‘बलात्कार पीड़िताओं के लिए कौन सा समाज, कैसे रिश्तेदार, कैसा परिवार?’ 

Update: 2017-12-31 13:17 GMT
फोटो साभार: इंटरनेट

लखनऊ। "मेरे पिता ने मेरे साथ बलात्कार किया गया था, उसके बाद मैं घर छोड़ कर नारी बंदी गृह में रहने लगी। वहां कभी कोई मुझसे मिलने नहीं आया जबकि मेरे बहुत से रिश्तेदार हैं। मेरे सगे मामा की बेटी की शादी की तारीख मुझे याद थी और यह उम्मीद थी कि मामा अपनी बेटी की शादी में जरूर मुझे लेने आएंगे पर कोई नहीं आया।" यह कहना है एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता का, जिससे इस घटना के बाद परिवार और रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया।

पीड़िता आगे बताती हैं, "घर में कई बार-बार ये बात सुनने को मिलती है कि जब कुछ होगा तो परिवार और रिश्तेदार ही काम आएंगे, लेकिन जब वही इस बात के दुश्मन बन जाएं तो इससे ज्यादा क्या बुरा होगा।" पीड़िता आगे बताती हैं, "मामा को इस बात का डर था कि मेरी वजह से कहीं उनकी बेटी की शादी न टूट जाए। मामा और नानी पर मैं भरोसा करती थीं, जिनके दम पर मैंने अपने पिता से विद्रोह किया था, लेकिन सब साथ छोड़ कर चले गए और मुझे अकेला छोड़ दिया।"

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वहीं, गैंगरेप और एसिड अटैक का दर्द सह रही रायबरेली की पीड़िता विमला से जब गाँव कनेक्शन संवाददाता ने पूछा कि समाज और परिवार के लोगों का आपके प्रति कैसा व्यवहार है। इस बात को सुनते उसकी आंखों में आंसू आ गए, उन्होंने सिर्फ तीन शब्द कहे, "कौन परिवार, कैसे रिश्तेदार, कौन सा समाज।" इतना कहने के बाद विमला चुप हो गई और अपना मुंह घुमा लिया।

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मेरी बेटी स्कूल भी नहीं जा सकती

एक और मामला बाराबंकी के मसौली थाने के एक गाँव का था, जहां 17 फरवरी को 13 साल की बच्ची का बलात्कार हुआ था। वह बिन ब्याही मां बन गई। इस घटना को हुए पूरे दो वर्ष बीत गए। जब पीड़िता के पिता से बात की तो वो कहने लगे, "हमें न्याय मिल गया और पैसा भी मिला, लेकिन समाज से इज्जत नहीं मिली। आज भी लोग हमे यही कहकर बुलाते हैं 'ये बलात्कारी के बाप है, ये बलात्कारी की महतारी है।' पीड़िता के पिता आगे बताते हैं, "कोई भी त्यौहार हो, हमारे घर कोई नहीं आता। गाँव में कोई भी मांगलिक कार्य हो या शादी ब्याह हो, हम किसी की देहरी पर नहीं जा सकते। बिन ब्याही बेटी का पिता हूं, इससे ज्यादा और कुछ नहीं कहूंगा और न अपनी बेटी से मिलने दूंगा। बेटी स्कूल नहीं जाती।" इतनी बात कहते हुए फोन काट दिया।"

देश में 34 हजार से ज्यादा मामले दर्ज

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के जारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 2015 में बलात्कार के कुल 34,651 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 33,098 मामलों में अपराधी, पीड़ितों के परिचित थे। बलात्कार के मामलों में महाराष्ट्र में इस तरह की 4,144 घटनाएं हुईं, जबकि राजस्थान में कुल 3,644 और उत्तर प्रदेश में 3,025 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए।

पीड़िता को सबसे ज्यादा मदद की जरूरत

लखनऊ विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक प्रो. मानिनी श्रीवास्तव बताती हैं, "सबसे पहले ऐसा व्यवहार करने वालों के खिलाफ कानून बनना चाहिए, वहीं युवाओं को इससे जोड़ना चाहिए। इस समय पीड़िता को ज्यादा मदद और प्यार की जरुरत होती है, लेकिन समाज कि जो सोच है वो अभी तक नहीं बदली है। इसके लिए उनकी मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत हैं। लोगों में जगरुकता लाने की आवश्यकता है। महिलाओं का कोई भी दोष नहीं होता, लेकिन ऐसा व्यवहार किया जाता कि वह खुद को गलत मान बैठती हैं। युवाओं की सहायता से हम लोगों को जागरुक कर सकते हैं। सरकार को चाहिए कि वह संवेदनशीलता के कार्यक्रमों को चलाया जाना चाहिए।"

टूट जाती है पीड़िता

मनौचिकित्सक डॉ. साजिया सिद्दीकी बताती हैं, "ऐसी घटनाएं जब किसी के साथ होती हैं तो परिवार और रिश्तेदारों की सबसे अहम भूमिका होती है। लेकिन जब उनकी तरफ से विरोध जैसी भवनाएं होती है तो व्यक्ति अंदर से टूट जाता है। ऐसे में परामर्श की बहुत आवश्यकता होती है।" समाजशास्त्रीय सुनीता बंसल बताती है, "समाज तो संबंधों का जाल है। किसकी क्या भूमिका होनी चाहिए ये तय करने वाले कौन होते हैं। पीड़ितों को इस समय आत्मविश्वास दिलाने की जरुरत होती है, लेकिन लोग उसको तोड़ने का प्रयास करते हैं। पीड़ितों को ज्यादा परामर्श की जरुरत उसके आस-पास रहने वाले लोगों से होती है।"

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