आपकी सेहत के लिए हानिकारक हैं पटाखे

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हाल के फैसले में पटाखों का प्रयोग करने की इजाजत दिवाली की रात आठ से 10 बजे के बीच दे दी।

Update: 2018-11-05 11:36 GMT

लखनऊ। दिवाली में पटाखों की धूम नहीं हो तो मजा कम आता है, लेकिन अगर पटाखें हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं तो हमें इनके इस्तेमाल के बारे में सही से सोचने की जरूरत है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हाल के फैसले में पटाखों का प्रयोग करने की इजाजत दिवाली की रात आठ से 10 बजे के बीच दे दी।

बाज़ार में पटाखों की खरीदारी करते लोग 

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ वेद प्रकाश ने कहा, "दिवाली में पटाखों का प्रयोग सांस रोगियों के लिए परेशानी का कारण बन जाता है। इसके साथ ही पटाखों से उठने वाले धुएं से अस्थमा और एलर्जी के मरीजों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। दमे के मरीजों को पटाखों और धुएं से दूर रहना चाहिए। अगर बाहर निकलना है तो मुँह पर कपड़ा या मास्क लगा कर बहार निकले।"

यह भी पढ़ें: दिवाली से पहले दीयों से सज गए बाजार, अयान और सुरैया को है खरीदारों का इंतजार

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा सिफारिश की गई पार्टीकुलेट मैटर पीएम 2.5 की तय सुरक्षा सीमा की तुलना में लोकप्रिय पटाखे जैसे कि फूलझड़ी, सांप टेबलेट, अनार, पुलपुल, लड़ी या लाड़ और चकरी, 200 से 2,000 गुना ज्यादा उत्सर्जन करता है।

भारतीय विष अनुसंधान के अनुसार दीवाली में वायु प्रदूषण काफी तेज हो जाता है। शाम से लेकर रात तक प्रदूषण का रेट काफी बढ़ जाता है। इसे हम लोग पार्टिकूलर मेटल में लेते हैं, इसमें छोटे कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या कम होता है। यह कण ठोस या तरल रूप में वातावरण में होते हैं। इसमें धूल, गर्द और धातु के सूक्ष्म कण शामिल हैं, जो कि वायु प्रदुषण ही है इसकी मात्रा काफी बढ़ जाती है। पटाखे में कई तरह के रंग भी निकलते हैं, जिसे बनाने में कई तरीके के कैमिकल का प्रयोग किया जाता है। ये चीजें काफी खतरनाक होता है।

भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. आलोक धवन ने बताया, "पटाखों की वजह से हमारे साथ-साथ पर्यायवरण को भी काफी नुकसान होता है इसके लिए इसके विषय में सोचना बहुत ज्यादा आवश्यक था। कोर्ट के फैसले के बाद सीएसआईआर ने शिवकाशी के पटाखा यूनियन से बात कर के ग्रीन पटाखे बनाने की बात सोची। ग्रीन पटाखे आम पटाखों की तरह ही लोगो को आनंद देंगे लेकिन इनमे प्रदूषण की मात्रा कम होगी। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने ग्रीन पटाखे बनाने की बात की है। ग्रीन पटाखे अगले वर्ष तक बाजार में उपलब्ध हो सकेंगे।"

यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ के इस गाँव में हफ्ते भर पहले मनाई जाती है दिवाली

ये पटाखें सबसे ज्यादा फैलाते हैं प्रदूषण 

प्रदूषण भारत ने पीएम 2.5 के लिए 60 μg / m³ (प्रति घन मीटर प्रति माइक्रोग्राम) के 24 घंटे का मानक निर्धारित किया है, जबकि डब्ल्यूएचओ में 25 μg / m³ का कम मानक है। सांप टैबलेट पीएम 2.5 के उच्चतम स्तर का उत्सर्जन करता है। इसके बाद लड़ी, पुलपुल, फुलझड़ी, चकरी और अनार उत्सर्जन करता है। हालांकि सांप टैबलेट केवल नौ सेकेंड तक जलती है लेकिन यह 64.500 ग्राम / एम 3 के सर्वोच्च स्तर पीए 2.5 स्तर का उत्सर्जन करता है जो कि डब्लूएचओ मानकों से -2,560 गुना अधिक है। वहीं लड़ी का उत्पादन पीएम 2.5 के स्तर का 38,540 ग्राम / एम 3 है जो कि डब्ल्यूएचओ मानकों से 1,541 गुना अधिक है।

पटाखो की खरीददारी करने आयीं मंजू श्रीवास्तव ने कहा, "मैंने उन पटाखों को ही सेलेक्ट किया है, जो कम शोर करने वाले हो। बच्चों को खुश करने के लिए केवल कुछ लाइट और कम आवाज़ वाले पटाखे लिए हैं।" 

Similar News