देश में कृषि और किसानों की स्थिति पर क्या कहता है आर्थिक सर्वेक्षण

आर्थिक सर्वेक्षण में साल 2001 से कृषि सुधारों को लेकर की गई विभिन्न कमेटियों की सिफ़ारिशें का ज़िक्र भी किया गया है और कहा गया है कि सभी कमेटियों ने कृषि के क्षेत्र में सुधारों की वकालत की है।

Update: 2021-01-30 17:21 GMT
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि कोविड-19 की वजह से देश भर में लागू लॉकडाउन का रबी की कटाई और खरीफ की बुवाई पर कोई असर नहीं पड़ा। Photo: Pixabay

आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कृषि क्षेत्र पर ख़ास ज़ोर दिया गया है और नए कृषि क़ानूनों की वकालत की गई है। इस आर्थिक सर्वेक्षण में कृषि क्षेत्र को आशा की किरण बताया गया है और कहा गया है कि जब सेवा, विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए थे, उस समय भी कृषि क्षेत्र में सकारात्मक दर दिखी।

बजट से पहले संसद में पेश वित्त वर्ष 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण में कृषि और ग्रामीण भारत को ख़ास जगह दी गई है। इसमें कहा गया है कि तीनों कृषि कानून किसानों के लिए खुले मार्केट के नए आयाम स्थापित करेंगे और इनसे छोटे और मझोले किसानों का जीवन स्तर सुधारने में मदद मिलेगी। देश के 85% किसान इन्हीं श्रेणियों में आते हैं और ये सभी किसान एपीएमसी कानून के सताए हुए हैं। सर्वे में साल 2001 से कृषि सुधारों को लेकर की गई विभिन्न कमेटियों की सिफ़ारिशें का ज़िक्र भी किया गया है और कहा गया है कि सभी कमेटियों ने कृषि के क्षेत्र में सुधारों की वकालत की है।

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि कोविड-19 की वजह से देश भर में लागू लॉकडाउन का रबी की कटाई और खरीफ की बुवाई पर कोई असर नहीं पड़ा। हालांकि लॉकडाउन के दौरान किए गए गांव कनेक्शन के सर्वे में शामिल 41 फीसदी किसानों ने कहा था कि वे लॉकडाउन के चलते समय से अपनी फसल नहीं काट पाए, जबकि 55 फीसदी किसान अपनी उपज समय पर बेच नहीं पाए। 38 फीसदी के करीब किसानों को अपनी उपज निजी व्यापारियों को बेचनी पड़ी।

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि कोविड-19 की वजह से देश भर में लागू लॉकडाउन का रबी की कटाई पर कोई असर नहीं पड़ा। फोटो: फ्लिकर

आर्थिक समीक्षा के अनुसार वर्ष 2018-19 के बजट में फ़सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य, फसल की वास्तविक लागत का डेढ़ गुना रखने की घोषणा की गई थी। इसी सिद्धांत पर काम करते हुए भारत सरकार ने 2020-21 सत्र में खरीफ और रबी की फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की है।

महाराष्ट्र के नागपुर में रहने वाले अर्थशास्त्री विजय जावंधिया आर्थिक सर्वेक्षण में कृषि की भूमिका के बारे में कहते हैं, "सरकार जो एमएसपी, फसल की वास्तविक लागत का डेढ़ गुना रखने की बात कर रही है, वो बस गुमराह कर रही है। अगर आप देखेंगे 2007-08 में मनमोहन सरकार में जो एमएसपी थी, उसको 2008-09 में बढ़ा दिया गया था। उस समय दो हजार में बिकने वाले कपास का दाम कितना ज्यादा बढ़ाया था। स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट की सरकार की बात कर रही है जबकि उस तरह एमएसपी नहीं बढ़ा रही है।"

2019-20 में कृषि क्षेत्र की आर्थिक समीक्षा (चौथे अग्रिम अनुमान) के अनुसार देश में 296.65 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ जबकि 2018-19 में 285.21 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ था। इस प्रकार वर्तमान सत्र में 11.44 मिलियन टन अधिक खाद्यान्न का उत्पादन हुआ।

