ग्रामीण भारत में जन्म के एक घंटे के अंदर बच्चे को कराये जाने वाले स्तनपान में रिकॉर्ड गिरावट

ग्रामीण इलाकों में जन्म के एक घंटे के अंदर तीन साल से कम उम्र वाले बच्चों को स्तनपान कराने के मामले में बिहार (30.5 प्रतिशत) सबसे पीछे है। यानी ग्रामीण बिहार में जन्म लेने वाला हर सातवां बच्चा, लड़का हो या लड़की, अपने जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान से वंचित रह जाता है।

Update: 2021-02-05 15:30 GMT
ग्रमीण भारत में जन्म के एक घंटे के अंदर बच्चों को स्तनपान कराने के मामले में गिरावट आई है। (फोटो- UNICEFNZ/flickr)

विश्व स्वास्थ्य संगठन जन्म के मानकों के अनुसार, बच्चे के जन्म के शुरुआती एक घंटे में स्तनपान कराया जाना चाहिए, लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के पहले चरण के आंकड़ों में दस राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में जन्म के एक घंटे के अंदर तीन साल से कम उम्र वालों बच्चों के स्तनपान में चिंता जनक गिरावट देखी गई। बिहार के ग्रामीण इलाकों में जन्म के एक घंटे के अंदर केवल 30.5% (तीन साल से कम उम्र वाले बच्चों को) बच्चों को स्तनपान कराया गया।

तीन साल से कम उम्र वाले बच्चों को जन्म के एक घंटे में स्तनपान कराने के मामले में सबसे ज़्यादा गिरावट सिक्किम के ग्रामीण इलाकों में दर्ज की गई है। यह दर 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में 68.9% से वर्ष घटकर 2019-20 में लगभग आधी यानि 33.1% हो गई है। इसी दरमियान, मिज़ोरम के ग्रामीण इलाक़ों में जन्म के एक घंटे में स्तनपान कराए जाने की दर 73.9 प्रतिशत से घटकर 58.6 प्रतिशत पर आ गई है।

इनके अलावा असम, कर्नाटक, त्रिपुरा, गोवा और गुजरात में भी तीन साल से कम उम्र वाले वाले बच्चों को स्तपनाप कराने का आंकड़ा नीचे आया है

ग्रामीण इलाकों में जन्म के एक घंटे के अंदर तीन साल से कम उम्र वाले बच्चों को स्तनपान कराने के मामले में बिहार (30.5 प्रतिशत) सबसे पीछे है। यानी ग्रामीण बिहार में जन्म लेने वाला हर सातवां बच्चा, लड़का हो या लड़की, अपने जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान से वंचित रह जाता है।

"कोई भी शुरुआती स्तनपान की परवाह नहीं करता है। बिहार में संस्थागत प्रसव के तकरीबन 76 प्रतिशत मामले हैं। फिर भी शुरुआती स्तनपान में कमी है," स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले ग़ैर लाभकारी संगठन सोशल एक्शन रिसर्च सेंटर के साथ काम करने वाले, नीलमणि ने गाँव कनेक्शन को बताया।

Source: NFHS

एक तरफ़ जहां बड़ी संख्या में राज्यों में जन्म के पहले घंटे के भीतर स्तनपान कराने में गिरावट आई है तो दूसरी तरफ़ कुछ ऐसे भी राज्य हैं जिन्होंने इस मामले में सुधार किया है। मेघालय के ग्रामीण इलाकों में, अंडर-3 बच्चों के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान करने वाले बच्चों की दर 2015-16 में 61.3 प्रतिशत से बढ़कर 2019-20 में, 79.9 प्रतिशत पंहुच गई है। इसी अवधि में, जम्मू-कश्मीर में, ऐसे मामले 46.6 प्रतिशत से बढ़कर 55.9 प्रतिशत हो गए हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सभी माओं को बच्चे के जन्म के एक घंटे के बाद जितनी जल्दी हो सके स्तनपान शुरु करने की सलाह देता है। जन्म के एक घंटे के भीतर शिशुओं को माँ के दूध का प्रावधान स्तनपान की जल्द शुरुआत के रूप में जाना जाता है और यह सुनिश्चित करता है कि शिशु की सेहत के लिए ज़रूरी मां का दूध उसे मिल सके।

यह भी पढ़ें- ग्रामीण इलाकों में सीज़ेरियन ऑपरेशन बढ़े, पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों के प्राइवेट अस्पतालों में सीज़ेरियन की दर देश में सबसे अधिक

