'मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे वो' आडवाणी ने कहा: टूट गई राम-लक्ष्मण की जोड़ी

अटल बिहारी वाजपेई के निधन को एक युग का अंत बताते हुए आडवाणी ने कहा, मेरा 65 साल का जिगरी दोस्त नहीं रहा।

Update: 2018-08-16 12:56 GMT
अटल जी का जाना एक युग का अंत है, दुुख की इस घड़ी में मेरे पास शब्द नहीं- लालकृष्ण आडवाणी

बीजेपी की राजनीति में एक समय था जब आडवाणी-वाजपेयी की जोड़ी को राम-लक्ष्मण की जोड़ी कहा जाता था। दोनों गहरे दोस्त थे पर राजनीति के साथ-साथ दोनों के व्यवहार में भी काफी अंतर रहा। अटल बिहारी वाजपेयी उदारवादी और लालकृष्ण आडवाणी कट्टर हिंदूवादी विचारधारा के प्रतीक रहे हैं। लेकिन अपनी विचारधारा के अंतर को उन्होंने आपसी संबंधों में कभी नहीं झलकने दिया। कभी मनमुटाव भी हुआ तो आगे बढ़कर खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने मामला संभाल लिया। लंबी बीमारी के बाद अटल बिहारी वाजेपयी (93) का गुरुवार को एम्स में निधन हो गया। ऐसे में इन संस्मरणों के जरिए उनको श्रद्धांजलि।


इन दोनों की जोड़ी के एक और साथी थे, वरिष्ठ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी। एक बार एक इंटरव्यू में पत्रकारों ने अटल बिहारी वाजपेयी से पूछा, "अटल-आडवणी की जोड़ी में जोशी को क्यों नहीं शामिल किया जा रहा है। जोड़ी को तिकड़ी में बदलने की जगह जोड़ी को ही क्यों प्रमोट किया जा रहा है। क्या इस तरह मुरली मनोहर जोशी को इग्नोर नहीं किया जा रहा है।" इसका अटल बिहारी वाजपेयी ने बड़ा दिलचस्प जवाब दिया। उन्होंने कहा, "तीन नाम जोड़ने से नारा ठीक नहीं बनता। नारा लगाने में कठिनाई होती है इसलिए जोशी का नाम नहीं जोड़ा जाता।"

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राजस्थान में हुई थी अटल-आडवाणी की पहली मुलाकात

लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी की पहली मुलाकात उस समय हुई जब आडवाणी आरएसएस के प्रचारक के रूप में राजस्थान में काम कर रहे थे। इस समय अटल जनसंघ में अपनी पहचान बना चुके थे। बताया जाता है कि एक बार वाजपेयी किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने मुंबई जा रहे थे रास्ते में कोटा स्टेशन पर आडवाणी से उनकी पहली मुलाकात हुई। 1957 में जन संघ ने अटल बिहारी वाजपेयी को तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया था। वाजेपयी लखनऊ में चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वह लोकसभा में पहुंचे। इसी दौरान दीनदयाल उपाध्याय ने आडवाणी को दिल्ली बुला लिया। उन्हें संसदीय कार्य देखने की जिम्मेदारी सौंपी जो अब तक अटल बिहारी वाजपेयी देख रहे थे।

आडवाणी जी के लिए खूब खिचड़ी पकाई अटल जी ने

हुआ यह कि आडवाणी जी और वाजपेयी जी को एक साथ एक ही घर में रहना था। वाजपेयी जी मस्त स्वभाव के हाजिर जवाब और आडवाणी जी अंतमुर्खी, वाजपेयी जी मीट भी खा लेते थे पर आडवाणी जी एकदम शाकाहारी थे, वाजपेयी जी खाना बनाने में निपुण थे पर आडवाणी इस मामले में एकदम भोले पर जल्द ही आडवाणी जी को वाजपेयी भा गए। अब अटल जी उन्हें अपने हाथों से खिचड़ी बनाकर खिलाने लगे। बताते हैं कि दोनों को फिल्में देखने का भी शौक था सो साथ-साथ फिल्में भी देखने जाते थे। अटल जी आडवाणी को पुरानी दिल्ली चाट खिलाने भी ले जाया करते थे। न तो उस समय का मीडिया इतना सक्रिय था और न ही दोनों की फोटो बहुत ज्यादा छपा करती थीं इसलिए दोनों को कोई पहचान भी नहीं पाता था।

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अटल जी को पसंद थी कमला आडवाणी के हाथ की खीर और सिंधी कढ़ी

अटल-आडवाणी की इस जोड़ी के बारे में लालकृष्ण आडवाणी की पत्नी कमला आडवाणी के संस्मरणों से और जानकारी मिलती है। अटल बिहारी वाजपेयी आजीवन अविवाहित रहे वहीं लालकृष्ण आडवाणी ने कमला आडवाणी से विवाह किया। कमला आडवाणी शादी से पहले नॉनवेज खा लेती थीं पर आडवाणी से विवाह के बाद पूरी तरह शाकाहारी हो गईं इसलिए अटल जी उनके हाथ के बने नॉनवेज व्यंजन नहीं खा सके। पर कमला अटल जी के लिए सिंधी कढ़ी और खीर जरूर बनाती थीं जो अटल जी को काफी पसंद थे।

यों चुटकी में खत्म हो जाती थी नाराजगी

अटल जी और आडवाणी जी के बीच जब कभी वैचारिक मतभेद होते तो दोनों के बीच बातचीत कम और कभी-कभी बंद तक हो जाती। अंतर्मुखी आडवाणी किसी से कुछ न कहते बस लोगों से मिलना-जुलना सीमित कर देते। कमला आडवाणी समझ जातीं और फोन करके अटल जी को लंच या डिनर पर घर बुला लेतीं और सब सुलट जाता। ऐसा ही तब हुआ जब 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर समझौता करने पाकिस्तान गए थे। आडवाणी जी इससे असहमत थे लिहाजा उन्होंने खुद को अटल जी से दूर कर लिया। कमला जी के बुलावे पर अटल लंच पर आए, उन्हें देखकर आडवाणी पहले तो हमेशा की तरह चौंक गए पर जैसे ही अटल जी ने अपने खास अंदाज में कविताएं और चुटकुले सुनाए आडवाणी जी की नाराजगी काफूर हो गई।  

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