भारत में बारिश और तीव्र गर्मी बढ़ने की चेतावनी, दक्षिण भारत में होगी भारी बारिश: आईपीसीसी रिपोर्ट

नौ अगस्त को जारी एआर6 वर्किंग ग्रुप फर्स्ट की रिपोर्ट के अनुसार भारत के दक्षिणी हिस्सों में बारिश में वृद्धि कहीं ज्यादा गंभीर होगी। दक्षिणी-पश्चिम तटों पर बारिश में 1850-1900 की तुलना में 20 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। अगर पृथ्वी का तापमान चार डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो भारत में बारिश लगभग 40 प्रतिशत बढ़ सकती है।

Update: 2021-08-10 13:55 GMT

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर-सरकारी पैनल की बहुप्रतीक्षित वैज्ञानिक रिपोर्ट नौ अगस्त को जारी की गई। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इंसानी गतिविधियों से पैदा उत्सर्जन के कारण किस तरह पृथ्वी में बुनियादी बदलाव आ रहे हैं। "क्लाइमेटचेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस" शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में भारत के लिए गंभीर परिस्थितियों की चेतावनी दी गई है। इसमें नीति निर्माताओं के लिए छठे असेसमेंट साइकल (एआर6) के तहत पहले वर्किंग ग्रुप की ओर से तैयार रिपोर्ट का सार दर्ज है।

नई रिपोर्ट को आम तौर पर डब्ल्यूजीआई (Working Group I) के नाम से जाना जाता है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पृथ्वी का तापमान हर स्थिति में 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ेगा। यहां तक कि कार्बन उत्सर्जन में कटौती के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को देखते हुए भी 2030 के दशक में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी ही, यह 1.6 डिग्री सेल्सियस भी पहुंच सकती है। इसके बाद, मौजूदा सदी के आखिर में तापमान वृद्धि घटकर 1.4 डिग्री सेल्सियस पर आ सकती है।

आईपीसीसी की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि वैश्विक स्तर पर होने वाली औसत तापमान वृद्धि से भारत भी प्रभावित होगा और देश में अत्यधिक गर्म मौसम पहले से जल्दी आएगा और उसकी तपिश भी ज्यादा होगी। रिपोर्ट भारत में बारिश का वार्षिक औसत बढ़ने का अनुमान भी जताती है। मॉनसून की बारिश बढ़ने की भी संभावना है।

रिपोर्ट कहती है कि दक्षिण भारत में बारिश में ज्यादा वृद्धि दर्ज की जाएगी। दक्षिण पश्चिमी तट पर वर्षा में 1850-1900 की तुलना में 20 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। डब्ल्यूजीआई की रिपोर्ट कहती है कि अगर पृथ्वी का तापमान चार डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो भारत में बारिश में 40 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।

आईपीसीसी की नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत के दक्षिणी भागों में वर्षा में वृद्धि अधिक गंभीर होगी

इतना ही नहीं, दक्षिण एशिया में मॉनसून की बारिश में मध्य से लेकर दीर्घकालिक वृद्धि का अनुमान भी जताया गया है। अभी वैश्विक स्तर पर, अत्यधिक भारी बारिश से जुड़ी घटनाएं औसतन दस साल में एक बार देखने को मिलती हैं। अगर तापमान में दो डिग्री की वृद्धि हुई तो दस साल में ऐसा लगभग दो बार हो सकता है (दस साल की अवधि में 1.7 बार). रिपोर्ट के लेखक चेतावनी देते हैं कि अगर तापमान चार डिग्री सेल्सियस बढ़ा तो दस साल की अवधि में इस तरह की घटनाएं 2.7 बार ज्यादा होने का अनुमान है।

डब्ल्यूजीआई की ताजा रिपोर्ट जलवायु विज्ञान पर हमारी समझ को और बेहतर बनाती है। आईआर5 की रिपोर्ट 2014 में जारी हुई थी। उसके बाद यह आईपीसीसी (वर्किंग ग्रुप फर्स्ट) यानी एआर6 डब्ल्यूजीआई की तरफ से सबसे बड़ा अपडेट है। इस रिपोर्ट में विकट मौसम, जलवायु परिवर्तन में इंसानी गतिविधियों के योगदान, कार्बन बजट, फीडबैकसाइकल और भविष्य में जलवायु की स्थिति जैसे विषयों का उल्लेख किया गया है।

