भारतीय समुद्री सीमा में शार्क की प्रजातियों को जोखिम नहीं : अध्ययन 

Update: 2017-07-16 17:55 GMT
शार्क। फोटो : साभार इंटरनेट

कोच्चि (भाषा)। एक अध्ययन के अनुसार विलुप्त होने का बड़ा जोखिम झेल रही शार्क की कुछ प्रजातियों को भारतीय समुद्री सीमा में इस तरह का कोई जोखिम नहीं है। ऐसे में अध्ययन कर्ताओं का कहना है कि इन प्रजातियों और इनसे बने उप-उत्पादों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार किया जा सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और केंद्रीय समुद्री मत्स्य पालन (सीएमएफआरआई) शोध संस्थान के विज्ञानियों ने अपने एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला है।

यह अध्ययन एक ऐसे समय में सामने आया है जब वैश्विक संरक्षण एजेंसी 'इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर-आईयूसीएन' ने विलुप्त होने का सामना कर रही विश्व की विभिन्न शार्क प्रजातियों के संरक्षण के प्रयास तेज करने की सिफारिश की है।

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अध्ययन ने कुछ शार्कों के व्यापार का समर्थन किया

हालांकि, भारतीय विज्ञानियों का कहना है कि 'हैमरहैड शार्क' और 'ओशियानिक व्हाइटटिप शार्क' एवं उनसे प्राप्त होने वाले अन्य उत्पादों का अंतरराष्ट्रीय व्यापार किया जा सकता है। बशर्ते इसके लिए कंवेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एंडेंजर्ड स्पीशीज ऑफ वाइल्ड फॉना एंड फ्लोरा (सीआईटीईएस) से प्रमाणित होना होगा। यह संकट वाली प्रजातियों के संरक्षण के लिए विश्व के विभिन्न देशों की सरकार के बीच किया गया एक समझौता है।

अध्ययन में कहा गया है भारतीय समुद्री क्षेत्र में इन दोनों प्रजातियों की मौजूदगी के उपलब्ध आंकड़ों एवं सूचना के अनुसार इनके अंतरराष्ट्रीय व्यापार से इन पर मौजूदा समय में कोई गंभीर संकट नहीं है। लेकिन इन प्रजातियों की गहरे पानी में मौजूद शिशु शार्कों को बचाए जाने की जरुरत है। इस अध्ययन को 'नॉन-डिटायरमेंट फाइंडिंग्स (एनडीएफ) फॉर एक्सपोर्ट ऑफ शार्क एंड रे स्पीशीज लिस्टेड इन अपेंडिक्स-2 ऑफ द सीआईटीईएस एंड हार्वेस्टेड फ्रॉम इंडियन वाटर्स' शीर्षक से प्रकाशित किया गया है।

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