विजय जावंधिया आगे कहते हैं, "सरकार कह रही है कि कृषि उत्पादन बढ़ रहा है, लेकिन किसानों की कितनी आय बढ़ रही है, इस बारे में भी बात करनी चाहिए। क्योंकि स्वामीनाथन जी ने भी कहा कि कितना उत्पादन बढ़ रहा है, उसको नहीं गिना जाना चाहिए, बल्कि किसानों की आय कितनी बढ़ी है, इस पर ध्यान देना चाहिए। ज्यादा उत्पादन से किसान पर कर्ज ही बढ़ा है, क्योंकि ज्यादा उत्पादन के लिए किसान की लागत भी तो बढ़ी होगी। जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी भी इसी वजह से नहीं बढ़ रही है, क्योंकि जिस तरह से उत्पादन बढ़ रहा है, दाम नहीं बढ़ रहा है।"


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि तीन नए क़ानूनों को छोटे और सीमांत किसानों को अधिकतम लाभ सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है। ऐसे कृषकों की संख्या देश के कुल किसानों में लगभग 85 प्रतिशत है। ये किसान एपीएमसी कानून के सताए हुए किसान हैं। नए कृषि क़ानूनों के लागू होने से किसानों को बाजार के प्रतिबन्धों से आज़ादी मिलेगी और कृषि क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत होगी। इससे भारत के किसानों को अधिक लाभ होगा और उनके जीवन स्तर में सुधार आएगा।

जबकि कृषि क़ानूनों के विरोध में दिल्ली में पिछले दो महीने से किसान आंदोलन कर रहे हैं, किसानों का कहना है कि ये कानून किसानों के लिए ख़तरनाक साबित होंगे।

आर्थिक समीक्षा के अनुसार भारत में छोटे और सीमांत किसानों को बड़े पैमाने पर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई गई है। किसानों की कृषि संबंधी गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने के लिए समय पर ऋण की उपलब्धता को प्रमुखता दी गई। वर्ष 2019-20 में 13 लाख 50 हजार करोड़ रुपये का कृषि ऋण निर्धारित किया गया था जबकि किसानों को 1,392,469.81 करोड़ रुपये का ऋण दिया गया जो कि निर्धारित सीमा से काफी अधिक था। 2020-21 में 15 लाख करोड़ रुपये का ऋण प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया था। 30 नवंबर, 2020 तक 973,517.80 करोड़ रुपये का ऋण किसानों को उपलब्ध कराया गया। सर्वे रिज़र्व बैंक के हवाले से कहता है कि कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में क्रेडिट ग्रोथ यानी कर्ज़ की विकास दर अक्टूबर 2020 के 7.1% से बढ़कर अक्टूबर 2020 में 7.4% प्रतिशत हो गई है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान के एक हिस्से के रूप में कृषि ढांचा विनिर्माण कोष के तहत दिया जाने वाला ऋण कृषि क्षेत्र को और अधिक लाभ पहुँचाएगा।

आर्थिक समीक्षा के अनुसार फरवरी 2020 के बजट की घोषणाओं के अनुसार किसान क्रेडिट कार्ड को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया गया। प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत पैकेज के हिस्से के रूप में डेढ़ करोड़ दुग्ध डेयरी उत्पादकों और दुग्ध निर्माता कंपनियों को किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया था। आंकड़ों के अनुसार मध्य जनवरी, 2021 तक कुल 44,673 किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) मछुआरों और मत्स्य पालकों को उपलब्ध कराए गए थे जबकि इनके अतिरिक्त मछुआरों और मत्स्य पालकों के 4.04 लाख आवेदन बैंकों में किसान क्रेडिट कार्ड प्रदान करने की प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में हैं।

आर्थिक समीक्षा में जानकारी दी गई है कि भारत का मत्स्य उत्पादन, अब तक का सबसे अधिक रहा है

