बजट 2021: शहरों में पानी के लिए 287,000 करोड़ रुपए खर्च करेगी सरकार, मगर ग्रामीणों इलाकों के लिए शुरू हुई योजना सुस्त

वर्ष 2019 में जल जीवन मिशन-ग्रामीण शुरू करने के बाद मोदी सरकार ने बजट 2021 में जल जीवन मिशन-शहरी लॉन्च किया है। जानकार इसका स्वागत कर रहे हैं, लेकिन असली चुनौती स्रोत की स्थिरता और जल आपूर्ति की गुणवत्ता को लेकर है। वर्तमान समय में महज 34% ग्रामीण परिवारों को ही जल जीवन मिशन-ग्रामीण के तहत नल का जल मिलता है।

Update: 2021-02-09 06:15 GMT
ग्रामीण क्षेत्रों में नल से पानी की सप्लाई की स्थिति अभी भी बहुत अच्छी नहीं है। (फोटो- Amar Ramesh/flickr)

एक फरवरी को आम बजट 2021-22 के अपने भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जल जीवन मिशन-शहरी को शुरू करने की घोषणा की। इस मिशन का लक्ष्य एक सर्वव्यापी जलापूर्ति योजना के तहत 4,378 शहरी स्थानीय निकायों के 2.86 करोड़ घरों में नल के ज़रिए पीने का साफ़ पानी उपलब्ध कराना है।

नल कनेक्शन के अलावा इस नई योजना का ज़ोर 500 अमृत शहरों में तरल अपशिष्टों के प्रबंधन पर भी है। मिशन पांच वर्ष तक चलेगा जिसके लिए 287,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।

इसी बीच, बजट में वित्त वर्ष 2021-22 के लिए केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के अधीन, पेयजल और स्वच्छता विभाग के बजट में भारी बढ़ोतरी की गई है। इस विभाग को वर्ष 2019-20 के बजट में इस विभाग ने 18,264.26 करोड़ रुपए ख़र्च किए थे जिसे बजट 2020-21 में थोड़ा कम करके 17,023.50 करोड़ रुपए कर दिया गया था। वित्त वर्ष 2021-22 के लिए इस विभाग को 60,030.45 करोड़ रुपए प्रस्तावित किए गए हैं। यह बढ़ोतरी, 2019-20 के वास्तविक ख़र्च और 2020-21 के बजट से 3.5 गुना से ज्यादा है।

"जिस तरह से शहर और कस्बे पानी, स्वच्छता से जूझ रहे हैं उसे देखते हुए शहरी भारत के लिए अलग से जल जीवन मिशन स्वागत योग्य है और इसके लिए प्रस्तावित बजट भी अच्छा है," वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (WRI) की रिज़िल्यन्स एंड एनर्जी एक्सेस की प्रबंधक, नम्रता जिनोया ने गांव कनेक्शन को बताया। "हालांकि, चुनौती स्थानीय स्तर पर पानी के स्रोत और शुद्ध पेयजल की आपूर्ति में है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि शहरों और कस्बों में पानी के लिए हम अधिक बांध बनाने लगें और इको सिस्टम को नुकसान पहुंचाने वाला इन्फ़्रास्ट्रक्चर खड़ा करने लगें," उन्होंने आगे कहा।

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सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट, नई दिल्ली के वरिष्ठ निदेशक, सुरेश कुमार रोहिल्ला ने भी यही चिंताएं जताईं, "जल जीवन मिशन-शहरी ने पानी और स्वच्छता से संबंधित कई मुद्दों को ध्यान में रखा है जो सिविल सोसाइटी और इस क्षेत्र के विशेषज्ञ उठाते रहे हैं। इसलिए, यह अच्छी बात है," उन्होंने गाँव कनेक्शन से कहा।

