बैल-बकरियों को गिरवी रख कर कराया इलाज, जब फायदा होना शुरू हुआ तो खत्म हो गए पैसे

यह बीमारी ऐसा जेनेटिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर रोग है, जो दिमाग, रीढ़ की हड्डी, नसों और त्वचा को प्रभावित करता है और तंत्रिका ऊतक पर ट्यूमर का कारण बनता है।

Update: 2020-06-22 15:50 GMT
छत्तीसगढ़ के बस्तर में गेहुपदर गाँव के चैतु नाग के बेटे परदेशी को है न्यूरोफाइब्रोमेटोसिस नामक बीमारी। फोटो : गाँव कनेक्शन

दुनिया में कुछ ऐसी बीमारियाँ हैं जो बड़ी ही अजीब हैं और कभी-कभी अनुवांशिक भी होती हैं।

अठ्ठारह साल का परदेशी करीब छह सालों से ऐसी ही एक बीमारी न्यूरोफाइब्रोमेटोसिस से पीड़ित है। यह एक ऐसा जेनेटिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर रोग है, जो दिमाग, रीढ़ की हड्डी, नसों और त्वचा को प्रभावित करता है और तंत्रिका ऊतक पर ट्यूमर का कारण बनता है।

परदेशी के पिता चैतू अपने बेटे के इलाज के लिए वर्ष 2014 से ही दर-दर भटक रहे हैं। अपनी छह बकरियां बेच दीं, बैल को गिरवी रख दिया, लोगों से कर्ज लेकर इलाज कराया मगर जब उपचार से फायदा मिलना शुरू हुआ तो पैसे खत्म हो गए।

मूल रूप से छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के गेहुपदर गाँव के चैतु नाग धुर्वा जनजाति के हैं। अपने बेटे को सही इलाज मिल सके, इसके लिए चैतु हर कोशिश में लगे हैं। बेटे के इलाज में खेती-बाड़ी और मजदूरी भी छूट चुकी है। अब चैतु बेटे के इलाज के लिए सरकार से दर्खावस्त कर रहे हैं। 

न्यूरोफाइब्रोमेटोसिस नामक बीमारी से पीड़ित है परदेशी। 

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परदेशी के इलाज के लिए मदद को आगे आये सामाजिक कार्यकर्ता शकील रिज़वी बताते हैं, "परदेशी के इलाज के लिए चैतु ने अपने बैल को गिरवी रखा, साथ ही करीब 20,000 रुपए कर्ज भी लिया, परदेशी गाँव में जिस पाठशाला में पढ़ता था वहां के शिक्षकों ने भी 8,000 रुपए का चंदा एकत्र कर परदेशी के इलाज के लिए दिया। मगर अब तक परदेशी पूरी तरह से सही नहीं हो सका है।"

परदेशी जिस न्यूरोफाइब्रोमेटोसिस नामक बीमारी से पीड़ित है, उसमें जेनेटिक बदलाव के कारण नर्व टिश्यू के विकास पर असर पड़ता है। इससे तंत्रिका, रीढ़ की हड्डी, यहां तक कि मस्तिष्क के अंदर भी तंत्रिका तंत्र के भीतर किसी भी स्थान पर ट्यूमर का कारण बन सकता है।

इस बीमारी से पीड़ित परदेशी के चेहरे के बाएं भाग में त्वचा उभरकर बड़े आकार में लटक गयी है। इससे परदेशी की एक आँख पूरी तरह बंद हो चुकी है। वहीँ मस्तिष्क के दाहिने हिस्से में भी इस बीमारी के लक्षण दिखे हैं। 

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शकील बताते हैं, "चैतु अपने बेटे के इलाज के लिए रायपुर के एम्स अस्पताल भी गया, वहां छत्तीसगढ़ सरकार की स्वास्थ्य योजना से मिले स्मार्ट कार्ड के जरिये इलाज भी करना शुरू कराया, तीन महीने तक इलाज भी चला मगर जब उपचार से लाभ मिलना शुरू हुआ तो पैसे खत्म हो गए, ऐसे में वे वापस लौट आये।"

"परदेशी के इलाज को लेकर हमने प्रशासन स्तर पर बस्तर के कलेक्टर रजत बंसल से भी संपर्क किया, वहां से आशा की एक किरण जगी है। उन्होंने परदेशी के इलाज के लिए व्यवस्था करने का आश्वासन दिया है, मगर परदेशी के परिवार की हालत काफी दयनीय है, अभी भी परदेशी के ऊपर 20,000 रुपए का भारी कर्ज है, हमें उम्मीद है कि अन्य लोग भी परदेशी के इस कर्ज के भार को उतारने में मदद करेंगे," शकील कहते हैं। 

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