आर्थिक समीक्षा कहती है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के तहत दी जाने वाली वित्तीय सहायता की सातवीं किस्त के रूप में दिसंबर, 2020 में देश के 9 करोड़ किसान परिवारों के बैंक खातों में 18 हजार करोड़ रुपये की धनराशि ट्रांसफ़र की गई।

पशु धन क्षेत्र के बारे में आर्थिक सर्वे के अनुसार 2014-15 के मुकाबले 2018-19 में पशु धन के क्षेत्र में संयुक्त वार्षिक विकास दर के आधार पर 8.24 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। कृषि क्षेत्र और संबंधित गतिविधियों वाले क्षेत्रों के सकल मूल्य संवर्धन पर आधारित नेशनल अकाउंट्स स्टेटिस्टिक्स (एनएएस) 2020 के अनुसार पशु धन की हिस्सेदारी में वृद्धि देखी गई है। सकल मूल्य संवर्धन में (स्थिर मूल्य पर) पशु धन का योगदान लगातार बढ़ रहा है। 2014-15 में यह 24.32 प्रतिशत था जबकि 2018-19 में 28.63 प्रतिशत दर्ज किया गया। 2018-19 के सकल मूल्य संवर्धन में पशु धन की हिस्सेदारी 4.19 प्रतिशत रही।

आर्थिक समीक्षा में जानकारी दी गई है कि भारत का मत्स्य उत्पादन, अब तक का सबसे अधिक रहा है। 2019-20 में 14.16 मिलियन मिट्रिक टन मत्स्य उत्पादन किया गया। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था ने मत्स्य क्षेत्र में 212,915 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी दर्ज की है। यह कुल राष्ट्रीय सकल मूल्य संवर्धन का 1.24 प्रतिशत और कृषि क्षेत्र के सकल मूल्य संवर्धन का 7.28 प्रतिशत है।

आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान खाद्यान्न का वितरण दो चैनलों के माध्यम से किया गया। ये हैं - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई)। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को सभी 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में लागू किया जा रहा है और ये सभी एनएफएसए के अंतर्गत मासिक आधार पर खाद्यान्न प्राप्त कर रहे हैं। कोविड-19 महामारी के चलते प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के अंतर्गत भारत सरकार ने प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) की शुरुआत की थी। जिसके तहत लक्षित जनवितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के अंतर्गत आने वाले सभी लाभार्थियों को 5 किलो खाद्यान्न प्रति व्यक्ति मुफ्त दिया गया।

खाद्यान्न देने की व्यवस्था के तहत 80.96 करोड़ लाभार्थियों को अतिरिक्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया था।

खाद्य सब्सिडी का खर्च अधिक बताते हुए राशन की दुकानों पर मिलने वाले अनाज की कीमत बढ़ाने का सुझाव दिया गया है। आपको बता दें कि केंद्र सरकार के तहत आने वाला फ़ूड कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया (FCI) किसानों से एमएसपी पर अनाज ख़रीदता है और राशन की दुकानों पर कम कीमत पर सप्लाई करता है। कम कीमत पर अनाज बेचने से एफ़सीआई को होने वाले नुकसान की भरपाई केंद्र सरकार करती है जिसे फ़ूड सब्सिडी कहा जाता है।

प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना के तहत नवंबर 2020 तक प्रति व्यक्ति 5 किलो खाद्यान्न देने की व्यवस्था के तहत 80.96 करोड़ लाभार्थियों को अतिरिक्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया था। इस दौरान 75,000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के 200 लाख मीट्रिक टन से ज़्यादा अनाज का वितरण किया गया। इसके अलावा आत्मनिर्भर भारत पैकेज के अंतर्गत चार महीने तक (मई से अगस्त के बीच) प्रति व्यक्ति 5 किलो खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया, जिससे उन 8 करोड़ प्रवासी मज़दूरों को लाभ मिला जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम या फिर राज्य राशन कार्ड योजना के अंतर्गत नहीं आते थे, जिसकी सब्सिडी लागत लगभग 3,109 करोड़ रुपये थी।

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