ताजा रिपोर्ट इस बारे में भी हमारी समझ बेहतर बनाती है कि औद्योगिकhकरण के पहले से लेकर अब तक इंसानी गतिविधियां जलवायु परिवर्तन के लिए किस हद तक जिम्मेदार हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि मानवीय गतिविधियों से पृथ्वी का तापमान बढ़ा और इस वजह से बहुत तेजी से और व्यापक परिवर्तन हुए। रिपोर्ट के लेखक चेतावनी देते हैं कि इनमें से कुछ परिवर्तनों को अब पलटा नहीं जा सकता। आखिर में रिपोर्ट कहती है कि अगर उत्सर्जन में गंभीर और बड़ी कटौती नहीं की गई, तो पृथ्वी अभूतपूर्व परिवर्तनों को झेलती रहेगी।

रॉक्सी मैथ्यू कोल इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (आईआईटीएम) में सीनियर साइंटिस्ट हैं और आईपीसीसीएसआर ओसीसी (जलवायु परिवर्तन में महासागर और क्रायोस्फीयर पर विशेष रिपोर्ट ) के प्रमुख लेखक भी। नई रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए वह कहते हैं, "पिछली आईपीसीसी रिपोर्ट पहले ही आ चुकी है। जिसमें ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को जलवायु में बदलाव का जिम्मेदार ठहराया गया है।आईपीसीसीएआर6 की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन पर 2015 में पेरिस में हुए समझौते में विश्व के तमाम देश 1.5 या दो डिग्री सेल्सियस तक वैश्विक तापमान को रखने के लिए तैयार हुए थे। 2015 का पेरिस समझौता फेल हो चुका है।"

कॉल के अनुसार, वैश्विक तापमान एक डिग्री सेल्सियस से ऊपर जा रहा है। भारत में इसका असर दिखना शुरु हो गया है। देश सबसे खराब मौसम, मसलन तूफान, बाढ़, सूखा और गर्म हवाओं का सामना कर रहा है। जलवायु वैज्ञानिक चेतावनी देते हुए कहते हैं,"बिना किसी लगाम के तापमान और कार्बन उत्सर्जन बढ़ता रहा तो भविष्य में इसकेबहुत सारे दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे। मौसम की यह मार बढ़ती चली जाएगी।"

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तेजी से बढ़ रहा ग्लोबल वार्मिंग

डब्ल्यूजीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि इंसानी गतिविधियों के कारण 2000 सालों में तापमान में काफी बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2019 में, वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइडCO2की मात्रा अब तक सबसे अधिक दर्ज हुई है। इतनी अधिक मात्रा बीते 20 लाख सालोंमें भी नहीं रही होगी। वहीं अगर अन्य ग्रीन हाउस गैस मीथेन और नाइट्रसऑक्साइडकी बात करें तो इसकी मात्रा इतनी अधिक थे जितनी कि पिछले 8 लाख सालों में नहीं रही होगी।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 1970 के बाद से पृथ्वी के गर्म होने की दर और बढ़ गई है जितना तापमान बीते 2000 साल में नहीं बढ़ा उतने पिछले 50 वर्षों में बढ़ गया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इंसानो की वजह से ग्लोबलवार्मिंग बढ़ रही है

ताजा रिपोर्ट इस बारे में भी हमारी समझ बेहतर बनाती है कि औद्योगिकhकरण के पहले से लेकर अब तक इंसानी गतिविधियां जलवायु परिवर्तन के लिए किस हद तक जिम्मेदार हैं। 

भारत में बढ़ती बारिश

एआरसी रिपोर्ट ने पहली बार जलवायु परिवर्तन का क्षेत्रो पर पड़ रहे प्रभावों के बारे में विस्तार से बताया है। इससे क्षेत्रीय जलवायु के आकलन और अन्य निर्णय लेने में मदद मिलेगी। भविष्य में होने वाले बदलावों को ध्यान में रखते हुए इसमें पांच तरह की स्थितियों को रखा गया है

