पलायन पार्ट 2 - प्रवासी मजदूरों ने कहा पिछले साल लॉकडाउन में बहुत मुश्किलें झेली थी, भूखे मरने की नौबत आ गई थी, इसलिए चले आए

पिछले साल के लॉकडाउन के बाद देशभर में प्रवासियों के पलायन की यादें धुंधली नहीं हुई थी कि दिल्ली में एक बार फिर हुए लॉकडाउन ने प्रवासियों को दिल्ली छोड़ने पर मजबूर कर दिया है। हजारों प्रवासी अपने-अपने परिवार के साथ भूखे प्यासे बस और दूसरे वाहनों से घरों के लिए निकल पड़े हैं, पढ़िए लखनऊ से ग्राउंड रिपोर्ट

Update: 2021-04-20 14:34 GMT

सर पर रखे काले रंग के झोले को एक हाथ से पकड़े और दूसरे हाथ में बड़ा सा झोला उठाए, अयोध्या (फैजाबाद) जिले के मोहन लाल एक बस से दूसरी बस का चक्कर लगा रहे थे। उनके पीछे उनकी पत्नी भी थीं, जो एक बैग खुद भी लिए हुए थीं और दूसरे हाथ से अपने 5-6 साल के बच्चे को भी पकड़ रखा था, जो लगभग घसीटते हुए उनके पीछे चल रहा था।

मोहन लाल परिवार के साथ दिल्ली के आनंद विहार से 19 अप्रैल को चले थे और सुबह करीब 11 बजे लखनऊ के कैसरबाग बस अड्डे पहुंचे। नाम और कहां से आए हैं, पूछने पर लगभग झल्लाते हुए उन्होंने कहा, "मोहन लाल नाम है, लिख लेऊ, दिल्ली से आए हैं फैजाबाद जाना है, लेकिन बस नाई (नहीं) है, हुआं (वहां) से कौने तना आए पाएंन तो हिंया (कैसरबाग) गोंडा की बस नाई मिल रही।'

लखनऊ के कैसरबाग बस अड्डे पर मंगलवार (20 अप्रैल) को दिनभर दिल्ली से आए प्रवासी मजदूरों और कामगारों की भीड़ जमा रही। फोटो- अरविंद शुक्ला

मोहनलाल की तरह 20 अप्रैल को हजारों कामगार, प्रवासी और मजदूर कैसरबाग बस अड्डे पर अपने-अपने घर जाने वाली बसों का इंतजार कर रहे थे तो कुछ बसों में बैठने के लिए जुगत लगा रहे थे। दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार द्वारा सोमवार 19 अप्रैल को एक हफ्ते का लॉकडाउन लगाने की घोषणा के बाद प्रवासी मजदूरों का हुजूम दोपहर से ही आनंद विहार बस अड्डे पर उमड़ पड़ा था। यूपी और बिहार समेत कई राज्यों में हजारों प्रवासी सोमवार देर रात तक कुछ भी करके अपने घर पहुंचने के लिए इधर-उधर दौड़ते नजर आए थे।

"पिछले साल भी पहले एक हफ्ते का लॉकडाउन लगा था, लेकिन करीब करीब तीन महीने चला था तो वहां छुट्टा काम (मजदूरी आदि) करने वाले क्या करेंगे, क्या खाएंगे। कोई कुछ नहीं देता। पिछले साल की तरह भुखमरी आ जाती। वहां का दीवारें खा लेते, इसलिए भाग आए।" दिल्ली में ठेला चलाने वाले मनोज कुमार (42 वर्ष करीब) ने दिल्ली छोड़ने की ये वजह बताई। वो उत्तर प्रदेश में गोंडा जिले के रहने वाले हैं। उनके साथ गांव के ही 4 लोग और थे।

आनंद विहार से लखनऊ कैसे पहुंचे? इस सवाल के जवाब में मोहन कहते हैं, कैसे आए हैं ये ना पूछो, बहुत बुरी हालत में आए हैं। सरकारी बस में जुगाड़ नहीं था, 1000-1000 रुपये का टिकट लेकर प्राइवेट बस की छत पर बैठकर आए हैं।'

उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की साधारण बसों में आनंद विहार से लखनऊ का किराया 400 रुपये के करीब है, लेकिन आनंद विहार बस टर्मिनल पर बसों की संख्या प्रवासियों के अनुपात में काफी कम थी, जिसके चलते प्रवासियों की बड़ी संख्या प्राइवेट बसों में आने को मजबूर हुई, जिन्होंने मनमाना किराया वसूला।

दिल्ली से लौटे अमेठी के कुलदीप यादव, लखनऊ में बस का इंतजार करते हुए। वो बरेली तक प्राइवेट बस में 1200 रुपए का टिकट लेकर छत पर बैठकर आए थे। फोटो- अरविंद शुक्ला

यूपी में ही अमेठी जिले के जगदीशपुर के रहने वाले कुलदीप यादव (35 वर्ष) अपने परिवार के साथ तीन साल से दिल्ली में रह रहे हैं। लॉकडाउन की घोषणा के बाद उन्होंने भी दिल्ली छोड़ दिया। सुबह करीब 10 बजे वो लखनऊ में रेजीडेंसी के सामने अपने परिवार के साथ पेड़ की छांव में बैठे नजर आए।

"पत्नी, भाई और ये (2 साल की बच्ची की ओर इशारा करते हुए), हम लोग बस की छत पर बैठकर कौशांबी (आनंद विहार से लगा गाजियाबाद का इलाका) से आए हैं। बस वाले ने बरेली तक का एक आदमी का 1200 रुपये का टिकट दिया। वहां से फिर 400-400 रुपये देकर लखनऊ पहुंचे हैं। अभी अमेठी तक जाना है। देखो कैसे पहुंचेंगे।" कुलदीप यादव ने अपनी छोटी सी बच्ची को संभालते हुए कहा।

कुलदीप आगे बताते हैं, "पिछले साल लॉकडाउन लगने पर हम लोग बहुत परेशान हो गए थे, बरेली तक पैदल आए थे, इसलिए इस बार पहले दिन ही चले आए।' दिल्ली-एनसीआर में कोरोना महामाही की भयावह हालातों के बावजूद लखनऊ पहुंच रहे प्रवासी लोगों की किसी तरह का कैसरबाग बस अड्डे पर कोई जांच नहीं की जा रही थी, यहां बस अड्डे के अंदर कोविड डेस्क तो बनी थी लेकिन वो तीन दिन से सूनी पड़ी है। कोविड डेस्क से संबंधित जानकारी वीडियो में देखिए

Full View

कोरोना महामारी के चलते पूरी दुनिया में जानमाल का नुकसान हुआ। कई देशों ने महीनों का लॉकडाउन झेला, लेकिन भारत में मजदूरों के संदर्भ में स्थिति बहुत प्रतिकूल रहीं। पिछले साल  मार्च के आखिरी हफ्ते में लगे लॉकडाउन के दौरान दिल्ली, मुंबई, इंदौर, गुरुग्राम, फरीदाबाद, लुधियाना, अमृतसर, पुणे और बेंगलुरु जैसे शहरों से लाखों मजदूर ट्रेन, बस, पैदल, ट्रक, साइकिल और किराए के वाहनों से अपने घरों को पहुंचे थे, जिसे आजादी के बाद का सबसे बड़ा मानव पलायन कहा गया था।

सितंबर 2020 में केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया कि साल 2020 में लॉकडाउन के चलते पूरे देश से 10466152 प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटे थे। इनमें से सबसे ज्यादा 32,49,638 प्रवासी उत्तर प्रदेश में लौटे थे। जबकि दूसरे नंबर पर बिहार था, जहां 15,00,612 प्रवासी शहरों से घर को लौटे और तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल था. जहां 13,84,693 प्रवासी मजदूर और कामगार शहरों से अपने गांवों को लौटे थे।

