World Migratory Bird Day: पक्षियों पर संकट मतलब इंसानी अस्तित्व पर खतरा

प्रत्येक साल हजारों की संख्या में प्रवासी पक्षी राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों में डेरा डालते हैं, इन प्रवासी पक्षियों के लिए पूरे देश में सबसे सुरक्षित प्रवास राजस्थान में ही माना जाता है, कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो शिकार के मामले न के बराबर हैं

Update: 2020-05-09 05:09 GMT

जोधपुर। पक्षी सम्पूर्ण विश्व को प्रेम और ‛वसुधैव कुटुम्बकम' का सन्देश देने का काम करते हैं। सुदूर देशों से सफर करते हुए यह पक्षी राजस्थान की धरा को कलरव से भर देते हैं। हजारों की संख्या में यह राज्य के अलग-अलग हिस्सों में डेरा डालते हैं। इन मेहमानों का स्वागत मानों हमारी भारतीय संस्कृति में रचा-बसा है। सभी धर्म-जाति के लोग इन्हें प्रेम से निहारते हैं, इनके होने को अच्छा शगुन मानते हैं। इन प्रवासी पक्षियों के लिए पूरे देश में सबसे सुरक्षित प्रवास राजस्थान में ही माना जाता है। कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो शिकार के मामले न के बराबर हैं।

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यह कहना है जोधपुर के जाने माने पर्यावरणविद् शरद पुरोहित का जो बचपन से ही प्रकृति के प्रति समर्पित रहे हैं, फलस्वरूप आज जंगल, तालाब, पशु-पक्षियों, सांपों, गोरैया इत्यादि के संरक्षण और विशेषज्ञ के रूप में मिसाल बनकर उभरे हैं। वे बताते हैं,"इनमें सबसे ज्यादा संख्या में कुरजां (डेमोसिएल क्रेन) हमारे देश में प्रवास पर आती हैं, जिसका आना सभी लोग पसंद करते हैं और पारम्परिक गीतों में इनका बड़ा महत्व है। यह खेतों में विश्राम और तालाबों के किनारे अपनी सुबह-शाम बिताना पसंद करती हैं।"

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बतख (बार हेडेड गूज) फसलों की कटाई के बाद बचे-खुचे अन्न के दानों और शीत प्रवास हेतु आती हैं। बहुत कठोर परिस्थिति में उड़ान भर हमारे प्रदेश पहुंचती है। यह बहुत ज्यादा ऊंचाई पर उड़ान भरना पसंद करती हैं। इसी तरह रूडी शेल डक, गडवाल, नार्दन पिन टेल, कॉमन पोचार्ड, फरिग्युनस, पेलिकन, हेरॉन, टफटेड डक, कॉमन टील, कॉमन क्रेन, युरोअसियन विजन, रफ, रिव जैसे जलीय पक्षी भी आते हैं तो लांग लेग्ड बजर्ड, पेलीड हेरिअर, लेगेर फाल्कन, स्पॉटेड ईगल, ट्वैनी ईगल, स्टेपी ईगल, बोंनिल ईगल जैसे शिकारी पक्षी भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। इतना ही नहीं, मृत भक्षी पक्षी इंडियन वल्चर, हिमालयन वल्चर, इजिप्शियन वल्चर, लांग बिल्ल्ड वल्चर, दुर्लभ सिनेरिअस वल्चर भी मारवाड़ की मरूभूमि पर आश्रय तलाशने आते हैं।

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साथ ही छोटे से वेग्टल जैसे छोटे पक्षी भी हिमालय से आते हैं। मध्य एशिया, चाइना, यूरोप, आइलैंड, काला सागर, साइबेरिया विश्व के कई कोनों से भोजन, मौसम और प्रजनन हेतु ये हमारे देश तक सफर तय करके आते हैं। सबसे ऊंची उड़ान भरने वाला सारस क्रेन पक्षी और उड़ने वाला सबसे भारी गोडावण पक्षी भी हमारी धरोहर हैं। कुल मिलाकर बहुत ही समृद्ध पक्षियों का संसार राजस्थान में सजता है।


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माना कई पक्षी अपने अस्तित्व की अंतिम घड़ी में हैं, जैसे राज्य पक्षी गोडावण! पूरे संसार में ये हमारे राजस्थान में सबसे ज्यादा नजर आते हैं, किन्तु अब खतरे में पड़े हैं- मात्र 120-30 की अंतिम संख्या अपने वंश के साथ हमारी दया या शोध पर आश्रित हैं। इसके जीने की अपनी शर्ते हैं, पर्यावरण नष्ट होने के करीब (बिजली या पक्षी के बीच का संघर्ष) प्रवासकाल खतरे में, प्रजनन के बाद अंडे असुरक्षित, कभी कभार शिकार भी! कुल मिलाकर अब एक हाई अलर्ट और प्रोजेक्ट टाइगर के जैसी देशव्यापी मुहिम की दरकार इन गोडावण को भी है।


इनके इलाकों को संरक्षित करना ही होगा, चाहे कैसी भी चुनौती क्यों न हो। संकटग्रस्त गिद्धों पर भी खतरा मंडरा रहा है, इसलिए उनके संरक्षण को भी ज़मीनी मुहिम की दरकार है। इन सब के साथ बहुत ही आसानी से हमारे साथ की रहवासी चिड़िया (हाउस स्पैरो) अब बहुत मुश्किल ही शहर में नजर आती है।

हम संभल नहीं रहे हैं, इसे हमारे अस्तित्व के लिए खतरे की घंटी ही समझिये। पक्का कुछ ऐसा घटित हो रहा है, हमारे आसपास जो हमारे रहने या न रहने का प्रश्न है। आज नहीं कल जागरण अवश्य होगा, ख़ैर कुछ लोग लगे हैं इस विषय पर, उन्हें घर देने पुनर्वास करने में। ख़ैर अत्यंत वृहद् विषय, जिस पर अलग-अलग चर्चा की आवश्यकता, चिन्तन की आवश्यकता है।

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फिलहाल राज्य पक्षियों के प्रवास का बेहतर आश्रय और निवासी इन्हें इंसानी दर्जा ही देते हैं। रेगिस्तान का प्रवेश द्वार जोधपुर बहुत ही अपूर्व सौदर्य से रंग-बिरंगे पक्षियों के कलरव और प्रवास से सुसज्ज्ति 20-30 हजार कुरजां, हजारों बतखें एवं जलीय, शिकारी, मृत भक्षियों से सजा हुआ है।

पक्षी प्रवास पर कई वर्षों से नजर रखने वाले और इनकी गतिविधियों की समझ रखने वाले पुरोहित बताते हैं,"कि तालाबों के रख रखाव और उनके स्वच्छ होने के लिए या तो उन्हें अनाथ कर दें या एक छोटा सा गांव कोरना (बाड़मेर) की तरह हर व्यक्ति जुड़ाव रख उनके प्रति प्रेम रख स्वच्छ रखे, ताकि प्रवासी पक्षियों का स्वागत किया जा सके।" 

(लेखक कृषि-पर्यावरण पत्रकार हैं)

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