लखनऊ। अभी दो दिन पहले ही हम खबर पढ़ रहे थे कि भारत के उपग्रह ने मंगल की कक्षा में 1000 दिन पूरे कर लिए हैं। देश के लिए ये गौरव की बात है, लेकिन इसी देश की एक दूसरी तस्वीर हमारी तमाम उपलब्धियों पर सवाल खड़े कर देती है। रविवार को राजस्थान के भरतपुर में एक महिला ने भरी दोपहरी सड़क के किनारे एक बच्चे को जन्म दिया। ये घटना देश में चल रही जननी योजनाओं को कठघरे में ला खड़ी करती है। सरकार बेटी आगे बढ़ाना चाहती है, पढ़ाना चाहती है, लेकिन जरा सोचिए, जब जननी ही सुरक्षित नहीं रहेगी तो बेटी कैसे आगे बढ़ेगी।
घटना भरतपुर की है। वक्त पर एंबुलेंस नहीं पहुंची तो परिवार ऑटो से प्रसूता (पिंकी) को लेकर डिलीवरी के लिए नजदीकी अस्पताल लेकर चल पड़ा, लेकिन बीच रास्ते में ही महिला को तेज दर्द होने लगा और उसे ऑटो से उतारना पड़ा। जननी को बीच सड़क पर बिना किसी डॉक्टर या चिकित्सा सेवा के बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ा। उस समय तापमान 40 से 45 डिग्री के बीच रहा होगा। सड़क किनारे घर के पुरुष ने सफेद कपड़े की एक दीवार बनाई। साथ की कुछ औरतों ने महिला का प्रसव कराया। बीच सड़क पर चादर का एक कोना पकड़े खड़े महिला के पति ने स्थानीय रिपोर्टर को बताया, एंबुलेंस वाला नंबर नहीं मिला, मजबूरी में ऑटो से अस्पताल ले जा रहे थे लेकिन बीच में दर्द हुआ तो यहीं उतारना पड़ा।" प्रसव की यह घटना जिंदल अस्तपाल के पास ही की है। प्रसूता ने चार बेटी के बाद बेटे को जन्म दिया।
इस बारे में गांव कनेक्शऩ ने जब भरतपुर के सीएमएचओ डॉ. गोपाल शर्मा ने फोन पर बात की तो उन्होंने बताया, "गलती परिजनों की है। उन्होंने कुछ ही देर पहले ही एंबुलेंस के लिए फोन किया था। कम से कम 30 मिनट पहले तो फोन करना चाहिए। प्रसूता को ऑटो से अस्पताल ले आया जा रहा था लेकिन लेबर पेन होने की वजह से साथ की महिलाओं ने सड़क पर प्रसव करा दिया।"
देश में प्रसव के दौरान हर पांच मिनट एक प्रसूता की मौत
ये लापरवाही तब बरती जा रही है जब हमारे देश प्रसव के दौरान हर वर्ष सैकड़ों प्रसुतओं और नवजातों की मौत हो जाती है। पिछले साल अगस्त में डब्ल्यूएचओ ने एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में गर्भ या प्रसव के दौरान प्रतिवर्ष 1.36 लाख महिलाओं की मौत होती है अर्थात प्रत्येक पांच मिनट में एक महिला की मौत गर्भ या प्रसव के दौरान होने की बात कही गई है। यह काफी मात्रा में खून बह जाने या हेमोरेज के कारण होती है।
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वहीं साइंस पत्रिका लैंसेंट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक हर दिन होने वाली मौत में से आधे प्रसव के दौरान जान गंवाते हैं। यानि ये ऐसी मौतें हैं जिन्हें टाला जा सकता है, हालांकि 2015 के आकड़े दिखाते हैं कि इनमें कमी आई है। 2000 से 2015 के बीच जन्म के समय मरने वाले बच्चों की दर हर 10000 पर 247 से घटकर 184 हो गई है। इस तरह की घटनाएं सबसे ज्यादा मध्यम और निम्न आयवर्ग वाले देशों में होती हैं।
वीडिया साभार- पत्रकार दीपक लावानिया के फेसबुक वॉल से