गांव कनेक्शन ने पिछले वर्ष लॉकडाउन के बाद ग्रामीण भारत में इसका प्रभाव जानने के लिए देश के 25 राज्यों में 25000 से ज्यादा लोगों के बीच सर्वे कराया था, जिसमें पता चला था कि लगभग हर चौथा (कुल 23 फीसदी लोग) प्रवासी लॉकडाउन के बाद पैदल अपने घरों को लौटा था, जबकि महज 12 फीसदी को श्रमिक ट्रेन की सुविधा मिली थी। संबंधित सर्वे यहां पढ़ें

पिछले साल की कड़वी यादों के बीच एक बार प्रवासियों का पलायन शुरु हो गया हे। यूपी के साथ ही बिहार और पश्चिम बंगाल में प्रवासियों के पहुंचने का सिलसिला जारी है।

पटना में गांव कनेक्शन ने दिल्ली से पहुंचे कई प्रवासियों से बात की। भागलपुर के रहने वाले नंदलाल पंडित ने भी दिल्ली में लॉकडाउन लगने के बाद वापसी का फैसला किया। उन्होंने आनंद विहार से सोमवार 19 अप्रैल को दोपहर 11 बजे बस पकड़ी और मंगलवार 20 अप्रैल को दोपहर पटना पहुंचे। 1100 किमी के सफर में उन्हें सीट तक नहीं मिली, 24 घंटे वो बस में खड़े रहे।

इसी तरह बिहार के मुजफ्फरपुर का रहने वाला एक परिवार अपने ऑटो से ही घर के लिए निकल पड़ा। गांव कनेक्शन से इस परिवार की मुलाकात सीतापुर जिले में हुई, जब वो एक पेड़ के नीचे दोपहर में रुके हुए थे।

यूपी के सीतापुर में जिले में हाईवे के किनारे आराम करता बिहार में मुजफ्फरपुर जिले का एक परिवार, जो दिल्ली में लाकडाउन लगने के बाद ऑटो से घर चल पड़ा है। फोटो- मोहित शुक्ला

लॉकडाउन का एक साल पूरा होने पर गांव कनेक्शन ने यूपी समेत कई जिलों से खबरें की थी, जिसमें कई मजदूरों ने बताया था कि ज्यादातर लोग लॉकडाउन खुलने के बाद और स्थिति सामान्य होने पर वापस अपने शहरों को लौट गए थे, लेकिन जो लोग नहीं लौटे, उनमें से कईयों के सामने आजीविका का संकट खड़ा नजर आया। दिल्ली में ड्राइवर जैसे स्किल्ड (प्रशिक्षित) श्रेणी का काम करने वाले प्रवासी अपने गांवों में खेतिहर मजदूर बनने को मजबूर हैं। जो महीने का 10000-15000 कमाते थे वो 200 रुपए की दिहाड़ी कर रहे। संबंधित खबर

शहर में लॉकडाउन है और गांवों में भी रोजगार के साधन नहीं हैं। ऐसे में आगे क्या, का जवाब लखनऊ में कैसरबाग बस अड्डे पर बैठे एक मजदूर ने दिया,

"गांव में थोड़ी बहुत खेती है, सूखी रोटी और नमक खाएंगे, लेकिन कम से कम घर में तो होंगे।" 

इऩपुट- मोहित शुक्ला, सीतापुर, उमेश कुमार राय, पटना- ये खबर अंग्रेजी में यहां पढ़ें-

संबंधित खबर- लॉकडाउन का एक साल: महीने के 12,000-15,000 कमाने वाले प्रवासी रोजाना की 200 रुपए की दिहाड़ी करने को मजबूर

कोरोना के बढ़ते मामलों और लॉकडाउन की दशहत के बीच सबको जल्द अपने घर पहुंचना है। लखनऊ में कैसरबाग बस अड्डे पर अपने जिले की बस का इंतजार करते प्रवासी। फोटो- अरविंद शुक्ला


Similar News