किसानों के आत्महत्या करने की एक वजह ये भी...

Update: 2017-12-01 18:45 GMT
अवसाद में आकर आत्महत्या कर रहे किसान

डिप्रेशन या अवसाद जो बीमारी अब तक शहरी जीवन शैली की देन मानी जाती थी, वो अब गाँववालों को भी बीमार बना रही हैं। खासकर ऐसे किसानों को जिनके पास कम खेती है यानि मझोले किसान। जानकारी के अभाव में खुद में डिप्रेशन की स्थिति को समझने और उसका इलाज कराने में असमर्थ ऐसे किसान आखिर में हारकर आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं।

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केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार साल 2012 में खेती और इससे संबंधित अन्य गतिविधियों से जुड़े उत्तर प्रदेश के लगभग 740 किसानों ने आत्महत्या की, राष्ट्रीय स्तर पर तो यह आंकड़ा 13,3500 की संख्या को पार कर गया ।

लखनऊ के उत्तर में लगभग 20 किमी दूर बक्शी का तालाब ब्लॉक में स्थित गाँव हरदोहपुर के किसान शिवकुमार सिंह (64 वर्ष) अपनी इन चिंताओं के बारे में बताते हुए आक्रोशित हो उठाते है। “भैया केवल धाकड़ किसान (बड़ा या प्रभावशाली किसान) ही सुखी रहता है। हमारे पास तो चार बीघा ही खेत है, जिसमें उड़द और तिल्ली लगाई थी। ज्यादातर जानवरों ने बर्बाद कर दी, बाड़ लगाने का पैसा कहां है हमारे पास? खाली दो-तीन किलो ही दाल और तिल्ली मिलेगी तो वो घर ही में खानेभर की है, बेच थोड़े ही पाएंगे। बुआई के समय 1600 रुपए की लागत आई थी अगर 1600 की उड़द खरीदते तो सालभर खाते।”

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शिवकुमार झुंझलाते हुए कहते हैं, “यही सब सोचते-सोचते परेशान रहते हैं, अब घर में लड़के-बच्चे हैं, उनको से सब बताकर परेशान नहीं करते, अपने आप में ही घुटा करते है।“

छोटे किसानों में बढ़ते तनाव और डिप्रेशन की स्थिति का एक कारण खेती में लगातार बढ़ रही लागत भी है।

“गाँवों में ऐसे किसान जिनके पास कम खेती है, किन्हीं कारणों से अगर उनकी फसल खराब हो गई, तो वो डिप्रेशन की स्थिति में आ जाते हैं। डिप्रेशन की स्टेज में किसान असहाय महसूस करने लगता है, धीरे-धीरे जब यह डिप्रेशन बढ़ता जाता है, तो आखिर में वो पूरी तरह से हारकर आत्महत्या कर लेता है” वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक, डॉ मलयकांत बताते हैं। वे आगे कहते हैं, “एक किसान को यह पता ही नहीं होता है कि वो डिप्रेस्ड(अवसाद की स्थिति) है, सही समय पर अगर वो मनोरोग चिकित्सक के पास पहुंच जाए, तो जाहिर है उसे आत्महत्या की स्थिति तक पहुंचने से रोका जा सकता है।“

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उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के एक सहायक कृषि निदेशक आरपी यादव (52 वर्ष) उन्नत कृषि की जानकारी देने के लिए हजारों किसानों से मिलते रहते हैं, वो भी वित्तीय स्थिति को ही एक छोटे किसानों को अवसाद और फिर आत्महत्या की ओर धकेलने की बड़ी वजह मानते हैं।“ मैं जब भी किसानों से मिलता हूं, तो वो अपनी घटती फसल का कारण यहीं बताते हैं कि साहब हमारे पास पैसा नहीं है। उन्हें समय से बीज नहीं मिलता, मिलता है तो महंगा, एक संरचना बदल चुकी है, जमीन ठोस होने के कारण हल बेकार हो गए हैं, उन्हें ट्रैक्टर से खेती करानी ही पड़ती है, जिसका खर्च डीजल के दामों के साथ लगातार  बढ़ रहा है। ऐसे में वो परेशान ही रहता जहै, यह सही है कि लगभग हर छोटा किसान अवसाद की स्थिति झेल रहा है और उसको पता ही नहीं।“

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गाँवों में डिप्रेशन जैसी बीमारी इसलिए भी हावी होती जा रही है क्योंकि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं। जाने-माने मनोरोग चिकित्सक डॉ मोहम्मद आलीम सिद्दीकी ग्रामीण मेंडिप्रेशन के लक्षण व इसके कारणों पर बताते हैं, “ग्राम्रीणों में रिएक्टिव डिप्रेशन है यानि उनमें यह स्थिति उनकी कृषि की खराब होती हालत और  इससे संबंधित कारणों के रिएक्शन (प्रतिक्रिया)  की वजह से पैदा हुई है।“ लक्षणों की जानकारी देते हुए वे आगे कहते हैं, “ग्रामीणों को इस बीमारी की जानकारी नहीं तो वो बात  नहीं करते कि मुझे डिप्रेशन है या मैं उदास हूं। उनमें इस बीमारी के बॉडिली सिम्पटम्स (शारीरिक लक्षण) दिखते हैं जैसे नींद न आना, भारीपन लगना या कई बार वो ये कहते हैं कि सिर में गैस चढ़ गई, असल में ये सब डिप्रेशन के लक्षण है।”

(ये खबर मूल रूप से (27 अक्टूबर -02 नवंबर 2016) को साप्ताहिक गाँव कनेक्शन में प्रकाशित हुई थी।)

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