खिचड़ी खाने और पतंग उड़ाने तक ही सीमित नहीं है मकर संक्रांति पर्व

Update: 2019-01-14 05:37 GMT
मेरी मिट्टी मेरे त्योहार सीरीज़ में जाने मकर संक्रांति बारे में । 

हमारे घरों में वर्षों से मनाए जा रहें रीति-रिवाज़ और लोक पर्व (क्षेत्रीय त्योहार) भी अपने भीतर अलग-अलग कहानियां समेटे हुए हैं। इन कहानियों के पीछे कोई दंतकथा या फिर कोई इतिहास जुड़ा होता है। गाँव कनेक्शन आने वाले दिनों में आपको ऐसे ही लोक पर्वों की झलक दिखाएगा। हमारी विशेष सीरीज़ मेरी मिट्टी, मेरे त्योहार के दूसरे भाग में जानिए लोक पर्व मकर संक्रांति के बारे में।

मकर संक्रांति के दिन पृथ्‍वी का उत्तरी छोर सूरज की तरफ होता है -

मकर संक्रांति पर्व को विशेष रूप से खिचड़ी खाने और पतंग उड़ाने का दिन माना जाता है। लेकिन इस त्योहार से ज़ुड़े कई भौगोलिक तथ्य और पौराणिक कथाएं भी हैं। भारत में मकर संक्रांति लोक पर्व का बड़ा महत्‍व है। यह त्योहार हर वर्ष 14 और 15 जनवरी को मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण में होता है, यानी कि इस दिन पृथ्‍वी का उत्तरी छोर सूरज की तरफ होता है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार इस दिन सूरज मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन सूर्य की पूजा की जाती है और यह लोकपर्व पूरे भारत में सभी हिस्सों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। पुराणों के मुताबिक सू्र्य और उसके बेटे शनि के बीच का रिश्ता अच्छा नहीं था। दोनों के बीच में बनती नहीं थी, लेकिन मकर संक्रांति के दिन सूर्य सब कुछ भुलाकर अपने पुत्र शनि के घर गए थे। इसलिए यह पर्व पिता और पुत्र के रिश्ते को मजबूती देने वाला त्योहार भी माना जाता है।

मेरी मिट्टी मेरे त्योहार सीरीज़ का दूसरा भाग मकर संक्रांति पर्व पर।

मकर संक्रांति त्योहार से जुड़ी हैं कई कहानियां -

पहली कहानी- भगवान विष्णु ने राक्षसों की सेना का किया था अंत -

देवपुराण के अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने राक्षसों की सेना का अंत कर के युद्ध खत्म होने की घोषणा की थी। इसलिए मकर संक्रांति को बुराइयां खत्म कर के अच्छाई की ओर बढ़ने का दिन भी माना जाता है।

मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने किया था राक्षसों की सेना का अंत।

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दूसरी कहानी - धरती पर पहली बार आकर समुद्र में मिल गई थी गंगा -

ऐसा कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन राजा भगीरथ ने गंगा नदी को स्वर्ग से धरती पर लाकर अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलायी थी। राजा भगीरथ की तपस्या से खुश होकर गंगा धरती पर आकर समुन्द्र से मिल गई थी।

राजा भगीरथ की तपस्या से खुश होकर गंगा धरती आईं थी। 

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