मनरेगा : काम मांगने के बावजूद 97 लाख परिवारों को नहीं मिला रोजगार, 100 दिन पूरे करने वाले अब तक सिर्फ 19 लाख परिवार
कोरोना महामारी की वजह से उपजे बेरोजगारी के संकट के दौर में केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (National Rural Employment Guarantee Act) यानी मनरेगा के लिए एक लाख करोड़ से ज्यादा का बजट जारी किया। इसके बावजूद ग्रामीणों में रोजगार की मांग कहीं ज्यादा बनी हुई है। मनरेगा (MGNREGA) को लेकर नरेगा ट्रैकर की हालिया रिपोर्ट में सामने आया कि करीब 97 लाख परिवारों को काम मांगने के बावजूद रोजगार नहीं मिल सका, पढ़िए रिपोर्ट ...
दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार की गारंटी देने वाली योजना मनरेगा में अब तक का रिकॉर्ड बजट दिए जाने के बावजूद 97 लाख परिवारों को काम नहीं मिल सका। कोरोना महामारी से उपजे बेरोजगारी के संकट के दौर में इन सभी परिवारों ने मनरेगा में रोजगार के लिए काम की मांग की थी।
इतना ही नहीं, इस साल मनरेगा में रोजगार पाने को लेकर जॉब कार्ड के लिए आवेदन करने के बावजूद 45.6 लाख परिवारों के जॉब कार्ड नहीं बन सके, जबकि कुल 9.02 करोड़ जॉब कार्ड सक्रिय रहे। इसके बावजूद देश भर में नवंबर तक सिर्फ 19 लाख परिवार ही मनरेगा में मिलने वाले 100 दिनों का रोजगार पूरा कर सके हैं।
यह आँकड़ें वर्ष 2004 में मनरेगा योजना की सरकारी वेबसाइट की एमआईएस रिपोर्ट को ट्रैक करने के लिए बनाए गए कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और जन संगठनों के सदस्यों का एक समूह पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (पीएईजी) की हालिया रिपोर्ट में सामने आये हैं। यह रिपोर्ट अब तक ग्रामीणों को मनरेगा में रोजगार मिलने को लेकर तस्वीर पेश करती है।
मनरेगा यानी महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत देश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को साल में 100 दिन रोजगार देने की गारंटी दी जाती है। प्रत्येक लाभार्थी ग्रामीण परिवार को एक जॉब कार्ड दिया जाता है, जिसमें घर के सभी व्यस्क सदस्यों के नाम होते हैं जो मनरेगा में काम कर सकते हैं।
झारखंड के पलामू जिले के पोस्ट मझौली के गाँव सहेडीह के रहने वाले संदीप भुइयां मनरेगा में काम करते आये हैं, मगर इस बार मनरेगा में काम करने के लिए उनके परिवार को काफी मुश्किलें उठानी पड़ीं।
संदीप भुइयां बताते हैं, "हमारे गाँव में 20 से 25 मजदूर हैं, मगर दो-तीन महीने बीत चुके हैं, फिर भी मनरेगा में हमें कोई काम नहीं दिया गया है। हम मनरेगा में काम करना चाहते हैं।"
यह हाल सिर्फ संदीप और गाँव में उनके जैसे मजदूरों का ही नहीं है, बल्कि ज्यादातर राज्यों में मनरेगा में काम की भारी मांग होने के बावजूद ग्रामीणों को रोजगार नहीं मिल सका है।
पीएइजी की रिपोर्ट में सामने आया कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में करीब 25 लाख से ज्यादा ग्रामीणों ने मनरेगा में रोजगार के लिए आवेदन किया, मगर उन्हें एक भी दिन का रोजगार नहीं मिल सका। यह आंकड़ा ओडिशा में 6.85 लाख, बिहार में 8.32 लाख और मध्य प्रदेश में 8.92 लाख रहा। नवंबर तक देश भर में 97 लाख से ज्यादा ऐसे ग्रामीण परिवार रहे, जिन्हें मनरेगा में रोजगार की मांग करने के बावजूद काम नहीं मिल सका।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि नवंबर तक देश भर में सिर्फ 19 लाख परिवारों को ही 100 दिन का रोजगार मिल सका है, जबकि पिछले वर्ष से तुलना करें तो 40.61 लाख परिवारों को 100 दिन का रोजगार मिल सका था।
पीएइजी की इस रिपोर्ट से जुड़े और मनरेगा मजदूरों के लिए लंबे समय से काम करते आ रहे देबमाल्या नंदी 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "यह आंकड़ें बताते हैं कि वास्तव में मनरेगा में रोजगार को लेकर देश भर में कितनी भारी मांग रही है। रोजगार की इतनी मांग के बावजूद 100 दिन का रोजगार पूरे करने वाले सिर्फ 19 लाख परिवार रहे, जबकि काम की मांग को देखते हुए यह आंकड़ा अब तक पिछले वर्ष के मुकाबले 40 लाख परिवारों से कहीं ज्यादा होना चाहिए था। ऐसा इसलिए सामने आया क्योंकि मांग के बावजूद राज्य सरकारें मनरेगा की क्षमता को पूरी तरह से पकड़ नहीं कर पाईं।"
केंद्र सरकार की ओर से इस साल अप्रैल में मनरेगा के लिए कुल 1.05 लाख करोड़ का बजट आवंटित किया गया। नरेगा ट्रैकर नाम से आई पीएइजी की इस रिपोर्ट में सामने आया कि नवंबर तक 74,563 करोड़ यानी 71 फीसदी राशि अब तक खर्च की जा चुकी है, जबकि मजदूरी और सामग्री का लंबित भुगतान 9,590 करोड़ रुपए (9.1 फीसदी) बकाया है। ऐसे में कई राज्यों को आवंटित की राशि खर्च हो चुकी है और अब इन राज्यों के भुगतान लंबित हैं। ऐसे में राज्यों के पास मनरेगा के लिए बजट की कमी है।
'गाँव कनेक्शन' से बातचीत में नरेगा ट्रैकर से जुड़े देबमाल्या नंदी बताते हैं, "अभी कई राज्यों के पास मनरेगा के लिए फण्ड की कमी है, यह भी एक बड़ा कारण रहा कि भारी मांग के बावजूद लोगों को काम नहीं मिल सका है। शुरुआत में केंद्र सरकार ने भले ही मनरेगा के लिए बड़ा बजट दिया, मगर धीरे-धीरे इस पर से ध्यान हट गया। जबकि कुछ राज्यों में शुरुआत में बड़ी संख्या में ऐसे लोग रहे जिन्होंने मनरेगा में पहली बार काम किया।"
"ऐसे संकट के समय में सरकार को मनरेगा पर और जोर देना चाहिए था, मगर ऐसा नहीं हुआ। चूंकि मनरेगा एक कानून है इसलिए इसे पहले जैसे हाल पर ही छोड़ दिया गया। अभी भी 100 दिन शेष हैं और फरवरी-मार्च में काम की और भी ज्यादा मांग मनरेगा में उठ सकती है। जरूरी है कि सरकार ग्रामीण स्तर पर रोजगार की भारी मांग को देखते हुए मनरेगा में बजट और बढ़ाए।"
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