जंतर-मंतर पर तीन दिन चले आंदोलन पर न तो सत्ता पक्ष आया न विपक्ष : चिदानंद कश्यप

हर बार चुनाव में राजीनीतिक दलों की इनके और इनके परिवार के प्रति हमदर्दी जारी है ,और ये आश्वासन के पहिये पर सवार होकर सपने देखते रहे, पर क्या वास्तव में तस्वीर बदल पायी ?

Update: 2019-03-27 09:53 GMT

लखनऊ। "मनरेगा कर्मियों की समस्या की असली जड़ "पारिश्रमिक और अन्य मुद्दों पर" केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच तालमेल न होना है। केंद्र सरकार का कहना है कि केंद्र की जिम्मेदारी योजना के लिए बजट देने की है और राज्य की जिम्मेदारी योजना के क्रियान्वयन की है। वही राज्यों में जब मनरेगा कर्मियों के द्वारा पारिश्रमिक व् अन्य सुविधाओं पर बात की जाती है तो राज्य सरकारें यह कहकर पल्ला झाड़ लेती है की यह केंद्र सरकार की योजना है।"

देश में 15 से अधिक राज्यों में भाजपा की सरकार है हमें मोदी सरकार से बहुत उम्मीद थी लेकिन सरकार ने रोजगार सेवकों को निराश किया है। दिल्ली में जंतर–मंतर पर देश भर के रोजगार सेवकों ने तीन दिन तक प्रदर्शन किया सत्ता–विपक्ष दोनों से रोजगार सेवकों ने समस्या सुनने का आग्रह किया लेकिन कोई भी हमारी समस्या सुनने जन्तर –मंतर तक नहीं आया।

ये कहना है ये कहना है अखिल भारतीय मनरेगा कर्मचारी संघ के राष्ट्रीय महासचिव चिदानन्द कश्यप का जो पिछले दस वर्षो से लगातार मनरेगा कर्मियों के हक़ की लड़ाई लड़ रहे है और   बतौर पंचायत रोजगार सेवक अपने दायित्यों का बखूबी निर्वहन कर रहे है।

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अक्सर चर्चा में रहने वाली मनरेगा योजना की कुछ खास बातें ...

महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना की शुरुआत साल 2006 में यूपीए सरकार के दौरान की गयी थी रोजगार की दृष्टि से ये अब तक की सबसे बड़ी योजना है। वर्तमान समय में इस योजना से करीब 12 करोड़ लोगों को रोजगार मिल रहा हैं। ये योजना इस समय देश के, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमांचल प्रदेश, पंजाब, वेस्ट बंगाल, हरियाणा, महाराष्ट्र ,चंडीगढ़, मेघालय, मिजोरम, आसाम, जम्बू एंड कश्मीर, कर्णाटक, त्रिपुरा, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु,  उत्तराखंड, गुजरात, नागालैंड, पांडिचेरी, दमन एंड दीव, उड़ीसा, सिक्किम, अंडमान एंड निकोबार, गोवा, दादर नगर हवेली, लक्ष्यदीप, तेलगाना,केरल ,मणिपुर, नागालैंड में चल रही हैं।

प्रधानमंत्री को कई बार भेजा पत्र अब भी आस है ...

चिदानंद कश्यप बताते है की धीरे धीरे मनरेगा कर्मियों /रोजगार सेवकों की आर्थिक स्थिति बदतर होती जा रही है। इस संदर्भ में अखिल भारतीय मनरेगा कर्मचारी संघ की तरफ से कई बार प्रधानमन्त्री को पत्र भेजा गया लेकिन अब तक कोई राहत नहीं मिली है फिर भी हमे सरकार से आस है कि वो मनरेगा कर्मियों /पंचायत रोजगार सेवकों को न्याय देगी।

क्या है अखिल भारतीय मनरेगा कर्मचारी संघ की सरकार से मांगे 

प्रधानमन्त्री को भेजे गये पत्र में मनरेगा कर्मियों /पंचायत रोजगार सेवकों की इन मांगो पर विचार करने के लिए सरकार से आग्रह किया है।

मनरेगा कर्मियों खासकर रोजगार सेवकों को केंद्र सरकार द्वारा तय न्यूनतम वेतन 24 हजार रूपये लागू किया जाए।

मनरेगा कर्मचारी को केन्द्रीय कर्मचारी घोषित किया जाये।

मनरेगा कर्मचारी को "समान काम,समान वेतन" दिया जाए।

मनरेगा कर्मियों के वेतन के लिए कंटीजेंसी के स्थानं पर अलग से कोष गठित किया जाए।

मनरेगा कर्मियों की सेवा शर्त नियमावली तैयार करते हुए उसे लागू करके सेवा पुस्तिका दी जाए।

मनरेगा महासंघ के प्रतिनिधियों को सदस्य के रूप में नामित किया जाए। ताकि वो अपना पक्ष रख सकें।

मनरेगा कर्मियों को स्थायी पदों की तरह समान सुविधाए दी जाए।

मनरेगा मजदूरों को  मजदूरी वृद्धि के साथ उन्हें समय पर मजदूरी का भुगतान किया जाए।

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संविदाकर्मियों के साथ हमदर्दी राजनीतिक दलों का चुनावी स्टंट 

उत्तर प्रदेश रोजगार सेवक संघ के महामंत्री ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी का कहना है कि "संविदाकर्मियों के साथ हमदर्दी सिर्फ चुनावी स्टंट है, विधान सभा चुनाव से ठीक पहले 3 अप्रैल 2016 को देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रोजगार सेवकों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि "सरकार के पास कुबेर का खजाना हैं। सिर्फ नियत कि कमी है सपा सरकार अगर रोजगार सेवको का भला नहीं कर सकती तो उसे सत्ता छोड़ देना चाहिए।" यही नहीं भाजपा सांसद कौशल किशोर ने रोजगार सेवकों को लिखित आश्वासन दिया था लेकिन दुर्भाग्य से संविदाकर्मी सबसे ज्यादा भाजपा की ही सरकार में प्रताड़ित हुए।

ज्ञान त्रिपाठी आगे बताते है कि कांग्रेस को आज संविदाकर्मियों कि तकलीफ महसूस हो रही हैं रोजगार सेवक संघ के साथियो के साथ पिछली सरकार के दौरान स्वयं राहुल गाँधी से संविदाकर्मियों कि समस्याओ को लेकर मिला था राहुल गाँधी का दो टूक जवाब था कि कि जो हमारे मंत्री ने सेट किया है वही ठीक है। बसपा सरकार में रोजगार सेवकों ने एक बड़ा आंदोलन किया ,जिसे तत्कालीन बसपा सरकार द्वारा लाठी के बूते दबा दिया गया। संविदाकर्मीयो को हर राजनीतिक  दल जरूरत के हिसाब प्रयोग कर रहा है।

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मानदेय के लिए करना पड़ता है धरना प्रदर्शन 

आज़मगढ़ (उत्तर प्रदेश) के रोजगार सेवक संघ के जिलाध्यक्ष प्रदीप सिंह ने बताया कि नियमतिकरण ,सामान काम ,समान वेतन और सुविधाएं तो दूर कि बात है यहां जो सरकार न्यूनतम मानदेय देती है उसके लिए भी महीनो ,सालों तक संघर्ष करना पड़ता है।अभी तक रोजगार सेवकों का पूरा मानदेय सरकार नहीं दे पायी ,चुनाव के भाजपा के बड़े नेताओ ने जो वाडे किये उसे सत्ता में आने के बाद वो अन्य दलों कि तरह भूल गए ।

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