गणतंत्र दिवस परेड: उन गुमनाम कारीगरों को भी सराहें जिनके हाथों ने बनाई हैं ये झांकियां 

Update: 2018-01-26 09:37 GMT
गणतंत्र दिवस की झांकी। 

छब्बीस जनवरी की परेड! एक ऐसा पल जब देश के हर नागरिक के दिल में सिर्फ एक ही भावना होती है...गर्व की, अभिमान की, देशप्रेम की...लेकिन 26 जनवरी की परेड में हिस्सा लेने वालों के लिए ये पल कुछ ज़्यादा ही ख़ास हो जाता है, आखिर पूरे देश की नज़र उन पर होती है।

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गणतंत्र दिवस की परेड में हर साल 25 से ज़्यादा सांस्कृतिक झांकियों के साथ, सेना के 20 बैंड, घुड़सवार दल, वायुसेना के 30 विमान और हज़ार से ज़्यादा स्कूली बच्चे हिस्सा लेते हैं। महीनों की तैयारी, सैकड़ों कारीगरों की मेहनत का नतीजा होती हैं ये झांकियां। झांकियों में मुख्यरूप से भारत की सैन्य क्षमता, संस्कृति और विरासत को दिखाया जाता है। यूं तो 15 अगस्त के बाद से ही 26 जनवरी की परेड की तैयारियां शुरू हो जाती हैं, लेकिन झांकियां बनाने का काम 26 दिसंबर से शुरू होता है। इन झांकियों को बनाने वाले कारीगर अलग-अलग राज्यों से आते हैं, और एक महीने पहले से दिन-रात इन झांकियों को बनाने में लगे रहते हैं।

गणतंत्र दिवस 2007 में दिल्ली परेड का प्रतिनिधित्व कर चुके नोडल अधिकारी अमित कुमार बताते हैं, कि '' कई सालों से साउथ दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में सभी राज्यों की झांकियां बनाई जाती रही हैं। इसके लिए अलग से फंड एलोकेट भी किया जाता है। जो रक्षा मंत्रालय तय करता है।''

झांकियों के दलों में काम करने वाले कारिगरों का मेहनताना और हर झांकी के लिए बजट रक्षा मंत्रालय निर्धारित करता है।

''सभी राज्य अपनी अपनी थीम खुद चुनते हैं, जिन्हें रक्षा मंत्रालय की ओर से बनाई गई झांकी चयन समिति खुद चुनती है। इसके बाद ये झांकियां गणतंत्र दिवस में शामिल की जाती हैं।'' अमित कुमार ने आगे बताया।

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अपने राज्य पर आधारित एक थीम पर बनाई जाती हैं झांकियां। 

अलग-अलग राज्यों से शामिल होने वाले सांस्कृतिक दलों के अलावा भारतीय सेना, नेवी और वायु सेना की विभिन्न रेंजीमेंट्स अपने-अपने बैंड और सरकारी सजावट के साथ परेड में भाग लेते हैं।

गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने वाली हस्तशिल्प कारीगरों के बारे में सूचना विभाग उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी श्रीनिवास त्रिपाठी बताते हैं कि “पूरे देश में हथकरघा विभाग के हस्तशिल्पी व कारीगर सूचना विभाग में रजिस्टर्ड होते हैं। दिल्ली परेड में जाने के लिए हर एक राज्य अपनी हस्तकला या थीम के अनुसार दल निर्धारित करता है, वह दल उस राज्य की झांकी बनाता है।''

तो अगली बार जब छब्बीस जनवरी की परेड देंखें, तो उन कारीगरों को भी सराहें, जो गुमनाम रहकर इन झांकियों को कामयाब बनाते हैं।

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