किसान क्रांति यात्रा: डीजे की धुन पर झूमते-गाते किसान पहुंच रहे हैं दिल्ली
भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में हजारों किसान हरिद्वार से दिल्ली की ओर कूच कर रहे हैं। इनके खाने-पीने और विश्राम के लिए जगह-जगह किसान नेताओं की ओर से कैंप लगाए गए हैं। इन्हीं में से मेरठ के एक कैंप में गांव कनेक्शन की टीम पहुंची। पढ़ें इस कैंप का आंखों देखा हाल।
मेरठ। मेरठ रेलवे स्टेशन से गांव कनेक्शन की टीम शनिवार को इस कैंप के लिए निकली। रेलवे स्टेशन से पश्चिम की ओर करीब 10 से 12 किमी पर ये कैंप मेरठ बाइपास पर लगा हुआ था। जैसे ही इस कैंप की दूरी आधा किमी बची होगी दूर से आती फिल्मी धुन सुनाई देने लगी। कैंप पर पहुंचने पर पता चला कि ट्रैक्टर पर रखे बड़े-बड़े साउंड बॉक्स में तेज धुन बज रही थी। इसमें हर तरह के फिल्मी गीत बज रहे थे। खास कर वे गीत जिनपर आप झूम सकें। बीच-बीच में अमरीश पुरी की आवाज में कोयला फिल्म का डायलॉग बज रहा था- 'अरे ये क्या बोलेगा, ये तो गूंगा है गूंगा।' इसके साथ ही महेंद्र सिंह टिकैत पर बना गीत भी बज रहा था।
हुक्का लेकर चर्चा करते किसान यूनियन के नेता
आगे बढ़ने पर देखा कैंप के बीचों-बीच एक टैंट लगा था। इस टैंट में किसान यूनियन के नेता बैठे थे। साथ ही कुछ स्थानीय किसान भी होंगे। गोले में बैठे इन लोगों के बीच में बड़ा सा हुक्का लगा हुआ था। बारी-बारी से सब हुक्का पीते और आगे वाले को बढ़ा देते। कई किसान खुद का छोटा हुक्का लेकर बैठे थे। ऐसी मीटिंग में हुक्के की अहमियत पर बागपत से आए एडवोकेट टीनू चौधरी कहते हैं, " हुक्के को शान से जोड़ कर देखा जा सकता है। पश्चिम में किसान काफी संपन्न था ऐसे में उसके पास वक्त बहुत था। शाम के वक्त बैठकों में इसका इस्तेमाल होता था। समाज के लोग इस तरह से आपस में भी बात कर लेते हैं।" टीनू चौधरी किसान यूनियन से जुड़े एक हुक्के की कहानी सुनाते हैं, यह हुक्का पीतल का था और काफी वजनी भी। वो हुक्का जिस किसान के पास था उसकी पत्नी ने पैसों के लालच में उसे बेच दिया, इसके एक हफ्ते में उस व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली। क्योंकि उसे इस हुक्के की जिम्मेदारी मिली थी।
यह भी देखें: हरिद्वार से भारतीय किसान यूनियन ने किया कूच, गांधी जयंती पर दिल्ली में डालेंगे डेरा
किसानों के चंदे से खाने की व्यवस्था
इस कैंप में मेरठ के अलग-अलग गांव की ओर से खाने की व्यवस्था की गई थी। भारतीय किसान यूनियन के पश्चिमी यूपी के अध्यक्ष चंद्रपाल चौधरी ने बताया, "किसान आज भी अन्नदाता है। हम सबको खाना खिला रहे हैं। इस कैंप में कोई भी आकर खा सकता है, क्योंकि किसान का यही स्वभाव है। यह व्यवस्था किसानों के चंदे से की गई है।"
प्रशासन की व्यवस्था को लेकर नाराजगी
यहां माइक से किसानों को निर्देश भी दिया जा रहा था। इसी बीच माइक से सड़क को जाम करने को कहा गया। ये ऐलान इसलिए किया गया क्योंकि कैंप में पानी की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गई थी। हालांकि, हाईवे जाम होने के कुछ ही देर में पानी का टैंकर भी आ गया।
यह भी देखें: किसान मुक्ति यात्रा और एक फोटोग्राफर की डायरी (भाग-1)
डीजे पर नाचते नौजवान
इस कैंप के पास जैसे ही पदयात्रा पहुंची किसान यूनियन से जुड़े नौजवान सड़कों पर डीजे की धुन में नाचते दिखे। डीजे पर चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत पर बना गाना बज रहा था। लड़के पूरे जोश के साथ इस पर थिरक रहे थे।
अपनी व्यवस्था लेकर चल रहे हैं किसान
किसान अपने साथ अपनी पूरी व्यवस्था भी लेकर चल रहा है। जैसे की उसके पास पानी पीने के लिए ग्लास हैं। खाने के लिए बर्तन। इसके साथ ही कपड़े भी रखे हुए हैं। मतलब किसान पूरी तैयारी से यहां आया है।