दोषियों को अपर्याप्त जेल की सजा देने से कानून में जनता का विश्वास कमजोर होगा : उच्च न्यायालय 

Update: 2017-06-25 12:26 GMT
उच्च न्यायालय। 

नई दिल्ली (भाषा)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने पूर्व नियोक्ता की बहू से बलात्कार एवं उसकी हत्या का प्रयास करने के दोषी एक व्यक्ति को निचली अदालत द्वारा सुनायी गयी 10 साल जेल की सजा को बरकरार रखा और साथ में यह भी कहा कि दोषियों को अपर्याप्त जेल की सजा देकर उनके प्रति अनावश्यक सहानुभूति दिखाने से लोगों का कानून की क्षमता से विश्वास कमजोर होगा।

न्यायमूर्ति एसपी गर्ग ने सजा कम करने से संबद्ध 45 वर्षीय व्यक्ति की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अपर्याप्त जेल अवधि की सजा देना समाज के लिये एक गंभीर खतरा है, जो इसे सहन करने में सक्षम नहीं होगा।

ये भी पढ़ें : महिला के मकान पर कब्जा कर खोल दिया बूचड़खाना

उन्होंने कहा, ''हर अदालत का यह कर्तव्य है कि वह अपराध की प्रकृति और उसे अंजाम देने के तरीके के अनुरुप दोषी को उचित सजा सुनाये।'' अदालत ने कहा, ''अपर्याप्त सजा देकर अनावश्यक सहानुभूति दिखाने से न्याय प्रणाली को कहीं अधिक नुकसान होगा और लोगों का कानून की क्षमता में यकीन कमजोर होगा तथा समाज इस तरह के गंभीर खतरे को अधिक समय तक सहन करने में सक्षम नहीं हो सकता।''

ये भी पढ़ें : देशभर में खुलेंगे 100 GST क्लीनिक

निचली अदालत ने एक व्यक्ति को पीड़ित से बलात्कार के लिये 10 साल की जेल और उसकी हत्या करने की कोशिश के लिये सात साल की सजा सुनायी थी। पीड़ित आरोपी को नौकरी पाने में सहायता कर रही थी और उसके बच्चों को पढ़ाती भी थी। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले की पुष्टि की और सजा कम करने से संबद्ध उसकी याचिका खारिज करते हुए कहा, ''व्यक्ति ने पीड़ित के साथ विश्वासघात किया है और उसने पाशविक तरीके से अपराध को अंजाम दिया।''

ये भी पढ़ें : चेक कर लीजिए कहीं बंद तो नहीं हो गया आपका आधार नंबर

Similar News