मध्य प्रदेश के नये मुख्यमंत्री के बारे में कुछ खास: कमलनाथ को तीसरा बेटा मानती थीं इंदिरा गांधी
मध्यप्रदेश के 18वें मुख्यमंत्री बने कमलनाथ को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपना तीसरा बेटा मानती थीं। कमलनाथ एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए गांधी-नेहरू परिवार की तीन पीढ़ियों, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी एवं राहुल गांधी के साथ काम किया है
भोपाल (भाषा)। मध्यप्रदेश के 18वें मुख्यमंत्री बने कमलनाथ को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपना तीसरा बेटा मानती थीं। कमलनाथ एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए गांधी-नेहरू परिवार की तीन पीढ़ियों, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी एवं राहुल गांधी के साथ काम किया है।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक बार उन्हें अपना तीसरा बेटा कहा था, जब उन्होंने 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार से मुकाबले में उनकी मदद की थी। कमलनाथ का इंदिरा गांधी से कितना गहरा नाता था, इसकी तस्दीक उनका 2017 का एक ट्वीट भी करता है। इसमें उन्होंने इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें मां कहा था।
72 वर्षीय कमलनाथ को 39 साल बाद अब इंदिरा के पोते कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने नयी जिम्मेदारी सौंपी है। पंद्रह साल बाद कांग्रेस राज्य में सत्तासीन हुई है। जनता के बीच मामा के रूप में छवि बना चुके और मध्य प्रदेश में सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा नीत सरकार को लगातार चौथी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए कमलनाथ ने उन्हें कड़ी टक्कर दी। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कमलनाथ का दावा चुनौतियों से भरा रहा। ज्योतिरादित्य सिंधिया उनके समानांतर खड़े थे। लेकिन आखिरकार पार्टी अध्यक्ष को कठोर निर्णय लेना पड़ा।
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राहुल गांधी ने कहा कि धैर्य और समय दो सबसे शक्तिशाली योद्धा होते हैं। आखिरकार अनुभव ही बदलाव की जरूरत को लेकर विजयी हुआ और कमलनाथ को मुख्यमंत्री चुना गया। इसमें अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को भी ध्यान में रखा गया। सिंधिया के साथ कमलनाथ ने मध्य प्रदेश में विपक्षी कांग्रेस की किस्मत फिर से पलटने का काम शुरू किया था।
राज्य में पार्टी 2003 से ही सत्ता से बाहर थी। कमलनाथ का एक वीडियो वायरल होने पर भाजपा ने उन पर हमला बोला था। इस वीडियो में वह कांग्रेस की जीत के लिए मौलवियों से राज्य के मुस्लिम बहुल इलाके में 90 प्रतिशत वोट सुनश्चिति करने को कहते हुए नजर आए थे।
बृहस्पतिवार की रात को कमलनाथ को मध्यप्रदेश कांग्रेस विधायक दल की बैठक में औपचारिक रूप से अपना नेता चुना गया था। छिंदवाड़ा के पत्रकार सुनील श्रीवास्तव ने इंदिरा गांधी की चुनावी सभा कवर की थी। उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी छिंदवाड़ा लोकसभा सीट के प्रत्याशी कमलनाथ के लिए चुनाव प्रचार करने आई थीं। इंदिरा ने तब मतदाताओं से चुनावी सभा में कहा था कि कमलनाथ उनके तीसरे बेटे हैं, कृपया उन्हें वोट दीजिए।
पूर्व ग्वालियर राजघराने के वंशज एवं पार्टी के युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को अनदेखा कर राहुल गांधी ने इस साल 26 अप्रैल को अरूण यादव की जगह कमलनाथ को मध्य प्रदेश का कांग्रेस अध्यक्ष बनाया था।
कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुरेश पचौरी जैसे प्रदेश के सभी दिग्गज नेताओं को एक साथ ले आए, जिसके चलते मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी में एकजुटता दिखी और कांग्रेस 114 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। समाज के हर तबके के लिए योजनाओं के कारण चौहान की लोकप्रियता से वाकिफ कमलनाथ ने चुनाव अभियान की शुरूआत में ही भाजपा पर हमला शुरू कर दिया। अभियान के जोर पकड़ने पर पार्टी की ओर मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए राज्य कांग्रेस ने वक्त है बदलाव का नारा दिया।
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कमलनाथ के नेतृत्व में प्रदेश कांग्रेस ने अपने चुनावी अभियान में चौहान के अधूरे रह गए वादों पर फोकस किया। पार्टी ने चौहान को घोषणावी बताया जिसके बाद सरकार द्वारा घोषित योजनाओं को लेकर चर्चा शुरू हो गयी। कमलनाथ का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम महेंद्रनाथ और माता का लीला है। देहरादून स्थित दून स्कूल के छात्र रहे कमलनाथ ने राजनीति में आने से पहले सेंट जेवियर कॉलेज कोलकाता से स्नातक किया। वह वर्ष 1980 में पहली बार मध्यप्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से सांसद बने और नौ बार इस सीट का प्रतिनिधत्वि किया।
कमलनाथ की छवि वैसे तो काफी साफ-सुथरे नेता की है लेकिन हवाला कांड में नाम आने की वजह से वह 1996 में आम चुनाव नहीं लड़ पाए थे। तब पार्टी ने उनकी जगह उनकी पत्नी अलका नाथ को छिंदवाड़ा का टिकट दिया था जो भारी मतों से विजयी हुई थीं।
जब एक साल बाद वह इस कांड में बरी हुए थे तो उनकी पत्नी ने छिंदवाड़ा की सीट से इस्तीफा दे दिया और कमलनाथ ने वापस वहां से चुनाव लड़ा लेकिन वह भाजपा के तत्कालीन दिग्गज सुंदरलाल पटवा से हार गए थे। उनका नाम साल 1984 के सिख विरोधी दंगों में भी उछला था, लेकिन कोई भी अपराध उन पर सिद्ध नहीं हो पाया। वह तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में वर्ष 1991 में पहली बार पर्यावरण एवं वन मंत्री बने थे।
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इसके बाद राव के उसी कार्यकाल में वह वर्ष 1995-1996 में केंद्रीय राज्य मंत्री वस्त्र (स्वतंत्र प्रभार) रहे। बाद में वह डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में वर्ष 2004 से 2009 तक वाणिज्य और उद्योग मंत्री रहे, जबकि मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में वर्ष 2009 से वर्ष 2011 के बीच वह सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री बने। बाद में 2011 से 2014 तक उन्होंने शहरी विकास मंत्री की जिम्मेदारी संभाली। वह वर्ष 2001 से वर्ष 2004 तक अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव भी रहे।
कमलनाथ के परिवार में उनकी पत्नी अलका नाथ एवं दो बेटे नकुल नाथ एवं बाकुल नाथ हैं। राजनीति के अलावा कमलनाथ को बिजनेस टायकून भी कहा जाता है। उनकी 23 कंपनियां हैं, जिन्हें उनके दोनों बेटे चलाते हैं। कमलनाथ इनमें से किसी भी कंपनी के डायरेक्टर नहीं हैं।