बजट 2020 से किसानों की उम्मीदें वही हैं जो पांच साल पहले थी

Update: 2020-01-31 12:15 GMT

देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी 2020 को देश का आम बजट पेश करेंगी। ऐसे में एक किसान होने के नाते आप इस बजट से खुद के लिए क्या चाहते हैं? इस सवाल के जवाब में किसान नेमराज कहते हैं, " पिछले साल भी आपने इसी समय फोन किया था और यही सवाल पूछा था। मेरा जवाब वही है कि हमें हमारी फसलों की कीमत मिले और सरकार जो भी वादा करे उस पर अमल किया जा सके। मेरी हालत तो पिछले साल से वैसी है, जो समस्या पांच साल पहले थी, वही अब भी है।" महाराष्ट्र यवतमाल के खैरगांव पाटलकोड़ा गांव में रहने वाले यवतमाल कपास की खेती करते हैं।

बजट 2020-21 से अपनी उम्मीदों के बारे में वे बताते हैं, " मैं तो कपास की खेती करता हूं लेकिन मेरे बहुत से जानने वाले किसान प्याज की खेती करते हैं। अभी जो साल बीता है उन्होंने कौड़ियों की कीमत में प्याज बेचा, जबकि वही प्याज बाजार में 150 रुपए प्रति किलो तक बिका। बजट के समय हमने अखबार में पढ़ा था कि सरकार कोल्ड स्टोरेज बनायेगी जिससे किसान और आम लोगों को राहत मिलेगी, लेकिन उस वादे का कुछ नहीं हुआ। किसानों के लिए हर साल बड़े-बड़े वादे किये जाते हैं लेकिन हमें तो उसका कोई फायदा नहीं मिलता।"

कयास लगाये जा रहे हैं कि इस साल का बजट भी किसान केंद्रित होगा, पिछली साल की तरह। बजट 2019-20 में भी किसानों के लिए कई योजनाओं की घोषण हुई थी। हर साल किसानों के लिए ढेर सारी नीतियां बनती हैं, भारी-भरकम बजट भी पास होता है, लेकिन इससे किसानों की स्थिति में कितना बदलाव आया ?

इसके लिए सबसे पहले हम एक नजर डालते हैं कि पिछले पांच साल के बजट में किसानों के लिए कौन-कौन से वादे किये गये।

वर्ष 2015 का बजट

इस बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कोई नई घोषणा नहीं की बल्कि वर्ष 2015-16 के लिए कृषि ऋण लक्ष्य को 50,000 करोड़ रुपए बढ़ाकर 8.5 लाख करोड़ रुपए कर दिया। इसके अलावा सूक्ष्म सिंचाई के लिए 5,300 करोड़ रुपए का आवंटन किया और कृषि की आय बढ़ाने के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने का वादा किया।

वर्ष 2016

इस साल के कृषि बजट में भारी-भरकम बढ़ोतरी की गई। इस क्षेत्र के लिए कुल 47,912 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ जो वर्ष 2015-16 के बजट की अपेक्षा 80 फीसदी से ज्यादा था। कृषि ऋण का लक्ष्य बढ़ाकर 9 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया। सिंचाई कोष बनाने की भी घोषणा हुई। इसके अलावा कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए पैसे की कमी पूरी करने के लिए कर योग्य सेवाओं पर 0.5 फीसदी का कृषि कल्याण सेस लगाने का प्रस्ताव पारित किया।

वर्ष 2017 में भी बढ़ा कृषि ऋण का लक्ष्य

वर्ष 2015, 16 की तरह वर्ष 2017 के बजट में भी कृष ऋण के लक्ष्य में बढ़ोतरी की गई और इसे 9 लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया। इसके अलावा इस साल फसल बीमा योजना के तहत कवरेज को बढ़ाया गया और इसे 30 फीसदी फसल क्षेत्र से बढ़ाकर 40 फीसदी कर दिया गया। इसके लिए 9,000 करोड़ रुपए का प्रावधान भी हुआ।

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इसके अलावा सरकार ने मंडियों की ओर भी ध्यान दिया और राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) या ऑनलाइन मंडियों का दायरा 250 से बढ़ाकर 585 बाजारों तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा। कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग पर मॉडल बनाने की भी बात हुई।

वर्ष 2018 के बजट में किसानों की आय बढ़ाने पर जोर

इस साल बजट पेश करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की कि किसानों को लागत का डेढ़ गुना मूल्य दिया जायेगा। इसके साथ ही खरीफ फसलों की एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) में 50 फीसदी बढ़ाने की भी घोषणा हुई। कृषि कर्ज के लक्ष्य को बढ़ाकर 11 लाख करोड़ रुपए किया गया।

