आजादी के 70 साल बाद भी 10 करोड़ से ज्यादा लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर

Update: 2018-03-15 18:48 GMT
अब नये तत्व मसलन मैंगनीज, क्रोमियम और यहां तक कि यूरेनियम भी पानी में आने लगे हैं

नई दिल्ली। आजादी के 70 साल बाद भी भारत की 10 करोड़ से अधिक आबादी को शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं है। आर्सेनिक, फ्लोराइड, यूरेनियम सहित कई रासायनिक प्रदूषक पीने के पानी को जहरीला बना रहे हैं, यह कहना है कंस्टीट्यूशन क्लब में जुटे देश भर के सौ के करीब जल-विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का। ‘स्वच्छ पानी जनाधिकार कॉन्फ्रेंस’ का आयोजन कंस्टीट्यूशन क्लब में किया गया जिसमें पानी के मुद्दे पर काम करने वाले देशभर के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया व अपने विचार रखे।

आगे विज्ञप्ति में बताया गया है कि दशकों तक पानी में जहरीले तत्वों को लेकर शोध करने वाले अपोलो हॉस्पिटल (हैदराबाद) के न्यूरोसर्जन डॉ राजा रेड्डी का कहना है कि पानी में फ्लोराइड और आर्सेनिक की मौजूदगी के बारे में तो लोगों को पता है, लेकिन अब नये तत्व मसलन मैंगनीज, क्रोमियम और यहां तक कि यूरेनियम भी पानी में आने लगे हैं। यह बड़ा खतरा है और हमें इसको लेकर चिंतित होने की जरूरत है। हमें इसके लिए बहुत जल्द कुछ करने की आवश्यकता है क्योंकि समय रहते साफ पानी की व्यवस्था नहीं हुई तो करोड़ों की आबादी कैंसर जैसी बीमारियों की जद में होगी।

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पानी की गुणवत्ता व इससे लोगों को होने वाली समस्याओं को लेकर काम करने वाली संस्था इनरेम फाउंडेशन के शोध में पता चला है कि गंदा और अधिक फ्लोराइडयुक्त पानी पीने से सिर्फ बड़े ही नहीं दो से तीन साल तक के बच्चे भी विकलांग हो रहे हैं। यही नहीं, फ्लोराइड जैसा जहरीला तत्व बच्चों को बौना व कुपोषित भी बना रहा है, जो केंद्र सरकार की ओर से हालिया शुरू किये गये नेशनल न्यूट्रिशन मिशन (एनएनएम) के लिए बड़ी चुनौती है।

केंद्र सरकार ने आर्सेनिक व फ्लोराइड की समस्या को लेकर देश की 28000 बस्तियों और गांवों में ‘नेशनल वाटर क्वालिटी सब-मिशन’ शुरू किया है। लेकिन, इस मिशन के तहत कई और समस्याओं के समाधान की जरूरत है। इस योजना के लिए जो संसाधन आवंटित किये गये हैं, वे राज्यों की जरूरतों के मुकाबले कम हैं। ऐसे में तेलंगाना समेत कई राज्य अपने संसाधनों से बुनियादी ढांचा तैयार कर रहे हैं, ताकि नागरिकों को साफ पानी उपलब्ध कराया जा सके।

साफ-पानी उपलब्धता मामले में जल वैज्ञानिकों की सांसदों को भी जागरूक करने की तैयारी है। देशभर के चुने हुए सांसदों को ‘नेशनल वाटर क्वालिटी सब-मिशन’ के बारे में जानकारी दी जा रही है। उन्हें बताया जा रहा है कि यह कार्यक्रम क्या है, इसके प्रावधान क्या हैं और सांसद अपने क्षेत्र में इसे लागू करने के लिए सक्रिय भूमिका कैसे निभा सकते हैं।

दो दिवसीय ‘स्वच्छ पानी जनाधिकार कॉन्फ्रेंस’ में गंदे और प्रदूषित पानी से प्रभावित बस्तियों और गांवों को लेकर बेहतर व सही तथ्यों की जरूरत पर भी जोर दिया गया। वैसे, सरकार ने पेयजल को लेकर आंकड़ा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया है, लेकिन ये आंकड़े जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाते हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के पूरे फतेहपुर जिले में भारी मात्रा में फ्लोराइड है, लेकिन केंद्र सरकार के डाटा-सिस्टम में फतेहपुर फ्लोराइड प्रभावित है ही नहीं।

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कार्यक्रम में पहुंचे असम के सेवानिवृत्त चीफ एग्जिक्यूटिव इंजीनियर (पीएचई) ए. बी. पॉल ने कहा कि स्कीम का संचालन व उसकी देखभाल हर जगह एक गंभीर समस्या है। 80-90 फीसदी पुरानी स्कीमें बंद हो चुकी हैं और स्कीम को जारी रखने के लिए बनी वाटर यूजर कमेटियां बेकाम हो चुकी हैं। उन्होंने कहा कि जल आपूर्ति व्यवस्था की रीअल-टाइम मॉनीटरिंग जब तक नहीं की जायेगी, तब तक स्थिति और बिगड़ती रहेगी तथा 28000 बस्तियों और गांवों की जो संख्या है, वो 2-3 गुना अधिक हो जायेगी।

कॉन्फ्रेंस में सभी सेक्टरों को मिलकर काम करने की जरूरत पर बल दिया गया ताकि पेयजल समस्या की चुनौती से निबटा जा सके। यही नहीं, कार्यक्रम में वक्ताओं ने चेतावनी भी दी कि अगर हम अभी काम नहीं करेंगे, तो आने वाली पूरी पीढ़ी संकटग्रस्त हो जायेगी। बंगलुरु की सामाजिक संस्था अर्घ्यम ने एक वाटर प्लेटफॉर्म लाने में अग्रणी भूमिका निभायी है जो मौजूदा हालात में सामंजस्य लाने में मददगार साबित होगी।

फ्लोराइड के मुद्दे पर एक नेटवर्क विकसित करने से जो अनुभव मिले हैं उनके आधार पर फ्लोराइड नॉलेज एंड एक्शन नेटवर्क (एफकेएएन) जल्द ही पेजयल की गुणवत्ता के लिए ऐक्शन प्रोग्राम तय करेगा।

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