"लेकिन सवाल तो अभी वही हैं कि 2.86 करोड़ शहरी घरों के लिए पानी आएगा कहां से? बड़ी संख्या में शहर और कस्बे अभी पानी की कमी से जूझ रहे हैं। ज्यादातर जल स्रोत प्रदूषित और अतिक्रमण का शिकार हैं। स्थानीय स्तर पर साफ़ पानी देने के लिए एक अच्छी योजना की जरूरत है," उन्होंने आगे कहा। "वर्तमान में ऐसा लग रहा है कि जैसे हम उल्टे क्रम में काम रह रहे हैं। नल और पाइपलाइन तो पहुंच सकती हैं, लेकिन इसमें पानी की व्यवस्था कैसे होगी?" सुरेश सवाल करते हैं।

अभी भी बड़ी संख्या में ग्रामीण परिवारों के पास नल का कनेक्शन नहीं है। (फोटो- गांव कनेक्शन)

आप दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे शहरों के मामले ले लीजिये। इनके पानी के स्रोत सैकड़ों किलोमीटर दूर हैं जो पाइपलाइन से होकर आता है और पहुंचते-पहुंचते पानी का कुछ हिस्सा बर्बाद भी हो जाता है। दूर का इलाका बिना पानी के ही रह जाता है, और ग्रामीण भारत की एक बड़ी आबादी के पास अभी भी नल से पानी सप्लाई की सुविधा नहीं है। महिलाओं को पानी लाने के लिए रोज़ एक लंबी दूरी तय करनी पड़ती है।

प्रगति रिपोर्ट: जल जीवन मिशन (ग्रामीण)

वर्ष 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने ग्रामीण परिवारों को नल से जल की आपूर्ति के लिए अपनी महत्वपूर्ण योजना, जल जीवन मिशन-ग्रामीण को लॉन्च किया। इस योजना का लक्ष्य 2024 तक हर ग्रामीण परिवार तक नल से जल पहुंचाना था।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार तीन फरवरी तक, 191,781,211 ग्रामीण परिवारों में से 65,777,950 परिवारों को नल का कनेक्शन दिया जा चुका है, जो कुल लक्ष्य का 34.3% है।

गोवा और तेलंगाना के ग्रामीण क्षेत्रों में 100 फीसदी परिवारों तक नल का कनेक्शन पहुंच चुका है। इसके बाद पुडुचेरी (87.97%), अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (87.53%), हरियाणा (85.52%), गुजरात (82.06%) और हिमाचल (75.64%) आते हैं। (ग्राफ़ देखें)

सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में पश्चिम बंगाल (5.9%), असम (6.26%), लद्दाख (7.53%) और उत्तर प्रदेश (8.97%) शामिल हैं। दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव में कवरेज शून्य है।


यह पहली बार नहीं है जब केंद्र सरकार ने पानी के नल के कनेक्शन के लिए कोई योजना शुरू की है। कई योजनाओं के बावजूद, ग्रामीण परिवारों तक पीने का साफ पानी पहुंचाने लिए सरकार संघर्ष कर रही है।

सीएजी की अगस्त 2018 में संसद में पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार, 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) के अपने प्रमुख, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के लक्ष्य को पूरा करने में असफल रही है।

इस कार्यक्रम के तहत, सरकार ने सभी ग्रामीण बस्तियों, सरकारी स्कूलों और आंगनबाड़ियों तक साफ़ पानी पहुंचाने की घोषणा की थी, और 50 फीसदी ग्रामीण आबादी तक पीने योग्य पानी पहुंचाने का भी लक्ष्य था। इसके अलावा वर्ष 2017 तक 35 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को घरेलू कनेक्शन भी दिया जाना था।

हालांकि सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया कि दिसंबर 2017 तक केवल 18 फीसदी ग्रामीण आबादी को ही नल से पीने योग्य पानी (प्रतिदिन 55 लीटर प्रति व्यक्ति) उपलब्ध कराया जा सका, जबकि 17 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास घरेलू कनेक्शन थे।

