छह किमी की दूरी तय करने के लिए लगाना पड़ता है 40 किलोमीटर का चक्कर, बाढ़ पीड़ित ने कहा- 'किसी जन्म का भोग रहे पाप'
लखीमपुर (यूपी)। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जनपद की धौरहरा तहसील में एक चार हजार आबादी वाला एक गांव ओझा पुरवा है। यह धौरहरा मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर व जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर है। इस गांव तक जाने वाला मुख्य मार्ग हर साल बाढ़ की चपेट में आने के बाद कट जाता है और लोगों को आने जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है। बाढ़ के समय 6 किमी की दूरी तय करने के लिए 40 किमी घूमकर जाना पड़ता है।
हाल ही में अभी लोकसभा चुनाव के दौरान यहां के ग्रामीणों ने गांव में सड़क बनाये जाने को लेकर के चुनाव का बहिष्कार किया था। इसकी जानकारी जब आला अधिकारियों को हुई तो उन्होंने ग्रामीणों को सड़क निर्माण कराने का आश्वासन देकर के चले गए। लेकिन यह समस्या आज भी वैसी ही बनी हुई है।
ग्रामीण पंकज कुमार यादव बताते हैं कि हमारे यहां आज से ही नहीं कई बरसों से बाढ़ की समस्या चली आ रही है। बाढ़ के दौरान हम लोगों को सड़क न होने से तमाम प्रकार की कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। गांव मे सड़क बनने के लिए हम लोगों ने लखीमपुर खीरी से लेकर दिल्ली तक दौड़ भाग किए, लेकिन हमारी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है।
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वह आगे बताते है कि हमारे यहां स्वास्थ्य केंद्र ईशानगर में पड़ता है। यहां जाने के लिए नदी पार करनी पड़ती है। इसकी कुल दूरी 6 किलोमीटर ही है लेकिन घाघरा नदी में पानी अधिक होने के कारण नाव से भी जाना किसी खतरे से कम नहीं होता है। इसीलिए हम लोगों को करीब 60 किलोमीटर बहराइच जाना पड़ता है। वहीं अगर जर्जर सड़क मार्ग से जाना हो तो करीब 40 किलोमीटर जाकर धौरहरा इलाज कराना पड़ता है।
बाढ़ में आंखों के सामने दम तोड़ देते हैं बच्चे
गांव के निवासी राम प्रकाश यादव बताते हैं कि बाढ़ के समय गांव में कई प्रकार की बीमारियां भी आ जाती हैं। गांव में कोई बीमार होता है तो उसे अस्पताल पहुंचाने से पहले उसकी मौत हो जाती है। चूकि सड़क न होने की वजह से गांव में एम्बुलेंस भी नहीं आ पाती है। जिसके चलते हमारे सामने बीमार बच्चे, बुजुर्ग महिलाएं दम तोड़ देती हैं। हम चाह कर के भी उनको नहीं बचा पाते हैं। पता नहीं किस जन्म का पाप भोग रहे हैं हम लोग। कोई नेता मंत्री सांसद हम लोगों का दुख दर्द बांटने भी नहीं आता है।
स्थानीय निवासी दिनेश कुमार बताते हैं कि अभी बीते दिनों उनकी पत्नी रेणु को डिलीवरी पेन हुआ, जिस पर उन्होंने 108 एम्बुलेंस को फोन किया, लेकिन एबुलेंस गांव में आने से मना कर दिया। ऐसे में उसे नाव के सहारे अस्पताल पहुंचाने की कोशिश की गई। अस्पताल जाते ही रास्ते में रेणु की डिलीवरी हो गई, वहीं 18 घंटे के अंदर उस नवजात शिशु की मौत भी हो गई। गांव में रास्ता न होने के कारण हर साल ऐसी तमाम महिलाओं को अपनी संतान से हाथ गवाना पड़ता है।
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गांव के चारो तरफ भर जाता है पानी
80 वर्षीय चन्द्ररानी बताती हैं कि गांव ऊंचाई पर बसा हुआ है, जिसके चलते जब बाढ़ आती है तो गांव के चारो तरफ पानी भर जाता है। अभी हाल ही में स्कूल गए बच्चे डूबने लगे थे। इसी डर के कारण लोग बच्चों को स्कूल भी नहीं भेजते हैं। ऐसे में पढ़ाई जरूरी नहीं है। उनकी जिंदगी ज़्यादा जरूरी है।
जल में बहाया जाता है शव
राम प्रकाश बताते है कि जब बाढ़ के समय मे अगर खुदनखस्ता किसी की मौत हो जाती है, तो मजबूरन हम लोगों को शव को बाढ़ में ही बहाना पड़ जाता है। क्योंकि पानी इतना तेज होता है और नाव उसमें चल भी नहीं पाती है। गांव से बाहर जाने का रास्ता भी नहीं है। ऐसे में हम सब के सामने बड़ी मुश्किल हो जाती है तो न चाहते हुए भी शव को पानी मे बहाना पड़ता है।
धौरहरा उप जिलाधिकारी आदित्य कुमार मिश्रा ने कहा कि गांव में पिछली बार भी एनडीआरएफ की टीम स्वास्थ्य विभाग टीम, राजस्व विभाग की टीम के साथ मैंने गांव में लोगों को सहायता पहुंचाई थी। इस बार भी टीमें बना ली गई हैं। वहां पर सभी किसानों को बाढ़ अनुदान से लाभान्वित किया जा रहा है।
लखीमपुर खीरी जिलाधिकारी शैलेन्द्र सिंह ने कहा कि मैं जानकारी करवाता हूं कि अभी तक ओझा पुरवा का इस्टीमेट बनने में देरी क्यों हो रही है। दूसरी बात ये है कि गांव कहीं वन विभाग की भूमि पर तो नहीं बसा हुआ है। इसकी भी जांच चल रही है।