गर्भपात के लिये महिला को पति की सहमति की जरूरत नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2017-10-28 11:02 GMT
उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं के पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला दिया है।

लखनऊ। उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं के पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। फैसले के तहत अब गर्भवती महिला को गर्भपात कराने के लिये पति की सहमति की जरूरत नहीं होगी। पत्नी से अलग हो चुके एक पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी बालिग महिला को बच्चे को जन्म देने या न देने के फैसले का अधिकार है। इसके लिये पति की इजाजत की जरूरत नहीं है। पत्नी से अलग हो चुके पति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी कि उसकी पूर्व पत्नी और उसके माता-पिता, भाई व दो डॉक्टरों पर अवैध गर्भपात का आरोप लगाया था। याचिका में कहा गया था कि उसकी सहमति के बिना गर्भपात कराया गया था।

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न्यायालय की शरण में पहुंचे थे दंपति

गौरतलब है कि जिस व्यक्ति ने इस मामले को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था उसका विवाह 1995 में हुआ था, लेकिन दोनों के बीच रिश्तों में खटास आने की वजह से पत्नी अपने बेटे के साथ चंडीगढ़ स्थित अपने मायके में वर्ष 1999 से रह रही थी। नवंबर 2002 से पति पत्नी ने एक बार फिर दोनों ने साथ रहना शुरू कर दिया था, लेकिन 2003 में एक बार फिर से दोनों के बीच तनाव हुआ और तलाक हो गया, लेकिन इस दौरान महिला गर्भवती हो गई।

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महिला को है गर्भपात का अधिकार

दोनों के बीच हुए तलाक के बाद महिला गर्भपात कराना चाहती थी लेकिन पति इसके लिये सहमत नहीं था। महिला ने अपने माता-पिता से संपर्क किया जिसके बाद माता-पिता महिला को लेकर चंडीगढ़ गए। अस्पताल के नियम के मुताबिक गर्भपात के लिये पति की इजाजत जरूरी होती है लेकिन पति ने सहमति से इंकार करते हुए दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया।

इसके बाद पति ने कोर्ट में 30 लाख रुपए के मुआवजे का केस कर दिया जिसे उच्चतम न्यायालय ने खारिज करते हुए कहा कि विवाद के बाद दोनों के बीच शारीरिक संबंध की इजाजत है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि महिला गर्भ धारण करने के लिये भी राजी हुई है। ये महिला के ऊपर निर्भर है कि वो गर्भ धारण करना चाहती है या नहीं।

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