इसके अलावा कृषि बाजारों के लिए 2,000 करोड़ रुपए, कृषि प्रोसेसिंग सेक्टर के लिए 14,00 करोड़ रुपए और 500 करोड़ रुपए ऑपरेशन ग्रीन के लिए प्रस्तावित किया गया। गांवों में 22 हजार हाटों को कृषि बाजार में तब्दील करने की घोषणा हुई। कृषि उत्पादों के निर्यात को 100 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंचाने और देश में 42 मेगा फूड पार्क बनाए जाने का ऐलान भी किया गया।

2019 में जीरो बजट खेती पर जोर

वर्ष 2019-20 का कृषि बजट करीब एक लाख 30 हजार करोड़ रुपए का था जो कुल बजट का केवल 4.6 फीसदी ही था। इसमें से 75,000 करोड़ रुपए पीएम-किसान योजना के लिए आवंटित किए गये थे। सहकारिता के जरिये दूध और उसके उत्पादों का उत्पादन, भंडारण और वितरण के कारोबार को प्रोत्साहन और दूध खरीद, प्रसंस्करण और विपणन के लिए बुनियादी ढांचा पर भी जोर दिया गया था। जीरो बजट खेती को बढ़ाया देने की पहली बार बात 2019 के बजट में ही हुई थी।

इन पांच सालों के बजट को देखेंगे तो किसानों की आय बढ़ाने, फसल बीमा, फूड प्रोसेसिंग और कृषि मंडियों पर ज्यादा जोर दिया गया है। 

नेमराज कहते हैं, " सरकार फसलों की कीमत बहुत ज्यादा तो बढ़ा नहीं सकती, ऐसे में उसे हमारे पड़ोसी राज्य कर्नाटक जैसा कुछ करना चाहिए। कर्नाटक सरकार किसानों को फसलों पर सब्सिडी देती है जो उनके सीधे खाते में जाती है। केंद्र सरकार को भी कुछ ऐसी योजनाओं पर काम करना चाहिए, वरना वादे होते रहेंगे, लेकिन किसान बदहाल ही रहेगा।"

आंध्र प्रदेश के जिला चित्तूर के गांव मदनपल्ली में रहने वाले दादम रेड्डी टमाटर की खेती करते हैं और व्यापारी भी हैं। वे फोन पर बताते हैं, "इधर कई सालों से हमें टमाटर की खेती में बहुत नुकसान हो रहा है। जब हमारी फसल होती है तो भाव एकदम गिर जाता है। हम टमाटर को बहुत दिनों तक अपने पास रख भी नहीं सकते, ऐसे में मजबूरी में उसे बेचना पड़ता है। हम कई बार यह भी सोचते हैं कि क्यों ना टमाटर का कुछ बनाकर बेचें लेकिन वह भी नहीं हो पा रहा।"

आप बजट से क्या चाहते हैं, इस सवाल के जवाब में दादम कहते हैं, " बजट में तो हमें पता भी नहीं चलता कि हमारे लिए क्या आया है। हमारे यहां टमाटर की खेती होती है इसलिए हमारे यहां कोई ऐसी व्यवस्था हो जाये कि हम कीमत कम होने पर टमाटर को कुछ दिनों तक रोक सकें।"

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वर्ष 2018 के बजट प्रोसेसिंग सेक्टर के लिए 14,00 करोड़ का बजट प्रस्तावित था। इसके बाद वर्ष 2019 में सरकार का लक्ष्य था कि वर्ष 2019 में देशभर में 42 मेगा फूड पार्क बनाए जाएंगे, लकिन पांच साल तो छोड़िए, पिछले 10 साल में देश में सिर्फ 4 फूड पार्क ही बन पाये हैं।

किसानों की आय बढ़ाने में यह योजना एक महत्वपूर्ण योजना साबित हो सकती थी। इसका उद्देश्य किसानों, प्रसंस्करणकर्ताओं और खुदरा व्यापारियों को एक साथ लाते हुए कृषि उत्पादन को बाजार से जोड़ने के लिए एक ऐसा तंत्र उपलब्ध कराना है ताकि किसानों की उपज की बर्बादी न्यूनतम कर किसानों की आय में वृद्धि की जाए और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर दिए जाएं।

अभी 13 मेगा फूड पार्क में काम चल रहा है, जबकि 21 मेगा फूड पार्क में काम शुरू होना है। अब तक सिर्फ उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ही मेगा फूड पार्क शुरू हो सके हैं।

उत्तराखंड में फूड प्रोसेसिंग से जुड़े छोटे कारोबारी और हिमालयन मेगा फूड पार्क में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर काम कर चुके आरडी बटोला 'गांव कनेक्शन' को फोन पर बताते हैं, "मेगा फूड पार्क के जरिए यह कोशिश की जानी थी कि स्थानीय किसानों और उद्यमियों दोनों को लाभ मिले, मगर आज दोनों को ही फायदा नहीं मिल रहा है।"