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की 2009 की एक रिपोर्ट, इन्फ़ेंट एंड यंग चाइल्ड फ़ीडिंग के अनुसार जिन शिशुओं को स्तनपान नहीं कराया जाता है, पहले महीने में उनकी मौत की आशंका, स्तनपान कराए जाने वाले शिशुओं की तुलना में छः से 10 गुना ज़्यादा होती है। जिन्हें मां के दूध की जगह कुछ और दिया जाता है उन बच्चों में डायरिया और निमोनिया जैसे रोग अधिक और गंभीर होते हैं। इस वजह से कई बच्चों की मौत हो जाती है।

जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान नहीं करने के कारण ग्रामीण बच्चों की बढ़ती संख्या गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि ग्रामीण भारत में 35 प्रतिशत अंडर-5 बच्चे अविकसित कद के हैं, 33 प्रतिशत अंडर-5 बच्चे कम वज़न के हैं और 17 प्रतिशत वेस्टेड हैं।

Photo: Unicef India/flickr

मुंबई में बाल रोग विशेषज्ञ रूपल दलाल के अनुसार, शिशुओं को संक्रामक बीमारियों से बचाने और मृत्यु दर को कम करने के अलावा कोलोस्ट्रम या पहले दूध के अन्य प्रभाव भी हैं। "जब आप अपने बच्चे को उसके जन्म के तुरंत बाद स्तनपान कराते हैं तो बच्चे को उसका पहला मल तुरंत होगा। जो बच्चे एक या दो दिन में मल त्याग नहीं करते, उनमें फिजियोलॉजिक पीलिया नामक गंभीर बीमारी विकसित होने का ख़तरा अधिक होता है," उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि ग्रामीण महिलाओं में, बच्चों के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान करवाने के महत्व के बारे में जागरुकता का अभाव है। "ग्रामीण महिलाओं के बीच जागरुकता की कमी एक बड़ा मुद्दा है। माँ बनने से पूर्व उन्हें प्राथमिक स्तनपान के बारे में सूचित किया जाना चाहिए," कोलकाता में बाल रोग विशेषज्ञ शांतनू बग ने गाँव कनेक्शन को बताया।

क्या सीज़ेरियन के बढ़ते मामले इसके ज़िम्मेदार हैं?

हालिया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019 -20) के दौरान, ग्रामीण भारत में, सीजेरियन ऑपरेशन से बच्चों के जन्म में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई थी। तेलंगाना इस मामले में 58 प्रतिशत (सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह के अस्पतालों में) के साथ सबसे ऊपर रहा। जबकि पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों के प्राइवेट अस्पतालों में सीजेरिन प्रसव की दर 84 प्रतिशत दर्ज की गई। सरकारी स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार,प्रसव के प्रकार भी शिशु जन्म के एक घंटे के भीतर करवाए गए स्तनपान को प्रभावित करता है।

Source: NFHS

बीएमसी पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित 2019 के एक अध्ययन, 'National and rural-urban prevalence and determinants of early initiation of breastfeeding in India' में पाया गया कि केवल 41.5 प्रतिशत भारतीय माओं ने शिशुओं के जन्म के बाद एक घंटे के भीतर स्तनपान कराना शुरू किया। स्तनपान में देरी के कारणों में सीजेरियन के माध्यम से जन्म, गैर पेशेवर से डिलीवरी और मध्य क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में रहना शामिल है, अध्ययन में कहा गया।

"प्रसव के प्रकार भी शुरुआती स्तनपान को प्रभावित करते हैं। यदि कोई महिला सीजेरियन प्रसव से गुज़रती है तो उसे अपने बच्चे को स्तनपान करवाने के लिए अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता होती है, क्योंकि उस समय वह बैठ नहीं सकती," शांतनू बग ने कहा।

रूपल दलाल ने बताया, "प्रसव पीड़ा और नॉर्मल डिलीवरी के दौरान, गर्भवती महिला के हॉर्मोन में परिवर्तन होता है। "यह तब होता है जब आप स्तनपान शुरू कराते हैं। लेकिन सीज़ेरियन में, जो आपातकाल की स्थिति में दस मिनट का समय लेते हैं, एक माँ उस प्रक्रिया से नहीं गुज़रती है, जो स्तनपान को बढ़ाती है," उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया।

Photo: DFID/flickr

"डॉक्टरों को लगता है चूँकि नई माँ एनेस्थीसिया और अन्य दवाइयों पर है, इसलिए वह शायद दूध पिलाने में सक्षम नहीं हो पाएगी," उन्होंने कहा।

