अगर आंध्र प्रदेश की यह योजना कामयाब हुई तो खेती बन जाएगी मुनाफे का सौदा

राज्य सरकार का लक्ष्य है कि 2024 तक प्रदेश की 80 लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती करने वाले 60 लाख किसान पूरी तरह से जीरो बजट नेचुरल फॉर्मिंग करने लगें।

Update: 2019-01-23 05:43 GMT

आंध्र प्रदेश सरकार ने प्रदेश में खेती की स्थिति सुधारने के लिए एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। 2 जून को प्रदेश सरकार ने ऐलान किया कि आंध्र के 60 लाख किसानों को रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर आधारित मौजूदा खेती के तरीके से हटाकर जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग करने को प्रोत्साहित किया जाएगा। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि अगले 6 साल में यानि 2024 तक प्रदेश की 80 लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती करने वाले 60 लाख किसान पूरी तरह से जीरो बजट नेचुरल फॉर्मिंग (जेडबीएनएफ) करने लगें। इस संकल्प के बाद आंध्र प्रदेश जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।

इस योजना का संचालन एक सरकारी संस्था रिथु स्वाधिकार संस्था करेगी। अपनी अनूठी पहल के तहत इस संगठन ने प्रदेश के नेचुरल या प्राकृतिक खेती करने वाले 100 ग्रेजुएट युवाओं को अपने साथ जोड़ा है। इन्हें जीरो बजट नेचुरल फॉर्मिंग के फायदों का प्रदर्शन करने के लिए हर महीने 30 हजार रुपए भी दिए जा रहे हैं। ये शिक्षित किसान किराए की जमीन पर खेती करेंगे, गांवों में रहेंगे और इस सिलसिले में गांव वालों के मन में उठने वाले सवालों का जवाब भी देंगे।

इस योजना को युनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम, वर्ल्ड एग्रोफॉरेस्ट्री सेंटर और वित्तीय संस्था बीएनपी पारिबास से आर्थिक मदद मिलेगी। इस परियोजना के लॉन्च के मौके पर मौजूद युनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम के हेड एरिक सोलहेम ने कहा, "इस साहसी कदम से हम बड़े स्तर पर टिकाऊ खेती की ओर बढ़ेंगे। इसके अलावा इससे पर्यावरण, जैवविविधता और खाद्य सुरक्षा को हासिल करने में भी मदद मिलेगी।"



क्या है जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग


 नेचुरल फार्मिंग की शुरूआत कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर ने की थी

इस समय आंध्र प्रदेश में लगभग 163,034 किसान जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग कर रहे हैं। इसमें रासायनिक खाद और कीटनाशकों की जगह स्थानीय स्तर पर मौजूद गाय के गोबर, गौमूत्र, गुड़ और चने के आटे का इस्तेमाल होता है। इनको मिलाकर इनका किण्वन किया जाता है। इसके बाद जो मिश्रण तैयार होता है उसे जीवामृत कहते हैं। जब इसे खेती योग्य भूमि में मिलाया जाता है तो यह मिश्रण मिट्टी में ऐसी सूक्ष्मजैविक क्रियाओं को प्रोत्साहित करता है जिनसे फसलों की पैदावार तो अच्छी होती ही है उनपर कीटों के हमले भी कम होते हैं।

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इसके अलावा मिट्टी को फसलों के अवशेष से ढंका जाता है ताकि मिट्टी में पानी को रोकने की क्षमता बढ़े साथ ही उसे जरूरी पोषक तत्व भी मिलें। जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग में इंटरक्रॉपिंग या सहफसली खेती का भी बड़ा महत्व है। मसलन आंध्र में नारियल, केले, कोकोआ, जिमीकंद और दालों की खेती एक साथ की जाती है। जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग की शुरूआत महाराष्ट्र के कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर ने की थी। उन्हें इसके लिए 2016 में पद्मश्री सम्मान भी मिल चुका है।

क्यों कहते हैं जीरो बजट फार्मिंग

इस तरीके को जीरो बजट खेती इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें रासायनिक खाद और कीटनाशकों का खर्चा बचता है। इसके अलावा सहफसली फसलों से होने वाली आमदनी से मुख्य फसल पर हुई लागत भी निकल आती है। जानकारों का यह भी कहना है कि यह तरीका मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को सक्रिय कर उन्हें पौधों के लिए सुलभ कराता है जिससे उनका स्वाद और गुणवत्ता दोनों बढ़ जाते हैं। इस योजना में अहम भूमिका निभाने वाले टी. विजयकुमार का कहना है, "शोध में पाया गया कि इस तरीके से उगाई गई लौकी में विटामिन बी12 पाया गया जो आमतौर पर उसमें नहीं पाया जाता है।"

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कैसे अलग है ऑर्गेनिक खेती से

यह पूछने पर टी. विजयकुमार कहते हैं, "ऑर्गेनिक खेती में गाय के गोबर का इस्तेमाल खाद के रूप में होता है जबकि जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग में गाय के गोबर के घोल को जीवामृत बनाने के लिए किया जाता है। इस तरह एक गाय का गोबर 30 एकड़ में इस्तेमाल होने के लिए काफी है ।" 

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