होली का त्योहार मनाने का राज इन तीन कहानियों में है छिपा

Update: 2018-03-01 12:39 GMT
रंगों की खूबसूरत छटा : होली मनाते मथुरा की जनता 

नई दिल्ली। होली का त्योहार रंगों और पौराणिक कथाओं से जुड़ा है। भारत में आमतौर पर लोग 'रंगों का त्योहार' भी कहते हैं। यह हिंदू पंचांग के मुताबिक फाल्गुन माह में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। देश के दूसरे त्योहारों की तरह होली को भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।

यह रंगों का त्योहार कब से शुरू हुआ इसका जिक्र भारत की विरासत यानी कि हमारे कई ग्रंथों में मिलता है। शुरू में इस पर्व को होलाका के नाम से भी जाना जाता था। इस दिन आर्य नवात्रैष्टि यज्ञ किया करते थे। मुगल शासक शाहजहां के काल में होली को ईद-ए-गुलाबी के नाम से संबोधित किया जाता था।

जोधपुर में एक दूसरे को गुलाल लगाने के बाद फोटो खींचते हुए विदेशी पर्यटक

होली की पहली कहानी :-

होली को लेकर जिस पौराणिक कथा की सबसे ज्यादा मान्यता है वह है भगवान शिव और पार्वती की। पौराणिक कथा में हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो लेकिन शिव अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता के लिए आते हैं और प्रेम बाण चलाते हैं जिससे भगवान शिव की तपस्या भंग हो जाती है।

शिवजी को बड़ा क्रोध आता है और वह अपनी तीसरी आंख खोल देते हैं। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो जाता है। इन सबके बाद शिवजी पार्वती को देखते हैं। पार्वती की आराधना सफल हो जाती है और शिवजी उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं।

होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम के विजय के उत्सव में मनाया जाता है।

मथुरा के बरसाने की मशहूर लठ्ठमार होली।

होली की दूसरी कहानी :-

पौराणिक कथा हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की है। प्राचीन काल में अत्याचारी हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान पा लिया था। उसने ब्रह्मा से वरदान में मांगा था कि उसे संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य रात, दिन, पृथ्वी, आकाश, घर, या बाहर मार न सके।

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वरदान पाते ही वह निरंकुश हो गया। उस दौरान परमात्मा में अटूट विश्वास रखने वाला प्रहलाद जैसा भक्त पैदा हुआ। प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उसे भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि प्राप्त थी। हिरण्यकश्यप ने सभी को आदेश दिया था कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे लेकिन प्रहलाद नहीं माना। प्रहलाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने का प्रण लिया। प्रहलाद को मारने के लिए उसने अनेक उपाय किए लेकिन वह हमेशा बचता रहा।

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हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप ने उसे अपनी बहन होलिका की मदद से आग में जलाकर मारने की योजना बनाई। और होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में जा बैठी। हुआ यूं कि होलिका ही आग में जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया। तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा ।

जोधपुर में फाग महोत्सव में फूलों से होली खेलतेे राधा कृष्ण। 

होली की तीसरी कहानी :-

पौराणिक कथा है भगवान श्रीकृष्ण की जिसमें राक्षसी पूतना एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर बालक कृष्ण के पास आती है और उन्हें अपना जहरीला दूध पिला कर मारने की कोशिश की। दूध के साथ साथ बालक कृष्ण ने उसके प्राण भी ले लिए। कहा जाता है कि मृत्यु के पश्चात पूतना का शरीर लुप्त हो गया इसलिए ग्वालों ने उसका पुतला बना कर जला डाला। जिसके बाद से मथुरा होली का प्रमुख केन्द्र रहा है।

होली का त्योहार राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी से भी जुड़ा हुआ है। वसंत के इस मोहक मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है। होली के दिन वृन्दावन राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबा हुआ होता है।

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वृंदावन में गोपीनाथ मंदिर बन रहा हैै बदलाव का प्रतीक.... मंदिर में फूलों संग होली खेलती विधवाएं

इसके अलावा होली को प्राचीन हिंदू त्योहारों में से एक माना जाता है। ऐसे प्रमाण मिले हैं कि ईसा मसीह के जन्म से कई सदियों पहले से होली का त्योहार मनाया जा रहा है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमीमांसा सूत्र और कथकग्रहय सूत्र में भी है।

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प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां मिली हैं। विजयनगर की राजधानी हंपी में 16वीं सदी का एक मंदिर है। इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे को रंग लगा रहे हैं।

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