आईआईटीएम,पुणेमें वैज्ञानिक स्वप्ना पनिकल कहती हैं, "औसतन मध्यम और भारी वर्षा का अनुमान है। और अगर तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है तो भारी बारिश की घटनाओं में तेजी आ सकती है। हालांकि इसे लेकर आम सहमति नहीं है। लेकिन 21 वीं सदी के अंत तक बारिश बढ़ जाएगी, इसकी उम्मीद कर सकते हैं।"

वैज्ञानिक आगे कहती हैं, "लगभग 20-30 सालों से हम इन बदलावों की वजह से बारिश की मात्रा में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं देख रहे हैं लेकिन 21 वीं सदी के अंत तक गर्मियों में मानसून में होने वाली बारिश के साथ-साथ पूरे साल होने वाली बारिश, दोनों में वृद्धि हो जाएगी।"

उनके अनुसार भारी बारिश की घटनाओं में बदलाव को लेकर आम सहमति ज्यादा नहीं है। लेकिन हम निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि 21 वीं सदी में भारी गर्मी के बढ़ने और तेज सर्दी के कम होने का अनुमान है।

21 वीं सदी के अंत तक गर्मियों में मानसून में होने वाली बारिश के साथ-साथ पूरे साल होने वाली बारिश, दोनों में वृद्धि हो जाएगी। फोटो: रफीकुल मोंटू

हाल की रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट इंडिया के जलवायु कार्यक्रम निदेशक उल्का केलकर कहते हैं, "यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब मौसम तबाही का मंजर दिखा रहा है। इस रिपोर्ट ने आने वाले 30 सालों में ही खतरे की घंटी बजा दी है।भारत के लिए रिपोर्ट में की गई भविष्यवाणी का मतलब है कि लोगों को लंबे समय तक, बार-बार आने वाली गर्म हवाओं से जूझना होगा। सर्दी में होने वाली फसलों के लिए गर्म रातें, गर्मियों की फसलों के लिए अनियमित मॉनसूनी बारिश, विनाशकारी बाढ़ और ऐसा तूफान के लिए तैयार रहना होगा जो पीने के पानी या चिकित्सा में इस्तेमाल की जाने वाली ऑक्सीजनके उत्पादन के लिए जरूरी बिजली की सप्लाई में बाधा डाल सकती है।"

गर्म हो रहा हिंद महासागर और बढ़ता समुद्र स्तर

जलवायु परिवर्तन के चलते, भारत के 7,517 किलोमीटर तटीय इलाकों के निचले इलाकों को बाढ़ के खतरे का सामना करना पड़ेगा।इसमें मुंबई, चेन्नई, कोचीन, कोलकाता, सूरत और विशाखापट्टनम जैसे बड़े शहर शामिल हैं। पिछले अध्ययन में चेतावनी दी गई थी कि अगर समुद्र का स्तर 50 सेंटीमीटर बढ़ता है तो तटीय क्षेत्रों में रहने वाले 2करोड़ 86 लाख लोग बाढ़ की मार झेलेंगे। बाढ़ से लगभग चार ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होगा।

डब्ल्यूजीआईकी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हिंद महासागर, विश्व के अन्य महासागरों की तुलना में अधिक गर्म हो रहा है। समुद्र के जलस्तर में आधे से ज्यादा बढ़ोतरी के लिए ताप प्रसार जिम्मेदार है।

पनिकल कहती हैं," साल 2006-20018 के बीच,जलवायु परिवर्तन के चलते हिंद महासागर में पानी का स्तर सालाना 3.57 मिलीलीटर बढ़ रहा है। तापमान 1.5 डिग्री होने पर इसके जलस्तर में एक डिग्री और बढ़ोतरी हो जाने की संभावना है। और इसी के साथ विश्व के सारे समुद्र और हिंद महासागर के समुद्र स्तर में इसी के अनुसार बढ़ोतरी का अनुमान है।"

आईपीसीसी की नई रिपोर्ट के अनुसार, गैसों के उत्सर्जन में कमी के बावजूद 21 वीं सदी में समुद्रों के जलस्तर में बढ़ोतरी होती रहेगी।

