षक के गले तक‍ पानी आ जाता है।

छत्तीसगढ़ की राजधानी से 150 किमी दूर कांकेर जिला के कोयलीबेड़ा गांव में स्‍कूल में पढ़ने वाले बच्‍चे, शिक्षक और स्‍थानीय ग्रामीणों को नदी पार करना पड़ता है। यह क्षेत्र पगडंडियों के रास्ते, उफनते नदी नाले के लिए जाना जाता है। इन्हीं कच्चे रास्तों और उफनती नदियों को पार करके अपने ब्लॉक तक जाना होता है।

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इसी कोयलीबेड़ा क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त करना अपने आप में एक चुनौती है, पाठशालाओं तक शिक्षक जान जोखिम में डाल कर नदी नाले पार को पार करते हुए स्कूल पढ़ाने पहुंचते हैं। उनकी कोशिश रहती है कि कोई भी बच्चा शिक्षा से न छूटे। कोयलीबेड़ा क्षेत्र में एक ऐसे ही शिक्षक रेखराम सिन्हा हैं।

रेखराम 10 वर्षों से कोयलीबेड़ा ब्लॉक मुख्यालय से 12 किमी की दूरी पर स्थित ग्राम गट्टाकाल में बच्चों को पढ़ाते हैं। वो बताते हैं, "मैं ब्लॉक मुख्यालय कोयलीबेड़ा से 12 किमी दूर गट्टाकाल प्राथमिक पाठशाला में पढ़ाने आता हूं, रास्ते में दो नदियों को पार करना पड़ता है।"

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"नदियों में सीने से ऊपर पानी बहता रहता है। मैं अकेला नहीं हूं जो इस क्षेत्र में विषम परिस्थितियों में पढ़ाने आता हूं, कोयलीबेड़ा ब्लॉक मुख्यालय पार करने के बाद मेढ़की नदी के उस पार 17 ग्राम पंचायत में स्थित स्कूलों के शिक्षक ऐसे ही नदी पार करते है। इस क्षेत्र में शिक्षक ही नहीं बल्कि मेरे स्कूल के बच्चे भी पाठशाला जाने के लिए नदी पार करते हैं, "रेखाराम ने आगे बताया।

रेखराम आगे कहते हैं,  "इस क्षेत्र में पढ़ाने आने के लिए कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, यहां न तो रोड है न पैदल चलने के लिए सही रास्‍ते हैं। नदी में पार करते समय कई बार लोग हादसे का शिकार भी हो जाते हैं। कभी-कभी आते समय पानी कम रहता है मगर जाते समय नदी में पानी बढ़ जाता है, ऐसे में उसी गांव में ही रात गुजारनी पड़ती है। लगातार बारिश होने के कारण कभी-कभी नदियों से पानी कम ही नहीं होता है, ऐसे में 3-4 दिन बच्चे तो स्‍कूल भी नहीं आ पाते हैं।"

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