“सिर्फ किसान ही नहीं उनकी पत्नियां व बच्चे भी खुदकुशी करने की कोशिश कर रहे हैं”

Update: 2017-11-20 16:44 GMT
धरना स्थ्ल पर किसा। (सभी फोटो- अभिषेक वर्मा)

नई दिल्ली। “हमारी पंचायत की करीब 150 महिलाएं विधवा है। पूरे महाराष्ट्र में ऐसी महिलाओं की संख्या करीब 50 हजार है, जबकि देश में साढ़े चार लाख। पूरी दुनिया के किसी युद्ध में इतने लोग एक साथ नहीं मारे गए होंगे, जितने किसान भारत में जान दे चुके होंगे। इन किसानों के बच्चे सड़कों पर रोने को मजूबर हैं, ऐसे नहीं चाहती आगे भी ऐसा हो।” इतना बताते-बताते महाराष्ट्र की पूजा मोरे थोड़ा भावुक हो जाती हैं।

पूजा मोरे महाराष्ट्र में बीड़ जिले में मोरे गांव की रहने वाली हैं और प्रदेश की सबसे कम उम्र की पंचायत सदस्य भी। सोमवार को किसान मुक्ति संसद में वक्ता के तौर पर उन्होंने सबसे पहले अपनी बात रखी। 24 साल की पूजा बताती हैं, “महाराष्ट्र में पिछले कई वर्षों से आत्महत्या का सिलसिला जारी है, सरकार ने कुछ किसानों का कर्जा माफ भी किया लेकिन उससे भला नहीं होने वाला क्योंकि किसानों की एक बड़ी आबादी सरकारी के कागजों में किसान नहीं है, उनके पास खेत नहीं है तो कर्जामाफ नहीं होता, जब तक हर एक किसान का एक बार पूरा कर्जमाफ नहीं होगा किसान कभी खड़ा नहीं हो पाएगा।”

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ये हमारी समाज व्यवस्था है, इस तरह सिर्फ किसान ही नहीं उसका पूरा परिवार मर रहा है। मैं 250 ऐसे किसानों के परिवारों से मिली हूं जिनके घर के किसान ने आत्महत्या कर ली। अगर महाराष्ट्र की बात करें तो ये आंकड़ा 50 हजार लांघ चुका है और पूरे देश में अब तक साढ़े चार लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। ये बहुत गंभीर समस्या है।

राजू शेट्टी के शेतकारी संगठना से जुड़ी पूजा बताती हैं, मैं भी चाहती तो पुणे या मुंबई में जाकर इंजीनियर या कुछ और बन सकती थी, लेकिन जब मैंने उन लड़कियों को देखा जिनके पिता मर गए थे वो मारी-मारी घूम रही थी, उनकी शादियां नहीं हो रहीं। सरकार को शायद लगता हो कि जब कोई किसान मरता है तो सिर्फ एक जान जाती है लेकिन असल में वो पूरा परिवार जीते जी मर जाता है। मैंने अपने गांव में भी कई घर देखे ,जहां परिवार घुट-घुट कर जी रहे हैं इसलिए इन किसानों की आवाज़ बनी।

बीजेपी के दिग्गज नेता रहे प्रमोद महाजन का इलाका रहा बीड़ महाराष्ट्र के उन प्रभावित जिलों में जहां हजारों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। शिवाजी को मानने वाली पूजा कहती है, भारत में 6 लाख से ज्यादा गांव है और कुछ हजार शहर, लेकिन सरकार का पूरा फोकस शहरों पर रहता है, उनके बजट की बड़ा हिस्सा शहरों में जाता है, जब तक ये नीतिया नहीं बदलेंगी, किसान की हलात नहीं सुधरेगी।’

पूजा मोरे

मोदी सरकार ने जो वादे किए थे उन्हें पूरा नहीं किया

मोदी साहब से ये बात कहना चाहती हूं कि मन की बात न करें काम की बात करें। अब राष्ट्रपति से आशा है कि वो कुछ करेंगे क्योंकि मोदी जी तो कुछ कर न सके सिर्फ आश्वासन दिए उन्होंने। इस बार हम बोलेंगे कि मोदी हटाओ किसान बचाओ, मोदी हटाओ किसान बचाओ। मोदी सरकार ने कहा था कि वो किसानों के लिए कुछ करेगें हमें भी उम्मीद थी इसलिए किसान नेता राजू शेट्टी भी उनसे जुड़े थे लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उन्होंने सत्ता छोड़ दी। उनमें ये ताकत थी कि वो इस्तीफा दे सकें बाकी लोग इस्तीफा नहीं दे सकते।

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हमारी सरकार से लड़ाई है। हमें नहीं लगता कि ये भारत की सरकार है, ये पाकिस्तान की सरकार है। प्याज उन्होंने पाकिस्तान से मंगाया। जबकि हमारे महाराष्ट्र में दो गाँवों में आंदोलन चल रहा था। वहां किसानों पर गोलीबारी की गई। किसानों ने ऐसा क्या किया है कि उनपर गोलीबारी कर रहे हो। उन्होंने कहा था कि हम आंतकवाद मिटा देंगे और आज खुद आंतकी बनकर गोली बरसा रहे हो।

पूजा थोड़े गुस्से में कहती हैं, “आज दिल्ली में सिर्फ एक ट्रेलर था, आने वाले दिनों में हम लोग लंबी लड़ाई लडेंगी, सड़क पर तो वैसे ही आना है, अगर कर्ज में दबकर घर के पुरुष मर गए तो भी, इससे अच्छा है सड़क पर उतरकर हम बेटियां अपने पिता की लड़ाई लड़े और उनकी फसल का ऐसा मूल्य दिलाएं जिससे वो खुश और जिंदा रह सकें।”

ये हैं मांगें

सड़क, शिक्षा, गाँव को शहर के बराबर बजट दें, कर्जमुक्ति व स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू हो।

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