पानी और स्वच्छता के क्षेत्र में काम कर रहे एक गैर-लाभकारी संगठन, मेघ पाइन अभियान के संस्थापक, एकलव्य प्रसाद ने गांव कनेक्शन को बताया, ''फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाइट्रेट, आयरन, अम्ल और भारी धातुरहित सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना भारत में अभी भी एक चुनौती है।" उन्होंने आगे कहा, "इन चुनौतियों निपटने के लिए योजना के लागू करने से पहले, लागू करने के दौरान और योजना के बाद की रणनीतियों पर काम करने ज़रूरत है ताकि पीने के साफ़ पानी की परियोजनाओं में स्थिरता आ सके।

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साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम, रिवर एंड पीपुल के समन्वयक, हिमांशु ठक्कर भी जल स्रोतों की स्थिरता पर यही चिंता जताते हैं। "जल जीवन मिशन और स्वच्छ भारत मिशन के अगले चरण की योजना को बनाते वक्त उससे होने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव पर ध्यान नहीं दिया गया है। यह पर्यावरण के लिए बहुत घातक हो सकता है," उन्होंने गांव कनेक्शन से कहा।

पिछले साल की गर्मियों में कोरोनावायरस महामारी के बीच गांव कनेक्शन ने 23 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में कोविड-19 के असर को समझने के लिए एक सर्वे कराया।

सर्वे में यह भी पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या ग्रामीण क्षेत्रों के घरों में पानी की नियमित ज़रूरतों के अलावा हाथ धोने के लिए पर्याप्त पानी है? लगभग 38 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि महामारी के समय पानी की अतिरिक्त ज़रूरतें पूरी करने के लिए महिलाओं को ज्यादा दूर तक जाना पड़ा

जल जीवन मिशन के मुख्य लक्ष्य में स्थिरता भी होनी चाहिए

जिनोया के अनुसार, शहरों और कस्बों को सरल और स्थायी समाधानों में निवेश करना चाहिए। जिनके लिए जल जीवन मिशन की तरह ज़्यादा निवेश की ज़रूरत नहीं पड़ती। "हमें शहरों और कस्बों को प्राकृतिक राजधानी बनाने जैसा समाधान चाहिए। उदाहरण के लिए बेंगलुरु जैसा शहर जहां सालाना अच्छी बारिश होती है और बारिश का यह पानी स्थानीय लोगों की ज़रूरतें पूरी करने में सक्षम होना चाहिए," उन्होंने कहा।

इसी तरह, शहरी झीलों, वेटलैंड्स और अन्य स्थानीय जल स्रोतों को पर्यावरण की दृष्टि फिर से सुधारने की आवश्यकता है ताकि शहरों और कस्बों को, ग्रामीण इलाकों के पानी की ज़रूरत न पड़े, जहां पानी के नल कनेक्शन पहले से ही कम हैं और लगातार सूखा भी पड़ता रहता है।

"पानी के स्रोत स्थानीय ही होने चाहिए वर्ना ट्रांसपोर्ट के दौरान बड़ी मात्रा में पानी की बर्बादी होती है। पानी ट्रीट करके फिर से इस्तेमाल किए जाने की भी ज़रूरत है, जिसकी बात जल जीवन मिशन-शहरी भी करता है," जिनोया ने कहा।

"जल जीवन मिशन-शहरी, जल स्रोतों पर दबाव डालेगा। इसलिए इस मिशन के लिए सावधानी पूर्वक योजना बनाने की ज़रूरत है। स्रोत की स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करना होगा। मिशन में जल स्रोतों के कायाकल्प और भू-जल प्रबंधन की भी बात है जो कि अच्छी बात है," रोहिल्ला ने कहा।

प्रसाद के अनुसार, जल जीवन मिशन को कई रणनीतियों की आवश्यकता है, जिसमें साफ़ पानी के प्रोजेक्ट्स में लोगों की भागीदारी, कैडर के प्रशिक्षण और विकास जैसे 'जल दूत' आदि शामिल हैं। वार्ड और पंचायत स्तर के सामुदायिक-आधारित संस्थानों की क्षमता का निर्माण करने की भी जरूरत है।

इस स्टोरी को अंग्रेजी यहां पढ़ें-

अनुवाद: संतोष कुमार

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