काउंसिल फॉरएनर्जीएनवायरनमेंट एंड वाटर(सीईईडब्ल्यू), नई दिल्ली के सदस्य वैभव चतुर्वेदी कहते हैं,"इस रिपोर्ट ने एक बार फिर से पूरे आत्मविश्वास और वैज्ञानिक प्रमाण के साथ ग्लोबलवार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के मुददे को उठाया है। नीति निर्माता और वार्ताकारों ने लगभग तीन दशक पहले भावी पीढ़ी को जो वादें किए थे उन्हें पूरा करने का ये सही समय है"

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गर्म हवाएं और हिंदू कुश पर्वत के पिघलते ग्लेशियर

डब्ल्यूजीआई की रिपोर्ट को 11 क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। इसमें एशिया,अफ्रीका ऑस्ट्रेलिया आदि देशों को शामिल किया गया है। एशिया खासकर उत्तरी एशिया पर काफी खराब असर पड़ने की संभावनाएं हैं। यहां समुद्र के पानी के स्तर में तेजी से इजाफा होने की आशंका है। समुद्र तट से उठने वाली गर्म हवाएं भी बढ़ेगी गर्मी का मौसम लंबा हो जाएगा ।

रिपोर्ट तैयार करने वाले वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि 21वीं सदी में गर्म हवाएं और ज्यादा तेज हो जाएगीं।

सदी के मध्य में एशिया के ऊंचे पहाड़ों से ग्लेशियर टूटकर गिरने की घटनाएं बढ़ जाएगीं। जिससे धीरे धीरे ग्लेशियर कम होते चले जाएंगे।

डब्ल्यूजीआई की रिपोर्ट के अनुसार, 21 वीं सदी के दौरान हिंदुकुश पर्वत की बर्फ़ से ढकी चोटियां कम हो जाएंगीं। बर्फ़ की मात्रा भी कम हो जाएगी। यह चिंता का कारण है क्योंकि हिंदू कुश हिमालयी ग्लेशियर इस क्षेत्र में रहने वाले 24 करोड़ और 8 करोड़ 60 लाख भारतीयों के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

सदी के मध्य में एशिया के ऊंचे पहाड़ों से ग्लेशियर टूटकर गिरने की घटनाएं बढ़ जाएगीं। जिससे धीरे धीरे ग्लेशियर कम होते चले जाएंगे।

अलग-अलग किए गए वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, पश्चिमी लाहौल स्पीति क्षेत्र के हिमालयी ग्लेशियर कम हो रहे हैं। ग्लेशियर का कम होना 21 वीं सदी से ही शुरू हो गया है। यदि उत्सर्जन में कमी नहीं की गई तो हिमालय के ग्लेशियर दो तिहाई तक कम हो जाएंगे। इससे इस क्षेत्र में लाखों लोगों की पानी की आपूर्ति पर प्रभाव पड़ सकता है।

सीओपी26 (दलों के 26 वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन) के अध्यक्ष, ब्रिटिश राजनेता आलोक शर्मा कहते हैं, "जलवायु संकट के प्रभावों को दुनिया भर में साफतौर पर देखा जा सकता है और अगर हमने अभी कुछ नहीं किया तो इसका हमारे जीवन, कामकाज और प्राकृतिक आवासों पर सबसे खराब असर देखने को मिलेगा।"

चतुर्वेदी के अनुसार, इसकी चपेट में आने वाले देशों को खुद जलवायुसे होने वाले खतरे का खाका तैयार करना होगा और खुद ही इससे निपटने के लिए प्रयास भी करने होंगें। इस दशक में कोयले के उपयोग को खत्म करना ही होगा।

द वर्किंग ग्रुप1 (एआर6 डब्ल्यूजीआई) की रिपोर्ट को 234 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है और 195 देशों ने इसे मंजूरी दी है।---2014 में आईपीसी की एआर5 रिपोर्ट जिसमें 1.5 तापमान की बात कही गई थी, के बाद यह जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा अपडेट है।

समूह की पहली ड्राफ्ट पर 750 विशेषज्ञ ने 23,462 रिव्युकमेंट किए और दूसरे ड्राफ्ट को 51,387 रिव्युकमेंट सरकार से, 1,279 रिव्युकमेंटविशेषज्ञों से मिलें। 47 देशों की सरकारों ने 3,000 से अधिक कमेंट्स में अपने राय रखी। इस रिपोर्ट को तैयार करने में 14,000 शोध पत्रों को शामिल किया गया।

आईपीसीसी की नई रिपोर्ट पढ़ें

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