आसिया इश्फाक़ मीर (24 वर्ष) के केस को लें। आसिया, जम्मू-कश्मीर के बड़गाम जिले के पाहरू गाँव की निवासी हैं। जब वो प्राइवेट स्वास्थ्य सुविधा गई तो उसे सीज़ेरियान प्रसव का सुझाव दिया गया। "जब मैं प्राइवेट अस्पताल गई, तो मुझे ऑपरेशन के लिए कहा गया। लेकिन मैंने इंकार कर दिया, समस्या बनी रही। मैं आख़िरकार सरकारी अस्पताल गई, कोई भी जटिलता नहीं हुई और सामान्य प्रसव हुआ," आसिया ने गाँव कनेक्शन को बताया। वो हाल ही में माँ बनी हैं। "मैं अपने बच्चे को उसके जन्म के एक घंटे बाद स्तनपान कराने में सक्षम थी," उन्होंने कहा।

रूपल दलाल के अनुसार. आमतौर पर फ़ॉर्मूला मिल्क बनाने वाली कंपनियों का काफ़ी प्रभाव रहता है। हालांकि भारत के पास इसके लिए एक क़ानून है, फिर भी समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। शिशु दुग्ध विकल्प अधिनियम, 1992, किसी भी मां के दूध के विकल्प के तौर पर किसी भी खाद्य पदार्थ पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक लगाने का काम करता है।

"भारत में हमारे पास स्तनपान के प्रमोशन का नेटवर्क है, जो सरकार से लागातार आग्रह करता रहा है कि शहरी और ग्रामीण भारत के हर एक अस्पताल में शिशुओं को वैकल्पिक दूध नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन एक भी अस्पताल ऐसा नहीं है जो इसको मान रहा हो, दुखी होते हुए रूपल दलाल ने।

"बिहार के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों में आप यह देखेंगे कि अधिकांश परिवार पहले से ही बच्चों को पिलाने के लिए दूध का बंदोबस्त कर के आते हैं, जैसे गाय का दूध। लेबर रूम के लगभग सभी स्टाफ प्रशिक्षित होते हैं, लेकिन फिर भी वे महिलाओं को स्तनपान के लिए बढ़ावा नहीं देते हैं," नीलमणि ने कहा।

नीलमणि के अनुसार, स्वास्थ्य कर्मचारियों के अलावा पिता और परिवार के अन्य सदस्यों को भी लेबर रूम में बच्चे के जन्म के एक घंटे में स्तनपान को बढ़ावा देना चाहिए। "हम माओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन हमें उस मां से जुड़े दूसरो लोगों पर भी ध्यान देना चाहिए है, जैसे कि सास और बच्चे के पिता," उन्होंने कहा।

Source: NFHS

2015-16 और 2019-20 के बीच, पश्चिम बंगाल में अंडर-3 ग्रामीण बच्चों के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान में सुधार देखा। यह प्रतिशत 47.1 फीसदी से बढ़कर 59 फीसदी हो गया। लेकिन शांतनू बग मानते हैं कि 59 प्रतिशत कोई अच्छा आंकड़ा नहीं है।

सीज़ेरियन के अलावा एक और कारण है कि ग्रामीण महिलायें दूध बच्चों को दूध नहीं पिला पाती हैं। नॉर्मल डिलीवरी होने पर कई बार महिलाओं के शरीर में दूध नहीं बनता है। ऐसे मामले में, आशा कार्यकर्ताओं (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) और एएनएम (सहायक मिडवाइफ ) की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।

"सामान्यतः,महिलाओं का शरीर, एक शिशु के दूध पीने की क्षमता का तीन गुना दूध बनाता है। लेकिन कुछ मामलों महिलाओं का कहना है कि उनके शरीर में दूध नहीं बन रहा है," लखनऊ में एएनएम, प्रीती सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया। "हम नई माँ को लेबर रूम में नवजात को स्तनपान करवाना सिखाते हैं, ताकि बच्चे को फ़ीड करने में देरी न हो," उन्होंने बताया।

"ग्रामीण महिलाओं को डर है कि स्तनपान के कारण उनका शरीर खराब हो जाएगा। कई बार वे इस डर के कारण स्तनपान नहीं करवाती हैं। लेकिन बात यह नहीं है। स्तनपान कराने से माओं को भी बहुत फ़ायदे हैं," नीलमणि ने बताया।

डब्ल्यूएचओ की 2009 की रिपोर्ट बताती है कि स्तनपान के अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों प्रकार के लाभ माँ के लिए भी हैं। प्रसव के तुरंत बाद स्तनपान करवाने से प्रसव के बाद रक्तस्राव का ख़तरा कम हो जाता है, और इस बात के भी प्रमाण लगातार मिले हैं कि स्तनपान कराने वाली महिलाओं में स्तन और डिंबग्रंथि के कैंसर का ख़तरा कम होता है।

इस स्टोरी को इंग्लिश में यहां पढ़ें-

अनुवाद- इंदु सिंह

Similar News