"मैं खुद भी चाह रहा था कि फूड पार्क में प्रोसेसिंग की एक छोटी यूनिट लगा सकूं मगर छोटे कारोबारियों के लिए यह इतना आसान नहीं था। वहीं किसानों के लिए भी नहीं संभव हुआ क्योंकि फूड पार्क में कृषि की उपज बाहर से भी मंगाई जाती रही। ऐसे में मैंने खुद की प्रोसेसिंग यूनिट अलग से लगाई और आज क्षेत्र के 100 से ज्यादा किसानों को लाभ दे पा रहा हूं", वे आगे कहते हैं।

दादम रेड्डी जैसा कह रहे थे कि टमाटर खराब होने वाली फसल है, इसलिए वे इसे बहुत दिनों तक रोक नहीं सकते। आलू, प्याज और टमाटर के लिए 2018 के बजट में ऑपरेशन ग्रीन की बात हुई थी जिसके लिए 500 करोड़ रुपए का बजट भी प्रस्तावित था, लेकिन इसके लिए क्या-क्या हुआ, यह किसी को नहीं पता।

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उद्योग मंडल एसोचैम के पूर्व महासचिव डीएस रावत ने पिछले वर्ष 2018 में एक अध्ययन के हवाले से कहा था "भारत के पास करीब 6,300 कोल्ड स्टोरेज की सुविधा मौजूद है जिसकी कुल भंडारण क्षमता तीन करोड़ 1.1 लाख टन की है। इन स्थानों पर देश के कुल जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों के करीब 11 प्रतिशत भाग का भंडारण कर पाता है।

"वो तारीख थी 02 दिसंबर-2018। मैं मंडी में लगभग 20 कुंतल प्याज लेकर गया। अगली फसल की तैयारी के लिए पैसे चाहिए थे। सोचा था कि जो पैसे मिलेंगे उससे कुछ घर के काम भी करूंगा। लेकिन जब मंडी पहुंचा तो वहां प्याज की कीमत 50-80 पैसे प्रति किलो थी। मतलब 2000 किलो प्याज के बदले मुझे लगभग 1000 रुपए मिल रहा था। मंडी तक प्याज लाने में ही मेरा 600 रुपए खर्च हो गया था। इतने प्याज के पीछे जो खर्च आया उसकी तो बात ही छोड़ दीजिए।" मध्य प्रदेश के नीमच जिले के किसान कुलदीप पाटीदार कहते हैं।

मध्य प्रदेश के जनपद नीमच के तहसील मनासा के गाँव भीमसुख के रहने वाले कुलदीप आगे बताते हैं "अब इतने कम दाम में प्याज तो बेच नहीं सकता था। बहुत नाराजगी थी लेकिन इतना प्याज मैं रखता भी तो कहां? इसलिए उन्हें जानवरों को खिला दिया। उसके बाद प्याज की खेती की ही नहीं।" पिछले साल जब प्याज की कीमत 200 रुपए किलो ते पहुंच गई थी तब कुलदीप भी प्याज इसी कीमत में खरीद रहे थे। किसानों को इन्हीं समस्याओं से बचाने के लिए सरकार ऑपरेशन ग्रीन की बात की थी।

कृषि मामलों के जानकार देविंदर शर्मा कहते हैं," पिछले वर्ष के बजट में पीएम-किसान योजना का शुभारंभ हुआ, जिसके तहत प्रति कृषक प्रति वर्ष 6,000 रुपए की प्रत्यक्ष आय सहायता देने के लिए 75,000 करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधान किया गया था। यह आर्थिक सोच में बहुत बड़ा बदलाव है। मैं लगातार कृषक वर्ग के लिए आय हस्तांतरण की मांग कर रहा था, ताकि उस आर्थिक नुकसान की आंशिक रूप से भरपाई हो सके जिससे किसान साल-दर-साल गुजर रहे हैं।"

"मुझे लगता है कि पीएम-किसान योजना ग्रामीण आय बढ़ाने का सही समय पर सही उपाय है। मेरी नजर में कोई दूसरा नीतिगत उपाय नहीं है जिसकी सभी किसानों तक पहुंच हो। इसका सार्थक प्रभाव हो इसके लिए वित्त मंत्री को मेरा सुझाव है कि आने वाले बजट में प्रधानमंत्री-किसान योजना के तहत पहले से आवंटित 75,000 करोड़ करोड़ रुपए के अलावा 1.50 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज दिया जाए।" देविंदर शर्मा आगे कहते हैं।


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